नई दिल्ली। “ग्रामीण और जनजातीय आजीविका की पुनर्कल्पना” विषय पर आज दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में एक संगोष्ठी की गई। देश के कई प्रबुद्ध व्यक्तित्वों और वैज्ञानिकों ने इसमें भाग लिया। कार्यक्रम में पूसा-कृषि (दिल्ली) की सीईओ डॉ. आकृति शर्मा, आईआईटी कानपुर से प्रोफेसर करिंदकर, आईआईटी दिल्ली से प्रोफेसर विवेक, प्रख्यात अर्थशास्त्री डॉ. अश्विनी महाजन, एकल प्रमुख डॉ लल्लन शर्मा और अन्य गणमान्य जन उपस्थित थे।
एकल संस्थान की चेयरपर्सन डॉ. मंजू श्रीवास्तव के सानिध्य में ग्रामीण और जनजातीय लोगों की आजीविका और गांवों में सतत आर्थिक मॉडल लाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्यों पर चर्चा की गई।
पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने अपने ऑनलाइन वक्तव्य में कहा कि जहां सरकार नहीं पहुँची वहाँ एकल विद्यालय पहुँच गये। एकल विद्यालय ने भारत को उसकी पहचान से जोड़ा। बिना अपनी संस्कृति को खोये एकल विद्यालयों ने शिक्षा के माध्यम से विकास की राह खोली। विकास की परिभाषा पर चर्चा होना आवश्यक है। यदि एकल देश में नहीं होता तो देश की स्थिति क्या होती ये मैं सोच भी नहीं सकता। हम सभी को एकल को ताक़त देना चाहिए ताकि एकल का काम देश के विकास में और अधिक योगदान दे सके। ईएस ऑफ़ लिविंग की शक्ति गाँवों में है। एकल सिर्फ़ शिक्षा नहीं देता, व्यक्ति से लेकर गाँव तक का सर्वांगीण विकास करता है।
डॉ. प्रवीण आर्य ने कहा कि ग्रामीण और जनजातीय लोगों की आजीविका का विषय कल्पना का नहीं बल्कि ग्रामीण और जनजातीय समुदाय के लोगों की इच्छाओं को उचित ढंग में कल्पना करने का विषय है।
उन्होंने कहा कि हमें भारत में छोटे उद्योगों की तरफ देखने की आवश्यकता है क्योंकि ये छोटे उद्योग ही ग्रामीण भारत का आधार हैं। लेकिन इन छोटे उद्योगों के लिए उचित बाजार सम्बद्ध होना अति आवश्यक है ताकि बने सामान की बिक्री आसानी से की जा सके।
डॉ. लल्लन शर्मा ने कहा कि हमें एक ऐसी विकास धारा की आवश्यकता है जिसमें विज्ञान और संस्कृति समाहित हो और इसके लिए हमें सतत आजीविका की आवश्यकता है। आने वाली पीढ़ी को उद्यमी बनाकर खड़ा करना है। लुप्त होती वनस्पतियों को बचाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि गाँवों में कामगार न मिलने की समस्या बढ़ना, महँगी खेती और पशुओं के काम भी मशीनरी से लेना, ने गाँवों से पलायन बढ़ाया है। 30% बैलों का कम होना, देशी की जगह जर्सी गायों का आना, ग्रामीण भारत के लिए समस्या का विषय है। उन्होंने कहा कि हमारा काम गाँवों को साधन संपन्न बनाना, स्मार्ट विलेज बनाना व रहने लायक बनाना है जिसमें “ग्रामोत्थान” योजना अथक रूप से प्रयासरत है। “पोषण वाटिका” अभियान जिसमें पौधे लगाने का काम ऐसे सवा लाख किसानों को दिया गया जिनके द्वारा ऑर्गनिक फार्मिंग की जा रही है। किसान मेला भी आयोजित किया जाता है।
इस अवसर पर डॉ. अश्विनी महाजन ने कहा कि पूरे विश्व में एकल के रूप में अनोखा प्रयास किया जा रहा है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को आत्मनिर्भर बनने की आवश्यकता है और स्वदेशी तकनीक विकसित करने की आवश्यकता है ताकि इसे फिर से सोने की चिड़िया बनाया जा सके। उन्होंने डिजिटल कॉमर्स के लिए खुला नेटवर्क (ONDC) के बारे में बताते हुए कहा कि यह विदेशी तर्ज पर सस्ता प्लेटफॉर्म है ताकि भारत का पैसा भारत में ही रहे। उन्होंने कहा कि आज भारत समस्त विश्व में 40% ऑनलाइन ट्रांजेक्शन करने वाला देश है, यह UPI के कारण संभव हो पाया है। जिस UPI तकनीक को हमने पूर्ण स्वदेशी और बेहद कम बजट में विकसित किया है।
डॉ. आकृति शर्मा ने कहा कि पूसा संस्थान किसानों को सतत विकास के साथ आजीविका कमाने और सतत विकास दोनों को आत्मसात करने का प्रयास करता है। अन्य संस्थानों की मदद से बीजों को सीधे किसानों तक पहुंचाया जाता है। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान (IARI) और भारतीय कृषि अनुसन्धान शोध परिषद (ICAR) दोनों मिलकर यह कार्य करते हैं। कृषि तकनीक को किसानों तक पहुंचाने के लिए वे 15 दिन का शिविर लगाते हैं जिसमें किसानों को 1 लाख तक की कृषि तकनीक के उद्यमी गुर सिखाये जाते हैं तथा इसके लिये वर्कशॉप का आयोजन भी किया जाता है जिसमें वोकल फॉर लोकल और ग्लोबल का ध्यान रखा जाता है। डॉ. विवेक कुमार (IIT- दिल्ली) ने कहा कि गाँवों के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों के रिसर्च का जुड़ना एक महत्वपूर्ण कार्य है जिससे ग्रामीण और जनजातीय समस्याओं को समझा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि टेक 4 सेवा सामाजिक सुविधाकर्ता के रूप में एकल कार्य कर रहा है। वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसन्धान परिषद (CSIR) ने ग्रामीण विकास के लिए 80 तकनीकों का विकास किया है। वंधन योजना और योजक जैसी योजनाओं ने धरातल पर उतरकर काम किया है। वर्तमान में उच्च शिक्षा संस्थानों ने स्नातक और उत्तर स्नातक स्तर पर पाठ्यक्रम में सामुदायिक पढ़ाई सुनिश्चित करवाई है जिससे विद्यार्थी समाज से जुड़ाव महसूस कर सकें।
डॉ. अभय करंधीकर (IIT- कानपुर) ने कहा कि तकनीक का इस्तेमाल गाँवों के लिए किया जाये ऐसी तकनीक विकसित करना सभी उच्च संस्थानों की जिम्मेदारी है। टेक 4 ट्राइबल प्रोग्राम लोगों को स्किल सीखने और तकनीकी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह एक सतत और पर्यावरणीय तकनीक है। जिसमें लोगों को प्रशिक्षित कर उन्हें उद्यमी बनाया जा सकता है।
उपर्युक्त सभी वक्ताओं के पश्चात एकल चेयरपर्सन मंजू श्रीवास्तव ने सभी श्रोताओं और वक्ताओं का धन्यवाद प्रेषित करते हुए कहा कि सभागार में बड़ी संख्या में युवा हैं मैं उनसे कहना चाहूंगी कि युवाओं को इन मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसी के साथ एकल के सभी कार्यकर्ताओं ने सरकार से किसी एक दिन को “नेशनल वॉलेंटरिंग डे घोषित” करने की भी अपील की।
एकल संस्थान अध्यक्ष डॉ. प्रवीण आर्य ने कार्यक्रम का संचालन किया।
संपर्क
सिद्धार्थ शंकर गौतम
प्रचार एवं संपर्क प्रमुख
एकल संस्थान