यह जो भरतखंड है या कुमारिका खंड है अथवा कुमारी अंतरीप है, वह भारतवर्ष का एक भाग है । उसकी सीमा भी दक्षिणी विशाल हिंदू महासागर से संपूर्ण हिमालय क्षेत्र है अर्थात उत्तर कुरू तक यानी चीन रूस साइबेरिया तक।
कहीं-कहीं उसे गंगा नदी के उद्गम तक ही कहा गया है। उसके ऊपर के क्षेत्र अलग कहे गए हैं। परंतु जो सबसे महत्वपूर्ण बात है ,वह यह है कि 19वीं शताब्दी ईस्वी में यूरोप में पहली बार प्रचारित nation-state वाले अर्थ में ही भारत को एक स्थिर क्षेत्र मान लेना तो भारत की महान ऐतिहासिक परंपरा और शास्त्र परंपरा का निपट अज्ञानहै। चक्रवर्ती हिन्दू राजा सदा संपूर्ण पृथ्वी पर शासन करने के अभिलाषी रहे हैं और प्रयास करते रहे हैं और समय-समय पर वे संपूर्ण पृथ्वी के राजा यानी सम्राट होते रहे हैं । संपूर्ण जंबूद्वीप अथवा संपूर्ण यूरेशिया में तो हजारों हजार वर्ष भारतवर्ष की व्याप्ति रही है ।
यह मानना कि हमारे लोग कभी कहीं आक्रमण नहीं किए, यह पता नहीं किन मूर्खों ने कहां से क्या रट लिया और उन दयनीय अज्ञानियों पर तरस भी आता है और क्रोध भी आता है । शासक का काम है यानी राजा का काम है सीमाओं का निरंतर विस्तार। दीन हीन लोग भारत के शासक होने के योग्य नहीं हैं। इसी प्रकार मुसलमानों या अंग्रेजों की निरर्थक निंदा करते बैठना नपुंसकता और मूर्खता है । मुसलमान तो बिना हिंदुओं की साझेदारी के 1 दिन भी भारत के किसी हिस्से में शासक नहीं रहे और अंग्रेज भी हिंदुओं की तथा मुसलमानों की साझेदारी से ही आधे भारत में 90 वर्ष कुल शासक रहे ।आप उनसे कम वीर स्वयं को किस आधार पर मानते हैं ?क्लीव हैं क्या?
इसी प्रकार, अंग्रेजों के प्रति घृणा या क्रोध व्यक्त करते बैठना केवल क्लीव पुरुषों के लक्षण हैं और उनकी प्रशंसा करते बैठना तो पूरी तरह दास बुद्धि और दीन हीन लोगों के लक्षणहैं। हमारे चक्रवर्ती शासक सदा विरोधी से भी सीखते रहे हैं और हमें अर्थात हमारे वरिष्ठ शासकों को इंग्लैंड से सीखकर कैसे भिन्न या विरोधी राज्यों में पैठ बनाना, कैसे वहां क्रमशः प्रभाव फैलाना ,कैसे उन सब में भारतवर्ष की ऐतिहासिक स्मृति जगाना :-
यह सब कार्य करने योग्य है ।
हम अंग्रेजों की नकल नहीं कर सकते क्योंकि वह तो निरा झूठ ही रचरहे थे । हमें किसी झूठ की आवश्यकता नहीं है। हमें तो केवल इस संपूर्ण यूरेशिया की वास्तविक स्मृति जगाने का काम करना है । परंतु उसके लिए विरोधी क्षेत्र में किस प्रकार जाना, किस प्रकार वहां प्रभाव फैलाना, कैसे वहां अपने समर्थकों को इकट्ठा करना, उनकी प्रज्ञा और स्मृति को जागृत करना और भारत के मूल स्वरूप को पुनः प्रतिष्ठित करना :-
यह किसी भी यश के अभिलाषी शासक का कर्तव्य है और यह काम कुछ भी कठिन नहीं है ।इसके लिए महासंघ जैसा कुछ युगानुरूप रचना होगा।
25 से 50 वर्षों के अंतर्गत कोई भी यशस्वी शासक इसे पुरुषार्थ से कर सकता है।
टिप्पणी:मोदी जी का महत्व यह है कि यह सब हम सहज ही कह पा रहे हैं।सोनिया गांधी के समय इसी के लिए प्रताड़ित होते।कह तो देते पर सताए जाते।