Tuesday, December 24, 2024
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हरित पगडंडीः प्रकृति के प्यार में यात्रा एक सृजन चेतना की

डॉ. कृष्णा कुमारी बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। वो विविध विधाओं में लिखती और छपती रही हैं। लगातार लिखने और कुछ न कुछ नया सीखने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता उन सबको प्रभावित करती है, जो उन्हें जानते हैं। यही प्रतिबद्धता उनकी प्रतिभा के उत्तरोत्तर विकास का हैतुक भी है। वो कृष्णा कमसिन नाम से भी लिखती रही हैं। हरित पगडंडी पर पुस्तक उनका यात्रा वृतांत है। पुस्तक को पढ़ कर पता चलता है कि उन्होंने यह पुस्तक 2001 से 2006 के बीच लिखी। (कोडाईकैनाल के एक चर्च को वो सौ साल पुराना बताते हुए कहती हैं – ‘जिसका निर्माण 1901 में हुआ’ और वहाँ के कुरिंजी अंदावर मंदिर में बारह साल में खिलने वाले कुरिंजी के फूल के बारे में लिखते हुए वो बताती हैं- अब इसका नंबर 2006 में आएगा) । बहरहाल, किताब का प्रकाशन 2023 में हुआ।

लेखिका ने मैसूर, ऊटी, कोडाईकैनाल, बैंगलुरू और गोवा की यात्रा एक साथ उस समय की थी जब उनके पति किसी प्रशिक्षण कार्यशाला के सिलसिले में मैसूर थे। लेखिका अपनी पुत्री के साथ यात्रा पर चल दी। पुस्तक की शुरुआत में ही लेखिका की बेबाकी सामने आ जाती है, जब वो यात्रा में अतिरिक्त आत्मीयता दिखा रहे कुछ लड़कों के बारे में कहती है -“उन्होंने हमसे पते लिये व हमें भी पते दिए। उनकी इतनी दिलचस्पी लेने का कारण तो हम समझ ही रहे थे कि स्वप्निल (बेटी) जो हमारे साथ थी। इसे इंप्रेस करने में भी ये लड़के लोग लगे हुए थे।” (पृ 7) कोडाईकैनाल यात्रा के प्रसंग में वो चुटकी लेती हैं, “सारी रात्रि चलते रहे। लेकिन रात्रि में सफर करने का जो नुकसान है, वह है रास्ते की खूबियों से अपरिचित रह जाना। …बस में अधिकतर नवविवाहित जोड़े ही थे, जो हनीमून पर आए हुए थे, उनकी गतिविधियाँ कैसी रही होंगी, आप भी समझ सकते हैं।'(पृ 52)।

कृष्णा कुमारी जीवन को बहुत आशावाद से जीने की पक्षधर हैं। कठिन परिस्थितियों में भी जीवन के प्रति इस रूमानियत को बचाए रखने की उनकी प्रवृत्ति इस यात्रा में भी उनके साथ रही। मसलन, वापसी की यात्रा में रिजर्वेशन कंफर्म नहीं हुआ तो गैलेरी में दरवाजे के पास यात्रा करते हुए भी वो प्राकृतिक सौंदर्य के बारे में सोचती हैं, यात्रा में पतिदेव का साथ कुछ समय के लिए छूट जाता है तो उनकी प्रतीक्षा करते हुए और उन्हें तलाशते हुए भी वो उपलब्ध समय में नये स्थान के भ्रमण के कार्यक्रम को निरंतर रखती हैं। इसी रूमानियत के कारण वो लोगों को प्रथम दृष्ट्या परखती नहीं हैं, उन पर भरोसा करती हैं। जैसे मैसूर उतरते ही उन्होंने लिखा, “व्यावहारिक रूप से मैसूर के लोग शांतिप्रिय हैं, अनुशासन में रहते हैं । साथ ही उसूलों वाले हैं। ‘ (पृ 13) लेकिन उसी मैसूर का टूरिस्ट बस वाला जब ‘चामराजेंद्र जूलोजिकल गार्डन’ पर यात्रियों को छोड़कर गायब हो जाता है और डेढ़ घंटे बाद लौटकर बताता है कि स्कूली बच्चों की शिफ्ट लेने चला गया था तो खिन्न लेखिका लिखती है- ‘लोगों की इसी स्वार्थी मनोवृत्ति पर तरस आता है।” (पृ 17)

दरअसल अच्छे बुरे लोग सब जगह होते हैं। अस्तु। यह यात्रा उस दौर में कई गई थी जब फोटो खींचने के लिए रील वाले कैमरों का इस्तेमाल किया जाता था, याने डिजिटल फोटोग्राफी शुरु नहीं हुई थी लेकिन कृष्णा कुमारी का कविमन दृश्यों को बहुत ही प्रभावशाली रूपांकन देता है – “नटखट पानी की एक बात हमें अच्छी नहीं लग रही थी कि बगीचे में उनींदे पेड़- पौधों की नींद में खलल डाल रहा था। (पृ 25)/ “बीच- बीच में सुपारी के पेड़ भी ताकाझांकी करते मिले थे। वे इस गर्व में भी इठला रहे थे कि उनका कद नारियल के पेड़ों से थोड़ा ऊँचा होता है।” (पृ 31) / “समुद्र में डुबकी लगाने को सूर्य देवता भी उत्सुक दिखाई दिये। देखते ही देखते सारा क्षितिज नारंगी आभा में बदल गया। कुछ बादलों के टुकड़े सूरज के इर्द-गिर्द मंडराने लगे। उनके किनारे स्वर्णिम होकर ऐसे झलक रहे थे मानो दुल्हन की ओढ़नी पर सुनहला गोटा दमक रहा हो।” (पृ 89)

लेखिका ने यह पुस्तक बात करने की शैली में लिखी है, इसीलिए अंग्रेजी, उर्दू और हिन्दी शब्दों का भरपूर प्रयोग किया है। खाना- वाना खाया/ पानी- वानी पिया जैसे कहन से कथ्य की रवानी बढ़ी है। कृष्णा कुमारी ने उर्दू शब्दों का बहुत ही चैतन्य प्रयोग किया है। यों भी वो अपने शब्दों के प्रयोग सजग रहती हैं और इसीलिए पुस्तक में ‘धान के पेड़’ का जिक्र (पृ 31) और किसी झील का ‘नावों से लबालब’ होना (पृ 45) या ‘डाॅल्फिनें’ (पृ 85) थोड़ा चौंकाता है। किताब के अंत में लिखा है कि प्रस्तुत पुस्तक के कुछ संदर्भ ‘अखिल भारतीय पर्यटन साथी’ पुस्तक से लिए हैं। इतनी ईमानदारी अब कम लोग दिखाते हैं। प्रतीत होता है कुछ जानकारी संदर्भों को उल्लेखित करने के लिए इंटरनेट से भी ली गई है क्योंकि मंगेश गाँव के लता मंगेशकर से संबंध का उल्लेख करने वाली पंक्तियों के ठीक बाद www.tv9hindi.com छ्प गया है। बहुधा जब हम इंटरनेट से कुछ सामग्री काॅपी करते हैं तो उसका स्रोत भी अंत में काॅपी हो जाता है।

‘होटल महाराज के दर्शन हुए’ (पृ 43)/ वाह रे भगवान आपकी प्रकृति का भी जवाब नहीं (पृ 42)/ सूरज महोदय जी टाटा करने के मूड में आ चुके थे (पृ 41)/ फ्रेश होने का कार्यक्रम चला (पृ 53)/ जैसा कहन बताता है कि रचनाकार ने इस पुस्तक को बहुत उल्लास और ऊर्जा से लिखा है।

( हरित पगडंडी पर (यात्रा वृतांत)/ डाॅ कृष्णा कुमारी/ बोधि प्रकाशन, जयपुर/ 2023/ पृ 112/ मूल्य 150रू. )

समीक्षक
अतुल कनक ,कोटा

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