गुरु नानक वैष्णव संत थे। आदि-ग्रंथ में ‘राम’ शब्द २५०० बार, और ‘हरि’ शब्द ८३०० बार मिलता है। गुरु नानक ने स्वयं ६३० बार ‘हरि’ कहा है। इन्हें जैसे भी अर्थ में लें, यह सनातन ज्ञान परंपरा ही है। सिख गुरुओं की उक्तियों में ब्रह्म, अद्वैत, माया, शिव व शक्ति, पुनर्जन्म, मुक्ति, निर्वाण, आदि धारणाएं उसी रूप में मिलती हैं, जो आम हिन्दू शास्त्रों में हैं।
सनातन ज्ञान परंपरा से ‘अलग’ हो कर *सिख* लोग अपनी ही हानि करेंगे। पश्चिमी व पूर्वी पंजाब का दो विपरीत हश्र इस का एक प्रमाण है।
दूसरी ओर, *हिन्दू* लोग भी चंद्रगुप्त, प्रताप, शिवाजी, आदि वाली वीर परंपरा अपनाकर ही पुनः प्रतिष्ठित हो सकेंगे। झूठी, पिलपिली, दब्बू दलीलों वाले नेताओं, विचारों, संगठनों ने ही उन्हें अपने ही देश में हेय, दूसरे दर्जे का समुदाय बना दिया है! मगर इसे दुरुस्त करने के बजाय हिन्दू और उन के नेतागण आत्म-प्रवंचना में अपने मुँह मियां मिट्ठू बनते रहते हैं।
इसीलिए दिनों दिन भारत में कई हिन्दू संप्रदाय अब हिन्दू कहलाना नहीं चाहते। क्योंकि किसी भीरू, नकलची, बहानेबाज, परमुखापेक्षी, परनिंदक, डींगबाज के साथ कोई सबल, आत्मविश्वासी, आत्माभिमानी नहीं दिखना चाहता! गत सौ सालों से हिन्दुओं ने अपनी कुछ यही दशा बना रखी है।