Monday, November 25, 2024
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फिल्म अभिनेता इरफान खान का 54 साल की उम्र में निधन

फिल्म अभिनेता इरफान खान का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. वो लंबे समय से कैंसर से जंग लड़ रहे थे. इरफान ने आज सुबह 11 बजे के करीब मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में आखिरी सांस ली. मंगलवार को अचानक उनकी तबीयत बिगड़ गई थी जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उन्हें आईसीयू में रखा गया था.

उन्हें कोलोन इन्फेक्शन के चलते अस्पताल में भर्ती करवाया गया था. देर रात ये भी दावा किया गया था कि अब उनकी तबीयत में सुधार है और उनकी मौत की खबरें झूठी हैं. लेकिन आज सुबह उनकी मौत की जानकारी दी गई. इरफान खान की मौत की जानकारी देते हुए परिवार की ओर से आधिकारिक बयान जारी किया गया है, जो काफी भावुक कर देने वाला है.

जारी बयान में कहा गया, ” ‘मुझे भरोसा है, मैंने आत्मसमर्पण कर दिया है’. इरफान खान अक्सर इन शब्दों का प्रयोग किया करते थे. साल 2018 में कैंसर से लड़ते समय भी इरफान ने अपने नोट में ये बात कही थी. इरफान खान बेहद कम शब्दों में अपनी बात कहा करते थे और बात करने के लिए आंखों का ज्यादा इस्तेमाल करते थे.”

इरफान खान इस समय बीमारी के साथ-साथ काफी इमोशनल दौर से गुजर रहे थे. 25 अप्रैल को ही इरफान खान की मां सईदा बेगम का निधन हुआ था. हालांकि कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन के चलते वो अपनी मां के अंतिम दर्शन तक नहीं कर सके थे. इरफान खान ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए अपनी मां को अंतिम विदाई थी.

इरफान खान ने इसी साल मार्च महीने में मुंबई मिरर को एक इंटरव्यू दिया था. जिसमें उन्होंने कहा था कि मेरे लिए ये दौर रोलर-कोस्टर राइड जैसा रहा, जिसमें हम थोड़ा रोए और ज्यादा हंसे. उन्होंने कहा कि इस दौरान मैं बहुत ही भयंकर बेचैनी से गुजरा, लेकिन कहीं न कहीं मैंने उसे कंट्रोल किया. ऐसा लग रहा था मानो कि आप लगातार अपने साथ हॉपस्‍कॉच खेल रहे हों.

उनका कहना था कि इस वक्त को मैंने अपनों के लिए जिया. इसमें सबसे अच्छी बात ये थी कि मैंने बेटों के साथ बहुत वक्त बिताया. उनको बड़ा होते देखा. टीनएज के लिए ये बहुत ही अहम वक्त होता है. जैसे मेरा छोटा बेटा है, बड़ा वाला अब टीनएज नहीं रहा. पत्नी सुतापा सिकदर (Sutapa Sikdar) के बारे में बाते करते हुए उन्होंने कहा कि उसके बारे में क्या कहूं? वो मेरे लिए सातों दिन 24 घंटे खड़ी रही. मेरी देखभाल की और उनके कारण मुझे बहुत मदद मिली. इरफान ने कहा कि मैं अभी तक हूं, इसकी वो एक बड़ी वजह है और अगर मुझे जीने का मौका मिलेगा, मैं उसके लिए जीना चाहूंगा

खुद सोशल मीडिया के जरिए कही थी ये बात
इरफान खान ने साल 2018 में अपनी बीमारी के बारे में खुद खुलासा किया था. उन्होंने फैंस के साथ बेहद भावुक कर देने वाला नोट साझा किया था. इरफान ने ट्वीट में लिखा था, ”अप्रत्याशित चीज़ें हमें आगे बढ़ाती हैं, मेरे पिछले कुछ दिन ऐसे ही रहें हैं, मुझे पता चला है कि एंडोक्राइन ट्यूमर है. इससे गुजरना काफी मुश्किल है. लेकिन मेरे आस पास लोगों का जो प्यार और साथ है उससे मुझे उम्मीद है. इसके लिए मुझे देश से बाहर जाना पड़ेगा. मैं सबसे गुजारिश करूंगा कि मुझे अपनी दुआओं में शामिल रखें, जैसी अफवाहें थीं मैं बताना चाहूंगा कि न्यूरो का मतलब हमेशा सिर्फ दिमाग से नहीं होता, आप गूगल के जरिए इसके बारे में रिसर्च कर सकते हैं.”

अपने योगदान के लिए इरफान खान को कई बड़े पुरस्कारों से नवाजा जा चुका था. इरफान खान को 2011 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा साल 2012 में उन्हें फिल्म पान सिंह तोमर के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. इन्हें 2004 में बेस्ट एक्टर फॉर निगेटिव रोल के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया था. इसके अलावा 2008 में बेस्ट एक्टर इन सपोर्टिंग का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला था.

ये था इरफान खान का आखिरी ट्वीट
इसी महीने 12 अप्रैल को इरफान ने आखिरी ट्वीट किया था. जिसमें उन्होंने लिखा था, ”मिस्टर चंपक का स्टेट ऑफ माइंड इस समय, अंदर से प्यार, जिसे वो बाहर दिखाना चाहता है.” इरफान खान ने ये ट्वीट अपनी आखिरी फिल्म के ऑनलाइन रिलीज होने के मौके पर किया था.

वेब दुनिया में इरफान खान ने अपने बचपन को लेकर विस्तार से बताया था

दोस्तों, मेरा जन्म जयपुर में हुआ और यहीं मैं पला और बड़ा हुआ। स्कूल के दिनों से ही मैं पढ़ने में बहुत तेज स्टूडेंट नहीं था। और खासकर स्कूल जाने से मुझे बहुत चिढ़ होती थी। सुबह 6.30 बजे स्कूल जाना और दोपहर में 4 बजे तक वापस आना मुझे बहुत बोरिंग काम लगता था।

इसके बजाय मुझे क्रिकेट खेलना बहुत ही अच्छा लगता था। मैं अपने पड़ोस में और चौगान स्टेडियम में जाकर क्रिकेट खेलने में खूब रुचि लेता था और बड़ा होकर क्रिकेटर ही बनना चाहता था। क्रिकेट में मेरी प्रैक्टिस भी खूब अच्छी थी और सीके नायडू ट्रॉफी के लिए मेरा सिलेक्शन भी लगभग हो गया था। पर जब घर पर सभी को यह बात मालूम हुई तो उन्होंने इसके लिए इजाजत नहीं दी। घर पर सभी को यह ठीक नहीं लगा कि मैं क्रिकेट खेलूँ। इस तरह मेरा क्रिकेट छूट गया।

क्रिकेट छोड़ने के बाद मुझे ठीक तरह से ग्रेजुएशन करने को कहा गया। पता नहीं कुछ भारी-भरकम विषय भी मुझे दिला दिए गए ताकि मेरा ध्यान पढ़ाई में ही लगा रहे। वैसे अब मुझे लगता है कि पढ़ाई करने से मुझे बहुत सारी चीजों की समझ मिली वरना मैं किसी काम में आगे नहीं बढ़ पाता। पर ग्रेजुएशन के साथ ही मैंने एक्टिंग की तरफ भी ध्यान देना शुरू किया। पहले मैं कुछ नए कलाकारों के साथ एक्टिंग सीखने की कोशिश करने लगा। फिर मेरी मुलाकात नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के एक शख्स से हुई। वे कॉलेजों में जाकर नाटक किया करते थे। मैं भी उनके साथ उनकी टीम में शामिल हो गया और स्टूडेंट्‍स के साथ कॉरिडोर में, क्लासरूम में और कैंटीन में ड्रामा करते हुए ही एक्टिंग के प्रति मेरी समझ बढ़ी और मैं इस दिशा में करियर को लेकर गंभीर हुआ।

बड़ा होने पर कोई डॉक्टर बन जाता है तो कोई एक्टर। बड़ा होने पर चाहे हम कुछ भी बन जाएँ पर सभी को अपने बचपन के दिनों की याद तो आती ही है। बचपन के दिन सबसे मजेदार होते हैं। इन दिनों की घटनाएँ बड़ा हो जाने पर ही कहीं ना कहीं याद आती ही है।

इसके बाद सीरियल और फिल्में मिलने लगी और फिर इरफान खान अभिनेता हो गए। फिल्मों में भी मैं अपने रोल को लेकर बहुत ज्यादा मेहनत करता हूँ। मुझे लगता है कि काम को दिल लगाकर करना चाहिए। यह बात आप सभी पाठकों के लिए भी जरूरी है। क्योंकि इन दिनों अगर आप दिल लगाकर पढ़ाई करेंगे तो अच्छे नंबरों के साथ अगली कक्षा में जाओगे।

एक निवेदन

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