जो काम गत् साढे़ तीस साल में नहीं हुआ, ’नमामि गंगे’ परियोजनायें उसे महज् दो साल में कर दिखायेंगी। दो साल की तैयारी और अगले दो साल में गंगा साफ ! सुनने में यह अविश्वसनीय लग सकता है, किंतु गंगा पुनर्जीवन, नदी विकास व जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती जी का दावा यही है। उन्होने दावा किया है कि गंगा सफाई प्रयासों का असर अक्तूबर, 2016 से दिखने लगेगा और वर्ष 2018 तक गंगा पूरी तरह साफ हो जायेगी। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रथम सचिव रह चुके स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद ने प्रतिक्रिया दी कि वर्षा ऋतु के बाद नदी में प्रवाह बढ़ जाता है। पिछले महीनों की तुलना में अक्तूबर में नदी स्वाभाविक रूप से ज्यादा साफ होती है। अतः उमा जी जब तक किसी वर्ष अथवा प्रदूषक तत्वों की तुलनात्मक मात्रा पैमाने को सामने नहीं रखती, उनका यह दावा यूं भी बेमतलब है।
खैर इस दावे का आधार रुपये 1500 करोङ लागत वाली वे 231 परियोजनायें हैं, जिन्हे ऐन ईद के मौके पर गत् सात जुलाई को शुरु किया गया। इनमें रुपये 250 करोङ की लागत वाली 43 परियोजनायें अकेले उत्तराखण्ड में आठ स्थानों पर गंगा धारााओं को मलीन होने से बचाने का काम करेंगी ; शेष हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार झारखण्ड और पश्चिम बंगाल के 95 स्थानों पर अपनी भूमिका निभायेंगी। ये परियोजनायें मुख्यतः घाट नवीनीकरण, नाला निर्माण, नाला सफाई, मल शोधन संयंत्र निर्माण, औद्योगिक कचरा निस्तारण, पौधारोपण तथा जैव विविधता केन्द्रों के निर्माण से संबंधित है। नदी प्रदूषण निगरानी के लिए एक ऐप भी पेश किया गया है।
उमा भारती जी ने गंगा में प्रदूषण वृद्धि के लिए गंगा कार्य योजना की गलत योजनाओं को जिम्मेदार ठहराते हुए उनसे सीखने की बात कही है। याद कीजिए, 14 जनवरी, 1986 में गंगा कार्य योजना का शुभारम्भ करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने कहा था – ”गंगा कार्य योजना कोई पी. डब्ल्यू. डी. की कार्ययोजना नहीं है; यह गंगा जहां से आती है, गंगा जहां तक जाती है; यह वहां के जन-जन की कार्ययोजना बननी चाहिए।’ दुर्योगवश, गंगा कार्य योजना के भावी कर्णधारों ने ऐसा होने नहीं दिया। इससे सीखते हुए उमा जी ने जनभागीदारी सुनिश्चित करने के लिए गंगा किनारे के नगरों तथा 1657 ग्राम पंचायतों से सतत् संवाद का दावा किया गया है। अक्तूबर, 2016 में स्वयं गंगा पदयात्रा करने की बात कही है। जानकारी के मुताबिक, भारत के गंगा ग्राम विकास का जिम्मा देश के 13 नामी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों को दिया गया है। प्रत्येक संस्थान पांच गंगा ग्राम का विकास करेगा।
इन बयानों के आइने में आकलन करें, तो हमें लग सकता है कि इस बार तो गंगा साफ होकर ही रहेगी। यदि अतीत के अनुभवों, गंगा निर्मलता की आवश्यकताओं और अन्य गंगा परियोजनाओं पर गौर करें, तो उत्तर कुछ और होगा। प्रश्न कीजिए कि क्या घाट नवीनीकरण से नदी को कोई लाभ होता है ? क्या ई निगरानी, अध्ययन और आंकङों से नदी की मलीनता प्रभावित होती है ? मल शोधन संयंत्रों को लेकर मेरी गंगा यात्रा के अनुभव ये हैं कि गंगोत्री से गंगा सागर तक हमें एक भी मल शोधन संयंत्र सुचारू रूप से चलता हुआ नहीं मिला। कहीं क्षमता की कमी, कहीं बिजली गुल का संकट और कहीं कर्मचारियों की कामचोरी। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की नियुक्ति एक राजनैतिक नियुक्ति होती है; लिहाजा, हमारे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ‘प्रदूषण नियंत्रण में है’ का प्रमाणपत्र बांटने वाले भ्रष्टाचार के अड्डे बनकर रह गये हैं। ये अनुभव शंका पैदा करते हैं; फिर भी यदि व्यवहार में उतारा जा सका, तो उमा जी का यह बयान सांत्वना देने योग्य अवश्य है कि मल शोधित हो अथवा अशोधित, उसे गंगा में प्रवाहित करने पर मनाही होगी। शोधित अवजल का उपयोग सिंचाई आदि अन्य कार्यों में किया जायेगा। उन्होने ‘गंगा एक्ट’ बनाकर गंगा में औद्योगिक कचरा डालने वालों को जेल भेजने की बात भी कही। सच पूछें, तो उमा जी ने गंगा कार्य योजना की नाकामियों से इसे छोङ कुछ भी नहीं सीखा। यहां तक कि उक्त सारी घोषणायें करते वक्त उमा जी यह फिर भूल गई कि निर्मलता के लिए सबसे पहली व जरूरी आवश्यकता है नदी की निर्मलता।
पिछले डेढ़ दशक के दौरान सामने आये अध्ययनों और जांच समितियों की रिपातार्ज ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अविरलता सुनिश्चित किए बगैर गंगा की निर्मलता सुनिश्चित करना असंभव है। क्या ‘नमामि गंगे’ के पास गंगा अविरलता सुनिश्चित करने वाली कोई योजना, परियोजना, नीति या कानून है ? नहीं; उलटे गंगा मूल की अविरलता बाधित करने के लिए एक नहीं, 54 परियोजनायें हैं। ये परियोजनायें गंगा की अविरलता बाधित कर गंगा को गंगा बनाने वाले बैक्टिरियोफाॅज व विशेष गुणों वाली गाद से वंचित कर रहे हैं। याद कीजिए, मनमोहन सरकार में उत्तराखण्ड में बांधों को लेकर कितनी तकरार हुई थी; कितने अनशन, कितने आंदोलन। रवि चोपङा कमेटी रिपोर्ट ने स्वयं यह माना था कि 2013 में हुई उत्तराखण्ड त्रासदी और उसके दुष्प्रभावों को बढ़ाने में जल विद्युत परियोजनाओं के तहत् बने बांधों और सुरंगों की नकारात्मक भूमिका थी। मोदी सरकार ने जैसे तय कर लिया है कि बांधों को लेकर चर्चा करना ही बंद कर दो। ’नमामि गंगे’ के बीते दो सालों में बांधो को लेकर चुप्पी ऐसी छाई जैसे चर्चा करने वालों को भी बता दिया गया कि वे भी चर्चा न करें।
आखिर कोई तो वजह होगी कि बांधों को लेकर सक्रिय रही गंगा महासभा, उत्तराखण्ड नदी बचाओ, स्वामी सानंद, जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य… सभी ने चर्चा बंद कर दी है। हां, इस बाबत् उमा भारती जी ने पूर्व पर्यावरण मंत्री को एक चिट्ठी भेजकर रस्म अदायगी जरूर कर दी थी कि देखो मैने तो अपना विरोध दर्ज करा दिया था। अब वे नहीं सुनते, तो मैं क्या करूं ? ऐसा लगता है कि उमा जी गंगा निर्मलता को लेकर जो करना चाहती हैं वह कर नहीं पा रही। उमा भारती जी की बेबसी देखिए कि उनके मंत्रालय के ‘राष्ट्रीय भूजल प्रबंधन बेहतरी कार्यक्रम’ का प्रारूप भी विश्व बैंक बना रहा है। शायद यह बेबसी ही है, जो उनके दिल पर बैठ गई है। पिछले कुछ समय से उनके बार-बार अस्वस्थ होने की खबरें हैं। ईश्वर, उमाजी को स्वस्थ रखे।
हकीकत यह है कि प्रकाश जावेङकर के कार्यकाल में पर्यावरण, वन एवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण से ज्यादा, परियोजनाओं को पर्यावरण मंजूरी देने का काम किया। गौर कीजिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये बगैर विकास जारी रखने के लिए दुनिया के 170 देशों ने 1992 के रियो पृथ्वी सम्मेलन में एक औजार पेश किया था – ”प्रत्येक परियोजना के पर्यावरण प्रभाव का आकलन जरूरी हो।” भारत ने भी इसे स्वीकारा। अब भारत सरकार का पर्यावरण, वन एवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय वर्ष 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के दस्तावेज में बदलाव करने जा रहा है। श्री जावेङकर जाते-जाते अधिसूचना दस्तावेज में एक ऐसे बदलाव का प्रारूप पेश कर गये हैं, जो पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को पर्यावरण अनुपूरक योजना के साथ काम जारी रखने की छूट देगा। सेंटर फाॅर पाॅलिसी रिसर्च की अध्ययनकर्ताओं ने इसे पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना की हत्या करने की ओर उठा कदम करार दिया है। श्री अनिल माधव दवे, भारत के नये पर्यावरण मंत्री हैं। वह नदी को जानकार माने जाते हैं। मंत्री बनने के बाद उन्होने बयान दिया – ”हर नदी को बहना चाहिए।” क्या उक्त बदलाव के रहते साथ किसी नदी के बहते रहने की गारंटी देना संभव है ? यह अब नये पर्यावरण मंत्री को सोचना है और ’नमामि गंगे’ के कर्णधारों को भी।
पिछले लगभग दो दशक में तमाम अध्ययनों ने नदी जोङ के खिलाफ मत प्रकट किया है। पुराणों में नदी को मोङने उसके प्रवाह में बाधा उत्पन्न करने को पापकर्म बताकर श्राृद्ध आदि कर्म से त्याज्य बताया ही है; बावजूद इसके केन्द्रीय जल मंत्री उमा भारती जी नदी जोङ को लागू कराने को लेकर जिद्द पर अङी है। केन-बेतवा नदी जोङ में विलम्ब को लेकर उन्होने पहले फटकार बताई और अब अनशन पर उतरने की धमकी तक दे डाली है। प्रस्तावित नदी जोङ गंगा-यमुना का पानी भी निकाल ले जायेंगे। क्या इसे गंगा की अविरलता-निर्मलता सुनिश्चित करने वाला रवैया कहें ?
भारत सरकार के बिजली मंत्री पीयूष गोयल ने जल विद्युत परियोजनाओं को गति देने के लिए वह जल ऊर्जा नीति लायेंगे। पर्यटन मंत्री डाॅ. महेश शर्मा जी बनारस में ई नौका पर्यटन का खेल सजायेंगे। अमेज़न कंपनी, पहले से ही 299 रुपये में एक लीटर गंगाजल बेच रही है। दूरसंचार मंत्री रहते हुए रविशंकर प्रसाद जी ने डाक से घर-घर गंगाजल पहुंचाने की घोषणा कर गंगाजल की बिक्री को आगे बढ़ाने का संकेत दे ही दिया। नितिन गडकरी जी भी लगे हाथ उत्तराखण्ड मुख्यमंत्री हरीश रावत को गंगोत्री भागीरथी का जल बेचकर पैसा कमाने का मंत्र दे आये। यह गंगा निर्मलीकरण का मंत्र है या गंगा बाजारीकरण का मंत्र ?
गौर कीजिए कि बतौर परिवहन मंत्री नितिन गडकरी जी ने गंगा पर इलाहाबाद से हल्दिया जल मार्ग परियोजना शुरु की है। उन्होने इसके तहत् हर सौ किलोमीटर पर एक बैराज की घोषणा की। जहाजों को चलाने के लिए 45 मीटर की चैङाई में गंगा को गहरी करने का काम भागलपुर के कहलगांव में शुरु भी हो गया है। इस गहरीकरण ने मानव आहुति लेनी भी शुरु कर दी है। गहराई का अंदाजा न मिल पाने के कारण पिछले छह महीने में वहां के बरारी घाट पर 20 से अधिक मौते हुईं हैं। आगे क्या होगा ? गहरीकरण करने से गंगा का पानी कम चैङाई में सिमटेगा। गंगा के पाट की चैङाई घटेगी। जो ज़मीन सूखी बचेगी, ’रिवर फ्रंट डेवल्पमेंट’ के नाम पर ये उसे बेच देंगे। ऐसा करके ये पहले बिना सरकारी धन के नदी विकास करने को लेकर अपनी पीठ ठोकेंगे; फिर खरीददारों को मुनाफा कमावयेंगे। अमेरिका यूं ही गंगा विकास में चि नहीं दिखा रहा है। साबरमती में यही हुआ है। उत्तर प्रदेश सरकार गोमती नदी में यही कर रही है। 27 जून को उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अमेरिका के ‘वाटर रिसोर्स ग्रुप’ के साथ मिलकर शुरु की गई हिण्डन मुहिम की लेकर मंशा क्या है; जल्द सामने आयेगी।
सउदी के लोग टापू बनाने के लिए भारतीय महासागर की रेत निकाल ले गये। ये जानते हैं कि गंगा की रेत अनोखी है। ये गंगा की बेशकीमती रेत बेचकर नोट बनायेेेंगे। जलपोत चलाकर बेरोक-टोक माल ले जायेंगे। जलपोतों के जरिए कोयला ढुलाई के लिए इलाहाबाद में तीन टर्मिनल बनाये जायेंगे। इससे गंगा प्रदूषित होती हो, तो हो। गंगा अभी तक मल ढोने वाली मलगाङी ही बन पाई है; अब वह कोयला ढोने वाली मालगाङी बनेगी। गौर कीजिए कि हम गंगा को मां कहते हैं। सोचिए, ये मां गंगा को निर्मल करने की परियोजनायें हैं या उसका सब कुछ नष्ट कर सिर्फ कमाने की ? ऊपर गंगा बांध दी, नीचे लहरें बेचने जा रहे हैं। क्या गंगा बख्शेगी ?
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अरुण तिवारी
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