मीडिया के नाम पर नंगे नाच और अराजकता के ढोल बजाने पर अंकुश के नए नियम सामने आने के कुछ घंटे बाद से हाहाकार मच गया | मानो पहाड़ टूट गया , जमीन फट गई , मीडिया को बेड़ियों से जकड़ दिया , लोकतंत्र ख़त्म और तानाशाही आ गई | टी वी समाचार चैनलों पर कुछ गंभीर मुद्दे भी उठे , लेकिन मनमानी और स्वछंदता के कुछ समर्थक गुस्से और नकली रोने में सही बात न तो कहने देते हैं और सुनने का तो सवाल ही नहीं | जैसे मीडिया की आज़ादी को केवल वह समझते हैं और उसके उपयोग का एकाधिकार उनका ही है | चैनल पर समय सीमा है , इसलिए ट्वीटर , इंस्टाग्राम , फेसबुक , वेबसाइट , यू ट्यूब इत्यादि हैं और नए नियम तीन महीने बाद लागू हो सकते हैं | इस बीच इनमें से कुछ चतुर सुजान विदेशों से वैध या अवैध फण्ड जुटा लेंगें ताकि नियम कानून के खिलाफ अभियान चला संकें | जो असहमत हो और नियमों को सही ढंग से लागू करने की हिमायत और आवश्यक सुधार के सकारात्मक सुझाव दें , उन्हें सत्ता के दलाल , चाटुकार आदि गलियां देकर अपने प्लेटफार्म पर रोएं चिल्लाएं |
दुनिया के लोकतान्त्रिक देशों में मीडिया के लिए मार्गदर्शी नियम कानून हैं और उनका पालन बहुत हद तक होता है | नियम तोड़ने पर विश्व मीडिया सम्राट मुर्डोक को लंदन में अपना एक अख़बार तक बंद करना पड़ा , अमेरिका में गलत और मानहानि के मामलों पर करोड़ों डॉलर का जुर्माना देना पड़ता है | हमसे काबिल कथित मीडिया संपादक प्रकाशक और विशेषज्ञ क्या पिछले सत्तर वर्षों में किसी मीडिया संस्थान द्वारा करोड़ों न सही लाखों का जुर्माना भरे जाने और तीन साल न सही दस महीने जेल में रखे जाने का विवरण दे सकते हैं ? प्राथमिकी , नोटिस , मुकदमे आदि में वर्षों लगने और न्याय पालिका की उदारता अथवा आपसी समझौते से मामला निपट जाता है | मानहानि के एक बेहद गंभीर मामले में भी सर्वोच्च अदालत ने प्रतीकात्मक एक रूपये का जुर्माना लगा दिया | शक्ति सम्पन्न आरोपी तो उस एक रूपये की सजा स्वीकारने को तैयार नहीं हैं | जब कानून के जानकार ही कानून और अदालत का सम्मान करने को तैयार नहीं होंगे , तो दूर दराज बंदूक लिए बैठा नक्सली कुछ भी लिखने बोलने और धमकी – हत्या करने से क्यों चूकेगा ?
देश के सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर प्राम्भिक काल में पत्रकार रहे है और भले राजनेता हैं | लेकिन लगता है कि इमर्जेंसी , सेंसरशिप आदि के काल खंड से विचलित रहने के कारण उन्हें यह गलत धारणा और मंत्री के नाते गलत सूचना है कि वर्तमान प्रेस परिषद् के नियम और मार्गदर्शी आचार संहिता का पालन भारत का सम्पूर्ण प्रिंट मीडिया कर रहा है | तीन चार दशक पहले कम से कम अख़बार या पत्रिका में प्रेस परिषद् द्वारा दोषी ठहराए गए निर्णय किसी पृष्ठ पर छाप देते थे | अब तो वह भी नहीं होता | प्रेस परिषद् के अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश होते हैं , विभिन वर्गों के प्रतिनिधि सदस्य होते हैं , दफ्तर , खर्चें , बैठकें , निर्णय होते भी हैं , लेकिन प्रभावशाली मीडिया कम्पनियाँ कोई परवाह नहीं करती और जरुरत हो तो किसी जूनियर मैनेजर और वकील को औपचारिकता पूरी करने का दायित्व सौंप देती हैं | एडिटर्स गिल्ड में वरिष्ठ सम्पादकों की सलाह से बनी आचार संहिता का लोकार्पण राष्ट्रपति डॉ, ए पी जे अब्दुल कलाम ने किया था | इसका ध्यान अब भी कई संपादक और प्रकाशन रखते हैं , लेकिन सूचना मंत्रालय कृपया एक सही सर्वेक्षण करवा ले , तो पता चल जायेगा कि देश के हजारों प्रकाशनों में से कितनों को प्रेस परिषद् के नियमों और आचार संहिता की जानकारी तक है ? आज़ादी की लड़ाई 73 साल पहले ख़त्म हो गई , लेकिन आजादी के नाम पर आज भी एक साधारण कागजी खानापूर्ति करके कोई भी संपादक प्रकाशक बन जाता है और छापने के लिए स्वच्छंदता का इस्तेमाल कर रहा है |
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने महीनों तक विभिन्न देशी विदेशी संस्थानों , विशेषज्ञों , विधिवेत्ताओं से विचार विमर्श के बाद आधुनिक डिजिटल मीडिया के लिए आचार संहिता और आवश्यक मार्गदर्शी नियमावली की घोषणा की है | इसलिए यह आलोचना अजीब लगती है कि महीने भर पहले लाल किले पर हुए अपराध और किसान आंदोलन के नाम पर सोशल मीडिया में हुए कुप्रचार अथवा उत्तेजक असत्य सूचनाओं के अंतर राष्ट्रीय प्रसार के कारण यह नियम लादे जा रहे हैं | भारत ही नहीं अमेरिका , ब्रिटैन , फ्रांस , जापान जैसे देशों में भी डिजिटल युग में नए नियम कानूनों पर विचार विमर्श ही नहीं हो रहा , पहले से तय नियम सही ढंग से लागु करने के प्रयास हो रहे हैं | मोदी सरकार ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के संरक्षण के संकल्प के साथ उसमें कोई संवैधानिक संशोधन नहीं किया है | लेकिन उस अधिकार के साथ भारत की सम्प्रभुता , जवाबदेही और समाज से उठने वाली शिकायतों के निवारण , सुधार के लिए स्वायत्तशासी नियामक बनाने का प्रावधान किया गया है | जिस तरह अन्य अपराधों के लिए दंड का प्रावधान हैं , डिजिटल मीडिया – देशी विदेशी कंपनी में उत्तरदायी व्यक्ति का नाम तय होने पर सजा दिए जाने की व्यवस्था की जा रही है |
विदेशी कंपनियों को तो फिर भी कड़ाई से नियंत्रित किया जा सकता है , लेकिन महानगर से लेकर सुदूर जंगल में बैठकर वेबसाइट या वीडियो बनाकर सच झूठ मिलाकर प्रसारित करने वालों की जानकारी भी किसी राज्य , केंद्र सरकार के पास नहीं है | इसमें कोई शक नहीं कि हाल के वर्षों में नए संचार साधनों और सोशल मीडिया को जिम्मेदारी से उपयोग करने वाले लगों से समाज में जागरूकता लाने , सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने की सुविधाएं हुए हैं | यही नहीं इसके सकारात्मक और आर्थिक लाभ के रस्ते भी खुले हैं | डिजिटल टेक्नोलॉजी क्रांति से हाल के वर्षों में पचास हजार नए स्टार्टस अप शुरू हुए हैं | हर साल लगभग 11 से 14 अरब डॉलर का पूंजी निवेश हो रहा है | करीब सत्तर करोड़ लोगों तक इंटरनेट सुविधा पहुँचने लगी है और डिजिटल मीडिया कंपनियों के दावों के अनुसार करीब पचास करोड़ लोग सोशल नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे हैं | आर्थिक पैमाने पर जरूर अमेरिका और चीन भारत से आगे हो सकते हैं , लेकिन लोकतान्त्रिक उपयोग की दृष्टि से भारत सबसे आगे है | वहीँ इस बात का ध्यान रखना होगा कि भारत में अब भी शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम होना है | अधिकार के साथ नैतिक और राष्ट्रीय सामरिक हितों को सुरक्षित रखना है |
अमेरिका या चीन में सांप्रदायिक , जातीय , भाषाई , सीमावर्ती गंभीर समस्याएं नहीं हैं | जर्मनी या ब्रिटेन में उग्रवादी संगठन और सीमा से घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों के खतरे भारत की तरह नहीं हैं | कुछ घटनाएँ होती हैं , तो उनके लड़ाकू विमान सीमा पार कर हमले तक कर देते हैं | वे मानव अधिकार की दुहाई भले ही देते हों , सामान्य केमिकल फॉर्मूले या डिजिटल टेक्नोलॉजी के आरोप में एक दो साल तक नजरबन्द और पांच दस साल तक की सजा हो जाती हैं | रक्षा सौदों में घोटालों पर भारत में मीडिया , राजनीतिक दल और कई संगठन निरंतर आवाज उठाते हैं , लेकिन छोटे प्रकाशन या वेबसाइट अथवा सोशल मीडिया की आड़ में हथियारों की खरीदी या दलाली के बारे में सरकार के पास भी आधिकारिक जानकारी का तंत्र नहीं है | नए नियम से क्या ऐसे लोगों का रिकार्ड सार्वजनिक हो सकेगा ?
डिजिटल मीडिया की नई आचार संहिता में अश्लीलता और हिंसा की सारी सीमाओं का उल्लंघन करने वाले सीरियल , फिल्म , गाने आदि का प्रदर्शन करने वाले प्लेटफार्म पर अंकुश की व्यवस्था की गई है | दुनिया भर में बच्चों को इस तरह के डिजिटल दुष्प्रभाव से बचाने के अभियान चल रहे हैं | यह कहना कि आप स्वयं उसे रिमोट से बंद कर न देखें , लेकिन अपने देश में तो सरकारें ही गावों तक मुफ्त आई पेड , मोबाइल , लेप टॉप बच्चों को बाँट रही हैं , वहां माँ बाप चौबीस घंटे कैसे पहरेदारी कर सकेंगें ? हाल के वर्षों में बलात्कार , आत्म हत्या और अन्य अपराधों की घटनाओं में वृद्धि का एक कारण स्वछंद सोशल डिजिटल मीडिया भी है | इसलिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता , सरकार की आलोचना और विरोध की पूरी छूट के साथ समाज को पतन के गर्त से बचाने और भविष्य को अधिक स्वस्थ्य , सुखी , सुरक्षित रखने के लिए उचित समय और सही ढंग से आचार संहिता लागू होनी चाहिए | उम्मीद की जानी चाहिए कि यह विषय अदालतों के सामने जाने पर न्यायाधीश आवश्यक सलाह दे दें , लेकिन इसे और प्रभावी ढंग से लागू किये जाने का पथ प्रशस्त करें |
( लेखक पद्म श्री सम्मानित संपादक और एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इण्डिया के पूर्व अध्यक्ष हैं )