राजनांदगांव। प्रख्यात लेखक, आलोचक और संस्कृति चिंतक डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय की अहम यादें संस्कारधानी से भी जुड़ी हैं। 2005 के सितंबर माह में जिस दौर में यहां मुक्तिबोध स्मारक-त्रिवेणी संग्रहालय की स्थापना हुई थी, तब वे यहां आये थे। उनका संबोधन मील का पत्थर सिद्ध हुआ था। यह जानकारी साझा करते हुए दिग्विजय कालेज के हिंदी विभाग के प्राध्यापक डॉ.चंद्रकुमार जैन ने बताया कि भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक और साहित्यिक पत्रिका नया ज्ञानोदय के संपादक के नाते डॉ.प्रभाकर जी ने यहां आयोजित तीन दिवसीय साहित्य महोत्सव त्रिधारा में शामिल होने के बाद अपने सम्पादकीय में शहर की साहित्य विरासत को संजोने की पहल की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए प्रदेश के मुखिया डॉ. रमन सिंह जी, मुख्यमंत्री को खास तौर पर छत्तीसगढ़ शासन को साधुवाद दिया था। उनका मंतव्य था कि यह स्मारक बनाकर और साहित्यकारों को ऎसी कृतज्ञ श्रद्धांजलि देकर शहर ने वास्तव में संस्कारधानी नाम को चरितार्थ कर दिखाया है। भव्य आयोजन का सूत्र संयोजन डॉ.जैन ने किया था।
दूसरी तरफ साल भर पहले भोपाल में हुए दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्हें विश्व हिंदी सम्मान से विभूषित किया गया था, जिसके डॉ.चंद्रकुमार जैन स्वयं साक्षी बने थे। तब भी अपनी भेंट में उन्होंने राजनांदगांव को शिद्दत से याद किया था। डॉ.जैन ने बताया कि कल 15 सितंबर को डॉ. प्रभाकर जी ने भौतिक रूप से संसार से विदा ली, किन्तु अपनी लेखनी और चिंतन के आलोक में वे सदैव विद्यमान रहेंगे। हिंदी आलोचना, साहित्यिक पत्रकारिता और सृजात्मक साहित्य में भी उनका योगदान स्मरणीय है। खासकर नाटकों के क्षेत्र में उनकी कलम ने कमाल किया है। वे मध्यप्रदेश साहित्य परिषद के सचिव एवं साक्षात्कार व अक्षरा के संपादक रहे हैं।
भारतीय भाषा परिषद के निदेशक एवं वागर्थ के संपादक पद पर कार्य करने के साथ-साथ वे भारतीय ज्ञानपीठ नई दिल्ली के निदेशक पद की ज़िम्मेदारी उन्होंने सँभाली। वे भाषा, साहित्य और संस्कृति से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के सदस्य रहे। इसके अलावा साहित्यिक जगत उन्हें प्रखर और मार्गदर्शक सम्पादक के रूप में भी जानता है। डॉ.चंद्रकुमार जैन ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते है कि डॉ. श्रोत्रिय जी की यादों का कारवाँ शहर से भी सतत संवाद करता रहेगा।