जिन लोगों का #गांव से #कनेक्शन रहा होगा उन लोगों के लिए यह पोस्ट है आप जरूर पढ़ें। शायद मैं गांव की उस आखिरी पीढ़ी की निशानी हूं जो आपके परदादा दादा हुआ करते थे जिस #आंगन में आपकी #किलकारी गूंजी थी जिसके ओसारा में दोचारा में आपका बचपन बीता बारिश की बूंदों को आपने कई बार सहा मैं आपका वो पुरखो वाला घर हु जो अब नहीं होने के बराबर है। कई पीढ़ियों के बच्चों के जन्म की किलकारी सोहर तो मैंने सुना ही कई डोलिया भी मेरे ही आंगन से निकली वक्त को बदलते देखा बच्चे को जवान जवान को बूढ़ा होते देखा पर मैं वहीं खड़ा था और सबको निहारता था कभी हंसता था कभी रोता था कभी गुनगुनाता था पर मेरे वजूद पर मुझे #घमंड था कि मैं हूं तो सर पर छाया है।
मेरे दीवारों में सीमेंट की जगह मिट्टी थी मेरे सर वाले छत पर कंक्रीट की जगह खप्पर बांस से प्रेम मोहब्बत बंधी हुई थी घरों में न पंखे थे न रोशनदान था फिर भी एक सुकून था खुद में घर होने का। मुझे लगता था कि जिनके लिए मैंने कई युग गुजार दी वह मुझे अंतिम समय में छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। मुझे सजाएंगे मेरे आंगन में उनके भी बच्चे जन्म लेंगे किलकारियां होंगी सोहर गाए जाएंगे बच्चों का मुंडन होगा बच्चों का विवाह होगा गाय के गोबर से अंगना लिपा जाएगा मंगल चारण होंगे। पर वक्त की मार सबसे ज्यादा मेरे ऊपर पड़ी लोग मुझे वीरान छोड़कर शहरों की तरफ चले गए जो रह गए उनको भी मैं अब किसी काम का नहीं लगता मेरे ही बगल में कंक्रीट का घर बनाकर बड़ी शान से रहते हैं ।
मैं जंगल झाड़ियों से किसी तरह अपने अंतिम सांस तक लड़ रहा हूं मैं केवल घर नहीं आपका पिता हूं माता हूं आपका पुरखों की आखिरी याद मैं आपकी मां बाप का वह आंसू हूं जो छठ में आपका इंतजार करती है कि मेरा बेटा गांव आएगा मेरे आंगन में किलकारी गुजरेगी पर बेटा को लगता है कि गांव जाने में खर्च बहुत है क्यों ना शहर में ही अपने छत पर छठ मना लिया जाए मां बेचारी रो सकती है इसके सिवा क्या कर सकती है साल दर साल इसी तरह बीतता रहा तो अगले साल ना मां होगी ना हम होंगे ना हमारा अस्तित्व होगा फिर सोचिए कौन आपकी याद में आंसू बहाएगा कौन आपको इस मतलबी दुनिया में याद करेगा हो सके तो लौट आइए अपनी विरासत की तरफ हो सके तो लौट आइए अपने गांव की तरफ छठ के ही बहाने मां के ही बहाने हमारे ही बहाने….