वैश्वीकरण के इस दौर में हिन्दी का विस्तार और प्रभाव पूरे विश्व में देखने को मिल रहा है। हिन्दी भारत की सीमाओं से बाहर कई देशों में अपनी पहचान बना चुकी है। भारत में भी वह सम्पर्क की प्रमुख भाषा है। महात्मा गांधी ने कहा था कि इस देश में हिन्दी ही सम्पर्क की भाषा हो सकती है। लेकिन, महात्मा गांधी की बात को सत्ताधीशों ने गंभीरता से नहीं लिया। अलबत्ता, हम देखते हैं कि संकुचित राजनीति के कारण उपजे भाषाई विरोध के बावजूद भी आज पूरे देश में हिन्दी बोलने, पढऩे, लिखने और समझने वाले लोग मिल जाते हैं। उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक भारत में हिन्दी लोकप्रिय है और सम्पर्क-संवाद की सेतु है। वह विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। साहित्य की रचना हो रही है। हिन्दी की श्रेष्ठ पुस्तकों को अनुवाद भारतीय भाषाओं में और भारतीय भाषाओं में रची गईं महत्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद हिन्दी में हो रहा है। एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि हम भले ही अपने भाषायी समाज में अपनी भाषा-बोली में बात करते हैं लेकिन जब किसी दूसरे समाज के व्यक्ति से बात करनी होती है तो हिन्दी ही माध्यम बनती है। जैसे- मराठी और मलयालम बोलने वाले आपस में संवाद करते हैं तो हिन्दी में। इस तरह हिन्दी सबकी भाषा है।
हिन्दी लम्बे समय से सम्पूर्ण देश में जन-जन के पारस्परिक सम्पर्क की भाषा रही है। दक्षिण भारत के आचार्यों वल्लभाचार्य, रामानुज, रामानंद आदि ने भी इसी भाषा के माध्यम से अपने मतों का प्रचार किया था। अहिन्दी भाषी राज्यों के भक्त-संत कवियों (जैसे—असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर व नामदेव, गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य आदि) ने इसी भाषा को अपने धर्म और साहित्य का माध्यम बनाया था। यही कारण था कि जनता और सरकार के बीच संवाद में फ़ारसी या अंग्रेज़ी के माध्यम से दिक्कतें पेश आईं तो कम्पनी सरकार ने फ़ोर्ट विलियम कॉलेज में हिन्दुस्तानी विभाग खोलकर अधिकारियों को हिन्दी सिखाने की व्यवस्था की थी। यहाँ से हिन्दी पढ़े हुए अधिकारियों ने भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में उसका प्रत्यक्ष लाभ देकर मुक्त कंठ से हिन्दी को सराहा।
सी. टी. मेटकाफ़ ने 1806 ई. में अपने शिक्षा गुरु जॉन गिलक्राइस्ट को लिखा— ‘भारत के जिस भाग में भी मुझे काम करना पड़ा है, कलकत्ता से लेकर लाहौर तक, कुमाऊँ के पहाड़ों से लेकर नर्मदा नदी तक मैंने उस भाषा का आम व्यवहार देखा है, जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी है। मैं कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक या जावा से सिंधु तक इस विश्वास से यात्रा करने की हिम्मत कर सकता हूँ कि मुझे हर जगह ऐसे लोग मिल जाएँगे जो हिन्दुस्तानी बोल लेते होंगे।’ वहीं टॉमस रोबक ने 1807 ई. में लिखा था कि जैसे इंग्लैण्ड जाने वाले को लैटिन सेक्सन या फ्रेंच के बदले अंग्रेजी सीखनी चाहिए, वैसे ही भारत आने वाले को अरबी-फारसी के बदले हिन्दुस्तानी सीखनी चाहिए। जबकि विलियम केरी ने 1816 ई. में लिखा था- ‘हिन्दी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है।’ इसी तरह एच. टी. कोलब्रुक ने लिखा था- ‘जिस भाषा का व्यवहार भारत के प्रत्येक प्रान्त के लोग करते हैं, जो पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ दोनों की साधारण बोलचाल की भाषा है, जिसको प्रत्येक गाँव में थोड़े बहुत लोग अवश्य ही समझ लेते हैं, उसी का यथार्थ नाम हिन्दी है।’
भारत की सीमा से बाहर विश्व फलक पर निगाह दौड़ाएं तो हिन्दी का सुखद संसार नजर आएगा। दुनिया में हिन्दी को फलते-फूलते देखकर निश्चित ही प्रत्येक भारतीय और हिन्दी प्रेमी को सुखद अनुभूति होगी। बात बाजार-व्यापार की हो या फिर संस्कार की, विश्व कुटुम्ब में बदलती दुनिया की निगाह भारत की ओर है और उसकी समृद्ध भाषा हिन्दी की ओर भी है। एक ओर जहां मॉरिशस, त्रिनिदाद, टोबैगो, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम और फिजी जैसे देशों में प्रवासी भारतीय अपनी विरासत के तौर पर हिन्दी को पाल-पोस रहे हैं तो दूसरी ओर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जर्मनी, पौलेंड, कोरिया, रूस, आस्ट्रेलिया, कनाडा जैसे दूसरे देशों के लिए यह बाजार की जरूरत बन रही है। आभासी दुनिया (वर्चुअल वर्ल्ड) में भी हिन्दी की धमक साफ नजर आती है। सभी सर्च इंजन हिन्दी में सामग्री खोजने की सुविधा देते हैं। गूगल हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए नित नए प्रयोग कर रहा है। जब से हिन्दी इंटरनेट पर लिखी जाने लगी है, लगातार हिन्दी सामग्री की उपलब्धता इंटरनेट पर बढ़ती जा रही है। सुखद तथ्य है कि आज दुनिया के 40 से अधिक देश और उनकी 600 से अधिक संस्थाओं, विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है।
मॉरिशस में फ्रेंच के बाद हिन्दी ही एक ऐसी महत्वपूर्ण एवं सशक्त भाषा है जिसमें पत्र-पत्रिकाओं तथा साहित्य का प्रकाशन होता है। संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) देश की पहचान सिटी ऑफ गोल्ड दुबई से है। यूएई में एफएम रेडियो के कम से कम तीन ऐसे चैनल हैं, जहां आप चौबीसों घंटे नए अथवा पुराने हिन्दी फिल्मों के गीत सुन सकते हैं। ब्रिटेन ने हिन्दी के प्रति बहुत पहले से रुचि लेनी आरंभ कर दिया था। गिलक्राइस्ट, फोवर्स-प्लेट्स, मोनियर विलियम्स, केलाग होर्ली, शोलबर्ग ग्राहमवेली तथा ग्रियर्सन जैसे विद्वानों ने हिन्दीकोश व्याकरण और भाषिक विवेचन के ग्रंथ लिखे हैं। लंदन, कैंब्रिज तथा यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है। लंदन में बर्मिंघम स्थित मिडलैंड्स वर्ल्ड ट्रेड फोरम के अध्यक्ष रहे पीटर मैथ्यूज ने ब्रिटिश उद्यमियों, कर्मचारियों और छात्रों को हिन्दी समेत कई अन्य भाषाएँ सीखने की नसीहत दी है। ‘अन्तरराष्ट्रीय इंदु शर्मा कथा सम्मान’ हिन्दी का अकेला ऐसा सम्मान है जो किसी दूसरे देश की संसद (ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स) में प्रदान किया जाता है। अमेरिका के येन विश्वविद्यालय में 1815 से ही हिन्दी पढ़ाई जा रही है। आज 30 से अधिक विश्वविद्यालयों तथा अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा हिन्दी में पाठ्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। ‘लैंग्वेज यूज इन यूनाइटेड स्टेट्स-2011’ की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि अमेरिका में बोली जाने वाली शीर्ष दस भाषाओं में हिन्दी शामिल है। अमेरिका हिन्दी को उन पाँच भाषाओं में गिनता है, जिनमें उसके नागरिकों की दक्षता जरूरी समझी जाती है।
रूस में हिन्दी पुस्तकों का जितना अनुवाद हुआ है, उतना शायद ही विश्व में किसी भाषा की पुस्तकों का हुआ हो। रूस के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी साहित्य पर शोध हो रहे हैं। मास्को विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के तहत जनता की समस्याओं का अध्ययन करने वाले केंद्र के एक विशेषज्ञ, रूस की विज्ञान अकादमी के भूविज्ञान संस्थान के कर्मी रुस्लान दिमीत्रियेव मानते हैं कि भविष्य में हिन्दी बोलने वालों की संख्या इस हद तक बढ़ सकती है कि हिन्दी दुनिया की एक सबसे लोकप्रिय भाषा हो जाएगी। वर्ष 2011 के आंकड़ों के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में एक लाख से अधिक लोग हिन्दी भाषा बोलते हैं। ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी, लट्रोब विश्वविद्यालय, सिडनी विश्वविद्यालय, मेलबोर्न विश्वविद्यालय, मोनाश विश्वविद्यालय, रॉयल मेलबोर्न इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी सहित अन्य संस्थानों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है।
एशियाई देश जापान में हिन्दी भाषा का बहुत अधिक सम्मान है। जापान की दो नेशनल यूनिवर्सिटी ओसाका और टोकियो में स्नातक और परास्नातक स्तर पर हिन्दी की पढ़ाई की व्यवस्था है। गौरतलब है कि प्रोफेसर दोई ने टोकियो विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की स्थापना की। महात्मा गांधी और टैगोर के अनन्य भक्तों में से एक साइजी माकिनो जब भारत आए तो हिन्दी के रंग में रंग गए। उन्होंने गांधीजी के सेवाग्राम में रहकर हिन्दी सीखी। भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित ‘भारत में पैंतालीस साल और मेरी हिन्दी-यात्रा’ उनकी चर्चित पुस्तक है, जो उनके भारत और हिन्दी प्रेम को प्रकट करती है साथी ही जापान और भारत के संबंधों को भी बताने का प्रयास करती है।
जर्मनी के हीडलबर्ग, लोअर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हम्बोलडिट और बॉन विश्वविद्यालय में हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम के रूप में शामिल किया गया है। जर्मन के लोग हिन्दी को एशियाई आबादी के एक बड़े तबके से संपर्क साधने का सबसे बड़ा माध्यम मानने लगे हैं। त्रिनिदाद एवं टोबैगो में भारतीय मूल की आबादी 45 प्रतिशत से अधिक है। गुयाना में 51 प्रतिशत से अधिक लोग भारतीय मूल के हैं। मालदीव की भाषा दीवेही भारोपीय परिवार की भाषा है। यह हिन्दी से मिलती-जुलती भाषा है। सिंगापुर, फ्रांस, इटली, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, नार्वे, डेनमार्क, स्विटजरलैंड, जर्मन, रोमानिया, बल्गारिया और हंगरी के विश्वविद्यालयों में हिन्दी के पठन-पाठन की व्यवस्था है। इसी तरह भूटान, मालदीव और श्रीलंका में भी हिन्दी का प्रभाव है। विगत वर्षों में खाड़ी देशों में हिन्दी का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ है। वहां के सोशल मीडिया में हिन्दी का दखल बढ़ा है और कई पत्र-पत्रिकाओं को ऑनलाइन पढ़ा जा रहा है। आज दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं हैं जहां भारतीयों की उपस्थिति न हो और वहां हिन्दी का दखल न बढ़ रहा हो। एक आंकड़े के मुताबिक दुनिया भर में ढाई करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय 160 से अधिक देशों में रहते हैं। इनका हिन्दी भाषा के फैलाव में अतुलनीय योगदान है। दुनिया में चीनी के दूसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली मातृभाषा हिन्दी आज भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के विराट फलक पर अपने अस्तित्व को आकार दे रही है। अपनी प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करा रही है। आज हिन्दी विश्व भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त करने की ओर अग्रसर है।
(लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं)
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