हाथरस हादसाःअंधश्रध्दा से उपजे पाखण्ड पर लगाम कौन लगाएगा?

हाथरस में हुई दुर्घटना में 120 निर्दोष लोग मारे गए। पिछले माह मक्का में हज यात्रा के दौरान 1000 से अधिक लोग मारे गए थे। जिनमें 100 के लगभग भारतीय थे। कई वर्ष पहले मक्का में शैतान को पत्थर मारने के दौरान हुई भगदड़ में कई सौ लोग मारे गए थे। हमारे देश में भी मंदिरों में, तीर्थों पर, मेले आदि में ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है। दुर्घटना का कारण अनुमान से अधिक भीड़, सार्वजानिक व्यवस्था का धवस्त होना, प्रशासन की नाकामी कुछ कारण हैं। जहाँ भीड़ होती है। वहां दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है। पर यह भीड़ जुटती क्यों है? इस पर विचार करना आवश्यक है।

किसी भी मत-मतान्तर, पंथ, मज़हब आदि को मानने वालों की भीड़ एक ही कारण से जुड़ती है। वह कारण है- “चमत्कार”।

हाथरस की घटना के पीछे साकार गुरु हरी के चरणों की धूल से सभी प्रकार के चमत्कार हो जाते हैं। ऐसी मान्यता से धूल को एकत्र करने के लिए भीड़ जुटी तो भगदड़ मच गई। साकार गुरु के मैनपुरी आश्रम में पानी के नल लगे है। जिनमें से चमत्कारी पानी आता है। जिससे सभी असाध्य रोग ठीक हो जाते है। बेरोजगारों की नौकरी लग जाती है। अविवाहितों के विवाह हो जाते है। निःसन्तानों को संतान हो जाती है। गृह कलेश दूर हो जाते है। धन की वर्षा हो जाती है।

यह भ्रम , धोखे की दुकान केवल साकार हरी ही नहीं चला रहा। राम रहीम, रामपाल, साईं बाबा, बागेश्वर धाम, निर्मल बाबा, गुरु जी डूंगरी, नीम करोली बाबा आदि से लेकर मुल्ला मौलवियों की कब्रों , अजमेर या बहराइच की दरगाह से लेकर चर्च की चंगाई सभाओं , वेटिकन द्वारा घोषित चमत्कारों, मदर टेरेसा आदि सभी के चमत्कारों की कहानियां उनके भक्तजनों से आप सुन सकते हैं। हाथों में विभिन्न रत्नों की अंगूठियां पहनने से चमत्कार मानने लगें। नदियों-तालाबों में स्नान अथवा पहाड़ों , धाम रूपी तीर्थों की यात्राओं से आप चमत्कार की मान्यता बना बैठे। स्वघोषित गुरुओं को दूध से नहलाकर, उस दूध से बनी खीर को खाने से आप चमत्कार मानने लगें। गुरु के अंगूठे को चूसने से सदगति मानने लगें।

फलित ज्योतिष के नाम पर अनेक अनर्गल प्रपंचों से आप चमत्कार मैंने लगे। मूर्तियों पर शराब चढ़ाने, बकरे काटने से आप चमत्कार मानने लगे। शनि के नाम पर तेल चढ़ाने से आप चमत्कार मैंने लगें। गुफा में सद्गुरु की गोद में बैठने से आप चमत्कार मानने लगें। मस्जिद के बाहर जुम्में की नमाज के बाद बच्चों के मुँह में मौलवियों द्वारा थुकवाने से आप चमत्कार मानने लगे। चर्च के पादरी द्वारा प्रार्थना से बीमारी ठीक होने का चमत्कार मानने लगें। गुरु के जूते, कपड़ों, बिस्तर, सामान के दर्शन मात्र करने से आप चमत्कार मानने लगे। इन देहधारी स्वघोषित अवतारों से चमत्कार की आस लगा महा आलसी और निकम्मा हो गया है।

कभी किसी ने सोचा ये पाखंडी लोग एकाएक कैसे सफल हो जाते हैं? सत्य यह है कि आध्यात्मिक जगत में धर्म का नाश ईश्वर को मनुष्य और मनुष्य को ईश्वर बनाने की सोच के कारण हुआ है।एक ओर आपने श्री राम , श्री कृष्ण जी जैसे आर्य महापुरुषों को ईश्वर बना दिया। दूसरी ओर आपने मत पंथ के प्रवर्तकों को ईश्वर बना दिया। जो जैसा करेगा उसे वैसा फल मिलेगा। इस वेद विदित कर्मफल व्यवस्था को भूलकर अज्ञानी बन चमत्कारों के पीछे अंधें होकर भागते हैं। इसीलिए चोट खाते है।

यह कमी किसकी है? जब आप धर्म का खेत खाली छोड़ देते है। तब अन्धविश्वास रूपी खरपतवार ही तो उगेगी। हमारे धर्माचार्य कभी वेद रूपी ज्ञान, धर्म-कर्म, सत्य आचरण, पुरुषार्थ, आत्मिक उन्नति, कर्म फल व्यवस्था, त्यागी और तपस्वी जीवन जीने की प्रेरणा नहीं देते। उनका स्वयं का आचरण भ्रष्ट अथवा पुरुषार्थहीन है। वो स्वयं धर्म की दुकानदारी करते हैं। उनका कार्य तो केवल ग्राहक फसाना मात्र रह गया हैं। बड़े बड़े मठ-मंदिर, मस्जिद, चर्च की आड़ में केवल धन संग्रह कर भोग विलास में लगे हैं। यही पतन का सबसे प्रमुख कारण है।

स्वामी दयानन्द जैसा महान तपस्वी संसार को वेद मार्ग का पथिक बनने की प्रेरणा दे गए। स्वामी जी ईश्वर क्या है ? इस प्रश्न का उत्तर देते है कि जिससे यह संसार बना है, चल रहा है व अवधि पूर्ण होने पर जो इस ब्रह्माण्ड की प्रलय करेगा, उसे ईश्वर कहते हैं। वह ईश्वर कैसा है तो चारों वेद, उपनिषद व दर्शन सहित सभी आर्ष ग्रन्थों ने बताया है कि ईश्वर –

‘‘ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, न्यायकारी, दयालु, अजन्मा, अनादि, अनन्त, निर्विकार, अनुपम, सर्वाधार, सर्वेश्वर, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, अजर, अमर, अभय, पवित्र व सृष्टिकर्ता है। (सभी मनुष्यों को) उसी की उपासना करनी योग्य है।
ईश्वर कि जिसको ब्रह्म, परमात्मादि नामों से कहते हैं, जो सच्चिदानन्द लक्षण युक्त है जिसके गुण, कर्म, स्वभाव पवित्र हैं, सब सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता वं सब जीवों को कर्मानुसार सत्य न्याय से फलप्रदाता आदि लक्षण युक्त है, वह परमेश्वर है, (मैं) उसी को मानता हूं।

जिसके गुण-कर्म-स्वभाव और स्वरूप सत्य ही हैं, जो केवल चेतनमात्र वस्तु है तथा जो कि, अद्वितीय, सर्वशक्तिमान, निराकार, सर्वत्र व्यापक, अनादि और अनन्त, सत्य गुणवाला है, और जिसका स्वभाव अविनाशी, ज्ञानी, आनन्दी, शुद्ध, न्यायकारी, दयालु और अजन्मादि है, जिसका कर्म जगत की उत्पत्ति, पालन और विनाश करना तथा सब जीवों को पाप-पुण्य के फल ठीक-ठीक पहंचाना है, उसी को ईश्वर कहते हैं।

ये शब्द महर्षि दयानन्द के उनके अपने ग्रन्थों में कहे व लिखे गये हैं। इससे अधिक प्रमाणिक, विश्वसनीय व विवेकपूर्ण उत्तर ईश्वर के स्वरूप व उसकी सत्ता का नहीं हो सकता। ईश्वर विषयक यह स्वरूप वेदों से तो स्पष्ट है ही, तर्कपूर्ण व सृष्टिकर्म के अनुकूल होने से विज्ञान से भी स्पष्ट है।

ईश्वर का स्वरूप इतना ही नहीं है अपितु कहीं अधिक व्यापक व विस्तृत है। इसके लिए हमारे जिज्ञासु बन्धुओं को वेद, दर्शन, उपनिषद सहित महर्षि दयानन्द के साहित्य जिसमें सत्यार्थप्रकाश, ऋगवेदादिभाष्य भूमिका, आर्याभिविनय वं अन्य ग्रन्थों सहित उनका वेद भाष्य भी है, उनका अध्ययन करना चाहिये।

धर्म रूपी सत्य मार्ग के विषय में बता गए। पर उस मार्ग पर चलने में श्रम लगता है। इसलिए हर कोई वेद मार्ग का पथिक नहीं बनना चाहता। सभी को शार्ट कट, बिना परिश्रम के चमत्कार रूप में चाहिए। यही ह्रास का मुख्य कारण है। आईये यह प्रण ले की हम वेद मार्ग के पथिक बनेंगे।

(लेखक समसामयिक, ऐतिहासिक व अध्यात्मिक विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)

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