नई दिल्ली, 17 फरवरी। वरिष्ठ पत्रकार एवं भारत सरकार के सूचना आयुक्त उदय माहुरकर का कहना है कि पिछले एक हजार वर्षों के दौरान भारत में अगर कोई सर्वश्रेष्ठ सम्राट हुआ, तो वो सिर्फ छत्रपति शिवाजी ही थे। उनका साम्राज्य महाराष्ट्र के अलावा दक्षिणी गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और चेन्नई, पुणे से पेशावर और दिल्ली से काबुल तक फैला था। लेकिन इतिहासकारों ने कभी उनका सही मूल्यांकन नहीं किया। माहुरकर शुक्रवार को भारतीय जन संचार संस्थान द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘शुक्रवार संवाद’ को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. (डॉ.) संजय द्विवेदी, डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह, प्रो. वीके भारती तथा सभी केंद्रों के संकाय सदस्य एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
‘छत्रपति शिवाजी और उनका सुशासन’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए उदय माहुरकर ने कहा कि इतिहासकार हमेशा छत्रपति शिवाजी को राजा के रूप में ही चित्रित करते रहे हैं, जबकि साम्राज्य की सीमाओं, समाज में योगदान, भविष्य की पीढ़ियों पर प्रभाव, प्रशासन की गुणवत्ता जैसी उन सभी कसौटियों पर वे खरे उतरते थे, जो किसी को सम्राट मानने के लिए निर्धारित होती हैं। राजस्व, भाषा, सामाजिक समरसता, युद्ध नीति जैसे कई क्षेत्रों में छत्रपति शिवाजी ने ऐसे अनेक काम किए, जो उन्हें एक महान सम्राट सिद्ध करते हैं।
श्री माहुरकर ने कहा कि छत्रपति शिवाजी इतिहास के पहले ऐसे शासक थे, जिन्होंने किसानों के लिए राजस्व की एक आदर्श व्यवस्था निर्धारित की। उन्होंने इसके लिए देश को वर्षा के हिसाब से अलग-अलग क्षेत्रों में बांटा और उसके हिसाब से राजस्व निर्धारित किया। जहां अधिक वर्षा होती थी, वहां लगान अधिक होता था, कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम और जिन इलाकों में बहुत ज्यादा वर्षा की वजह से फसल का नुकसान होता था, वहां भी लगान कम कर दिया जाता था।
माहुरकर ने कहा कि शिवाजी की यह न्यायप्रियता उनके भूमि सुधार संबंधी फैसलों में भी झलकती है। उन्होंने देखा कि किस प्रकार जागीरदार और जमींदार अपनी जमीन पर खेती करने वालों का शोषण करते हैं। शिवाजी महाराज ने उन्हें इससे बचाने के लिए अपने सैन्य अधिकारियों को वेतन या उपहार में जमीन देने की बजाय, उन्हें नगद राशि देना शुरू किया।
भाषा सुधार के लिए छत्रपति शिवाजी के कार्यों का स्मरण करते हुए माहुरकर ने बताया कि उन्होंने मराठी भाषा के शुद्धिकरण के लिए भी काफी कार्य किया। इसके लिए उन्होंने मराठी को फारसी के प्रभाव से मुक्त कराने के लिए एक अष्टप्रधान मंडल बनाया और उसके सुझावों के आधार पर फारसी शब्दों के स्थान पर भारतीय शब्द निर्धारित किए। शिवाजी ने शासन और प्रशासन में प्रचलित बहुत सारे पदों के नाम बदलकर उनका भारतीयकरण किया।
कार्यक्रम में स्वागत भाषण अंग्रेजी पत्रकारिता विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक प्रो. संगीता प्रणवेन्द्र ने दिया। संचालन डिजिटल मीडिया विभाग की पाठ्यक्रम निदेशक डॉ. रचना शर्मा ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन आईआईएमसी, ढेंकनाल कैंपस में सहायक प्रोफेसर डॉ. भावना आचार्य ने दिया।