Monday, November 18, 2024
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Homeचुनावी चौपालन कांग्रेस, न भाजपा, न आप ,यहाँ चुनाव जीता 'बाप' ने

न कांग्रेस, न भाजपा, न आप ,यहाँ चुनाव जीता ‘बाप’ ने

ऋण के 12 लाख रुपए से चुनाव लड़कर मजदूर आदिवासी ने भाजपा व कांग्रेस को धूल चटाई

रतलाम। मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की आदिवासी सीट सैलाना से चुनाव जीतकर कमलेश्वर डोडियार ने सभी राजनीतिक पंडितों को झूठा साबित तो कर ही दिया करोड़ों रुपए खर्च करने वाले भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को भी धूल चटा दी। जय आदिवासी युवा संगठन (जयस) से जुड़े कमलेश्वर डोडियार ने भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी यानी बाप) के टिकट पर चुनाव लड़कर सफलता के झंडे गाड़े हैं। उनकी जीत में आदिवासी समाज के युवाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस सीट पर प्रदेश का सबसे अधिक मतदान (90.08%) हुआ था। यह वोट कमलेश्वर के लिए था।

यहां कांग्रेस दूसरे और भाजपा तीसरे पायदान पर रही। दूसरी बार चुनाव लड़ रहे कमलेश्वर डोडियार को 2018 के चुनाव में 18726 मत मिले थे। इस बार डोडियार ने लंबी छलांग लगाकर कांग्रेस, भाजपा और जदयू को पटखनी दे दी। लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस प्रत्याशी हर्ष विजय गेहलोत को 2018 के मुकाबले इस बार 6996 मत कम मिले, वहीं भाजपा से तीसरी बार मैदान में रही संगीता चारेल को 4515 मत कम मिले। डोडियार ने दोनों दलों के मतों में सेंध लगाई है।

युवाओं की टीम ने गांव-गांव, मजरे, टोले, फलियों में जाकर मतदाताओं को अपनी पार्टी (जयस) का नारा देते हुए साथ देने के लिए जमकर मेहनत की। इससे पहले जिला पंचायत के चार वार्डों में जयस समर्थित उम्मीदवारों को मिली जीत ने जोश भर दिया था। इसके अलावा नए दल को लोगों ने भरपूर समर्थन दिया। कार्यकर्ताओं को जीवंत संपर्क भी काम आया।

रहने को झोपड़ी… बारिश में उस पर तिरपाल डालकर पानी से बचने की जुगत… मतगणना के दौरान जैसे-जैसे अंतर बढ़ता रहा आसपास के लोग बेटे को जीत की बधाई देते रहे, पर मां सीताबाई मजदूरी में व्यस्त रहीं। 33 साल के कमलेश्वर डोडियार ने भारत आदिवासी पार्टी से इस सीट पर जीत का परचम फहराकर सभी को चौंकाया है। डोडियार ने 4618 मतों से जीत हासिल की है। मजदूर परिवार में पले-बढ़े झोपड़ी से निकले डोडियार ने ग्रेजुएशन के बाद 4 साल तक राजस्थान के कोटा में मजदूरी की। बचपन से लेकर अब तक गरीबी को नजदीक से देखा। उनके पिता ओंकारमल के दोनों हाथों में फ्रैक्चर है। झोपड़ी पर तिरपाल लगाते समय गिरने से एक हाथ जख्मी हुआ तो दूसरा हाथ छह माह पूर्व हुई एक दुर्घटना में।

कमलेश्वर की जीत से बेखबर था परिवार। मां तो मजदूरी पर गईं थीं। कमलेश्वर यह कहते हुए भावुक हो गए कि जिस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया, आज उसी जगह अपनी विधायकी का प्रमाण पत्र लिया।

लूणी ग्राम पंचायत में राधा कुआं गांव निवासी कमलेश्वर छह भाइयों और तीन बहनों में सबसे छोटे हैं। करीब ढाई सौ की आबादी वाले इस गांव में छितरी हुई बस्ती है, यानी अधिकांश झोपड़ीनुमा मकान अलग-अलग दूरी पर हैं। कमलेश्वर मजदूरी करते थे, लेकिन अमरीका के बराक ओबामा से प्रेरित होकर राजनीति में आने का मानस बनाया। डोडियार कहते हैं कि बीते दस साल से राजनीतिक रूप से स्वयं का धरातल मजबूत करने में जुटे रहे।

डोडियार के माता-पिता ने मजदूरी कर अपने परिवार का लालन-पालन किया। अभी भी मां मजदूरी पर जाती है। आठवीं तक गांव में चिमनी की रोशनी में पढ़ाई की। बाद में पढ़ने के लिए रतलाम आए और अंग्रेजी साहित्य विषय के साथ ग्रेजुएशन किया। पढ़ाई के दौरान टिफिन बांटते थे। डोडियार यह कहते हुए भावुक हो गए कि जिस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया, आज उसी जगह अपनी विधायकी का प्रमाण पत्र लिया। ग्रेजुएशन के बाद मजदूरी के लिए राजस्थान के कोटा गए। बाद में पढ़ाई का मन हुआ और एलएलबी के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। रहने-खाने के लिए आर्थिक परेशानी भी आड़े आई। अनुत्तीर्ण हो गए तो घर लौटे और मजदूरी शुरू की। रुपए जुटाकर फिर दिल्ली गए और एलएलबी पूरी की।

कहने, सुनने और देखने में तो यह असम्भव सा लग रहा है लेकिन कमलेश्वर ने 12 लाख का कर्ज लेकर चुनाव लड़ा। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार हर्ष विजय गहलोत को 4618 वोट से मात दी। कमलेश्वर को 71,219 वोट मिले और हर्ष विजय को 66,601 वोट। भाजपा की संगीता चारेल तीसरे स्थान पर रहीं।

सैलाना सीट की बात करे तो गहलोत परिवार की गढ़ माने जाने वाली सीट पर प्रभुदयाल गहलोत 1967 से पहली बार एमएलए बने थे। उसके बाद 1972, 1980 और 1985 में जीते। 1993 में निर्दलीय चुनाव लड़े और हार गए। 1998 में निर्दलीय जीत दर्ज की और 2003 और 2008 में कांग्रेस में वापसी कर विधायक बने। 2013 में बीजेपी की संगीता ने जीत दिलाई। लेकिन 2018 में फिर यह सीट गेहलोत परिवार के हर्ष विजय के पास गई।

एक निवेदन

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