इन दिनों असामाजिक तत्वों द्वारा ‘फेक न्यूज़’ यानी सच्चे-झूठे वीडियो और समाचारों को समाज में विषक्त्ता, अशांति और उन्माद फैलाने की गरज़ से वायरल करने की होड़-सी मची हुयी है। क्या सही है और क्या ग़लत, पाठक-श्रोता-दर्शक के लिए यह निर्णय कर पाना मुश्किल है।सोशल मीडिया पर डाली गयी ऐसी विवादित,भ्रामक और उत्तेजक सामग्री की पड़ताल के लिए आचार-संहिता को और कठोर बनाने की सख्त ज़रूरत है। फेक न्यूज़ यानी झूठी खबरें! गलत और भ्रामक जानकारी!! जबसे इंटरनेट और खासकर सोशल मीडिया आया है, तबसे झूठी खबरों या झूठे और भ्रामक वीडियो के प्रचार-प्रसार ने विकराल रूप धारण कर लिया है। तेज़ी से विकसित होते ऑनलाइन मीडिया परिदृश्य को कण्ट्रोल में रखने के लिए कानूनों को अद्यतन करते रहने की भी आवश्यकता है।
एक ऐसा सेल/प्रकोष्ठ बनाया जाय, जो हमारे देश में नफ़रत, वैमनस्य और जातिगत विद्वेष फैलाने के लिए उत्तेजनापूर्ण भाषण देते हैं या फिर ग़लत तरीके से बनाये गए वीडियो-क्लिप्स इंटरनेट पर उपलोड करते हैं, उन पर कड़ी नजर रखी जाय,उन्हें चिन्हित किया जाय और पकड़े जाने पर कठोर दंड दिया जाय । अभिव्यक्ति की आज़ादी की आड़ में देश में बड़ा अनर्थ हो रहा है और कोई कुछ भी बोल/लिख देता है या नेट पर कुछ भी डाल देता है।इससे दूसरों को भी अनर्गल बोलने की शह मिलती है।अभी हाल ही मैं मणिपुर में हुयी वीभत्स घटना के वीडियो ने कैसे समूचे देश को हिला कर रख दिया,उसके दुष्प्रभाव से देश अभी तक भी उबर नहीं पा रहा।इस दुष्प्रचार को बढ़ावा देने में संलग्न समाज-कंटकों को नाथने का तुरंत इंतजाम होना चाहिए अन्यथा विकास का हमारा सपना अधूरा रह जायेगा।
(डॉ. शिबन कृष्ण रैणा)
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