Thursday, December 26, 2024
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एक अफवाह ने एक जाने माने अभिनेता का कैरियर चौपट कर दिया

धर्मेन्द्र के साथ अपना करियर शुरू करने वाले एक सफल अभिनेता की कैंसर की बीमारी की झूठी अफवाह ने उसका पूरा कैरियर चौपट कर दिया।

अगर वो अफवाह ना फैली होती तो शायद आज वो भी धर्मेन्द्र और मुमताज़ की तरह फिल्म इंडस्ट्री में एक जाना-पहचाना नाम होते। इनका नाम है “शैलेश कुमार” 21 अप्रैल 2017 को जोधपुर में गुमनामी में इनका निधन हो गया। ये जोधपुर के ही रहने वाले थे ।और 21 जनवरी 1939 को जोधपुर में ही इनका जन्म भी हुआ था।

किसी ज़माने में ये शैलेश कुमार के नाम से जाने जाते थे, लेकिन इनका वास्तविक नाम शंभुनाथ पुरोहित था,पहले वो आम लोगों की तरह मुंबई घूमने के लिए ही आए थे। जब मुंबई आए तो दोस्तों के साथ एक फिल्म की शूटिंग देखने के लिए एक स्टूडियो में चले गए। स्टूडियो में किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी ..दरअसल वहां बहरूपिया नामक एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी। जब वो फ़िल्म की शूटिंग देख रहे थे तो उनपर उस फिल्म के प्रोड्यूसर साहब की नज़र पड़ गई.. (SONY KE KISSE)..उस फिल्म के प्रोड्यूसर का नाम था रती भाई.. पहले पहले हीरो के लिए कोई फ़ोटो सेशन या पोर्ट फोलियो नही हुआ करते थे बस डायरेक्टर या प्रोड्यूसर की एक नज़र ही xray का काम करती थी…

वैसे ही भीड़ में खड़े शैलेश पर रती भाई की नज़र पड़ी तो वो इनकी पर्सनैलिटी से बड़े प्रभावित हुए। उन्होंने शैलेश को पास बुलाया और शैलेश को फिल्मों में काम करने का ऑफर दे दिया। उन्होंने शैलेश से कहा था के,”तुम फिल्मों में काम करोगे..यकायक शैलेश की तरफ़ आये ऐसे सवाल को वो हज़म नहीं कर सके और
उस वक्त तो शैलेश जी ने रति भाई को मना कर दिया उन्हें जवाब दे दिया। दोस्तो उस वख्त वो बिल्कुल अनाड़ी थे वो कुछ नहीं जानते थे और उन्हें बिल्कुल नहीं पता था कि फिल्मों में काम कैसे किया जाता है। और कुछ दिन वहीं रुक कर वे वापस अपने शहर जोधपुर लौट गए। लेकिन रह रह कर रती भाई की वो बात उनसे हुई मुलाकात उनके दिमाग पर छप गई और उन्हें बेचैन कर रही थी। एक्टिंग का बीज और उस सुनहरे शहर का वो टूर उन्हें याद आ रहा था और अब ऐक्टिंग करने का बीज भी उनके मन-मस्तिष्क में रोपित हो गया था..

एक दिन उन्होंने तय किया कि उन्हें मुंबई वापस जाना चाहिए और फिल्मों में हीरो बनना चाहिए । इससे पहले के वे मुंबई के लिए निकलते, उससे पहले ही घरवालों ने उनकी शादी कर दी। लेकिन मन तो शैलेश साहब का वहीं बम्बई में बस गया था.. और एक्टर बनने का उनका फैसला भी अडिग था।

वैसे तो शैलेश साहब एक अच्छे खासे और अमीर परिवार से थे। लेकिन कहते हैं के वो अपने पिता से पैसे नहीं मांगते थे। तो उन्होंने एक युगत लड़ाई और अभी अभी उनकी शादी हुई थी और उन्हें शादी में जो बतौर तोहफे में एक सोने की चेन ससुराल वालों की तरफ से मिली थी। उन्होंने उस चेन को 75 रुपए में बेचा और आ गए बम्बई। बम्बई आते ही उनकी पहली मुलाकात धर्मेंद्र जी से हुई। उन दिनों धर्मेंद्र भी फिल्में पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे ..वो साल था 1960 और साल 1960 में ही उन्हें पहला मौका भी मिल गयाष उनकी पहली फ़िल्म आई नई मां जिसमें शैलेश जी को पहली दफा अभिनय करने का मौका मिला। फ़िल्म में उनका रोल काफी छोटा था। लेकिन शैलेश ने अपना काम पूरी ईमानदारी से कियाऔर अपनी पहचान भी बना ली।

इसके बाद साल 1961 में आई उनकी फ़िल्म भाभी की चूड़ियां एक ऐसी फिल्म थी जिसने शैलेश कुमार को अपनी पहचान दिलवाई। फिल्म में शैलेश के इलावा बलराज साहनी साहब और मीना कुमारी भी मुख्य भूमिकाओं में थे। शैलेश ने उस फिल्म में मीना कुमारी के देवर का किरदार उस फिल्म में निभाया था। अब शैलेश साहब की गाड़ी तो चल पड़ी थी और इसके बाद शैलेश जी को काम भी खूब मिलता रहा ।

1968 में शैलेश जी के फिल्मी सफ़र में कुछ बदलाव हुए उसके बाद उन्हों ने एक्ट्रेस मुमताज़ के साथ फ़िल्म की जिसका नाम था गोल्डन आई: सीक्रेट एजेंट 077 …इस फिल्म का एक गाना भी काफी मशहूर हुआ था, शायद अपने सुना हो उस गाने के बोल थे “हाय मैं मर जाऊं”। ये फिल्म एक जेम्स बॉन्ड टाइप फ़िल्म थी और एक बी-ग्रेड फिल्म थी। शैलेश साहब ने वो फ़िल्म तो कीऔर वक्त के साथ मुमताज़ तो टॉप की एक्ट्रेस भी बन चुकी थी। और इनके करियर के शुरुआती साथी धर्मेंद्र भी स्टार बन चुके थे। लेकिन शैलेश साहब को कभी भी वो कामयाबी वैसी ख्याति नहीं मिल सकी जिसका ख्वाब उन्होंने देखा था ।

फिर शैलेश जी ने अपनी पत्नी पुष्पा को भी मुंबई ही बुलवा लिया था। कहा जाता है कि जब शैलेश ने 30 की उम्र में डबल जोश के साथ आगे बढ़ने का फैसला किया तो उन्हें थायरॉइड की बीमारी ने अपना शिकार बना लिया। थाइरोइड का इलाज रेडिएशन थैरिपी के ज़रिए ही होता था। और रेडिएशन थैरिपी मिलती थी सिर्फ टाटा अस्पताल में। लेकिन टाटा अस्पताल मशहूर था कैंसर के मरीज़ों का इलाज करने के लिए। इसलिए जब शैलेश साहब अपना इलाज करवा रहे थे तो किसी ने शैलेश जी को टाटा अस्पताल में आते जाते देखा तो उसकी वजह से उसने इंडस्ट्री में अफवाह उड़ा दी कि शैलेश जी को तो कैंसर हो गया है। उस अफवाह ने शैलेश के करियर में एक विलेन की भूमिका निभाई.. और उस अफवाह का इनके करियर पर बहुत बुरा असर पड़ा।

कुछ दिनों में ही थायरॉइड की बीमारी तो ठीक हो गई। लेकिन शैलेश जी को काम मिलना बंद हो गया। जिसे कुछ दिन पहले धड़ल्ले से काम मिल रहा था.. अब वो बेकार होने लगे थे..उन्होंने खूब हाथ-पैर मारे ..लोगों को समझाया भी लेकिन सब कुछ व्यर्थ रहा। किसी ने भी उन्हें कोई काम नहीं दिया। मायूस होकर अपनी पत्नी के साथ विचार विमश किया और आखिरकार साल 1978 में शैलेश जी अपने परिवार को लेकर अपने घर अपने गृहनगर जोधपुर वापस लौट गए। और फिर अपने अंतिम समय तक अपने आखिरी वक्त तक जोधपुर में ही रहे।

काजल फिल्म में उनपर फ़िल्माया गया गीत मेरे भैया मेरे चन्दा मेरे अनमोल रतन… आज भी राखी और भाईदूज बपर सबसे ज्यादा सुना जाता है।
साभार-https://www.facebook.com/profile.php?id=61555561193787 से

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