शाम के पांच बज रहे हैं. फैक्ट्री की हूटर बज चुकी है.फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी अपनी-अपनी साइकिलों और दुपहिया वाहनों से मुख्य दरवाजे से बाहर निकल रहे हैं . कुछ अफसरों की भी गाड़ियाँ निकल रही हैं . हर तरफ भागमभाग की स्थिति है.सभी को समय पर अपने-अपने घर पहुंचना है. शहर जानेवाली बस की तरफ भी लोग तेजी से बढ़ रहे हैं . कुछ लोग नजदीक के रेलवे स्टेशन पहुँचने के लिए ऑटो में बैठ रहे हैं. ये वही लोग हैं जिन्हें हैदराबाद या सिकंदराबाद पहुंचना है. फैक्ट्री में काम करनेवाले अधिकारियों एवं कर्मियों का बड़ा समूह प्रतिदिन इन शहरों से ही आना–जाना करता है.वस्तुतः यह भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आनेवाली एक फैक्ट्री है.शाम की इस भीड़ में कुछ ऐसे भी हैं जिनके लिए कोई अफरातफरी और जल्दबाजी नहीं है. ये फैक्ट्री के आवासीय परिसर में ही रहने वाले लोग हैं. इन सबकी मंजिल या तो इनका क्वार्टर है या फिर फैक्ट्री का वो गेट जहाँ एक छोटा सा बाज़ार है. नौकरी में आये नए -नए लड़कों की तो बस एक ही मंजिल है- शम्भु भाई की मिठाई की दुकान. शाम के वक़्त यह दुकान फैक्ट्री की धड़कन बन जाती है. बड़ी–बड़ी कड़ाहियों में तलते समोसे, मिर्चीपकौड़े, ब्रेडपकौड़े,बड़ी-बड़ी केतलियों में उबलती चाय, बंगाली कारीगरों के द्वारा तैयार किये जा रहे रसगुल्ले और गुलाबजामुन ; ये आकर्षण के केंद्रबिंदु होते हैं. इन मिठाईयों और नमकीनों के लाजवाब स्वाद पर शम्भु भाई का हर पल मुस्कराता चेहरा चार चाँद लगा देता है जो उनकी दुकान में आनेवाले हर शख्स का “नमस्ते साहब जी” के चिरपरिचित अंदाज़ से स्वागत करता है.
शम्भु भाई की दुकान पर गहमागहमी है. हर आनेवाले ग्राहक के चेहरे पर शम्भु भाई की नज़र है. हिंदी,तेलुगु,तमिल,बंगला ,कन्नड़ और कभी कभी अंग्रेजी के शब्दों से भी वे ग्राहकों का स्वागत कर रहे हैं.
“नमस्ते रेड्डी साहब-आपके मिर्चीपकौड़े तैयार हो रहे हैं.”
“क्या बात हैं सिंह साहब-बहुत दिनों बाद आ रहे हैं.कब लौटना हुआ बिहार से?”
“आदाब मुश्ताक भाई. आपको तो गुलाबजामुन चाहिए.”
“केमोन आछेन बनर्जी दादा?”
“गुड इवनिंग अय्यर साहब.हाउ आर यू सर?”
“अरे मिश्रा साहब-नमस्ते. नाराज़ हैं क्या? लगता है आज भौजाई ने अच्छा लंच नहीं कराया है. कोई बात नहीं शम्भु भाई के समोसे खाईये और मस्त हो जाईये .”
गजब का इंसान है शम्भु भाई. हर आनेवाले को नाम से पहचानते हैं. उन्हें सबके पसंद और नापसंद का ख्याल है. कौन चाय पीता है, किसे कॉफ़ी पसंद है, किसे गुलाबजामुन और किसे समोसे, कौन कब छुट्टियों से लौटा है,किसके घर में किसकी तबियत ख़राब है,किसके रेल टिकट कन्फर्म नहीं हुए हैं,किसकी ऑफिस में बॉस से लड़ाई हो गयी है , कौन रिटायरमेंट में जा रहा है ,किसके गाँव में बाढ़ आई है और किसकी बिटिया की शादी तय हो गई है? कौन दिल्ली का है, कौन बिहार से, कौन बंगाल से, कौन उड़ीसा से और कौन महाराष्ट्र से-शम्भू भाई को सबकी पहचान है. राजेश समोसे खाते हुए शम्भु भाई की याददाश्त पर आश्चर्यचकित हो रहा है. इतने लोगों में ये कैसे इतना सब कुछ याद रखते हैं . राजेश चाय की चुस्कियां भी ले रहा है और समोसे का आनन्द भी. अभी पंद्रह दिन पहले ही फैक्ट्री में ज्वाइन किया है. इस शम्भु भाई को कभी इत्मीनान से बैठकर समझना होगा. राजेश के मस्तिष्क में यह सब चल ही रहा है कि शम्भु भाई उसके पास आकर बोलते हैं- “राजेश साहब. कैसा लग रहा है आंध्र प्रदेश का यह गांव आपको?” राजेश शम्भु भाई के इस अचानक आगमन से अकचका गया. “राजेश साहब हमें पता है कि आप बिहार से इतनी दूर इस पेट के लिए आये हो. मुझे भी देख लो मैं कहाँ मध्य प्रदेश का रहनेवाला और किधर आकर टिक गया.” राजेश ने सहमति में अपने सर हिलाया.
“समोसे खाने हो या नहीं खाने हों, इधर आ जाया करना, वक़्त गुजर जायेगा. एक चाय पर ही ज़माने भर का आनंद ले लिया जायेगा . कुछ आप सुनाना ,कुछ मैं सुनाऊंगा ; कुछ औरों की भी सुनेंगे.”
राजेश शम्भु भाई को देखता रह गया- “वाह! शम्भु भाई आप तो शायराना हो रहे हैं.” राजेश की आवाज उन तक पहुंची या न पहुंची पर शम्भु भाई की आवाज स्पष्ट आ रही थी-“ श्रीनिवास गारू, आपको नालुगु समोसे चाहिए न? श्रीनिवास जी के सर हिलाकर स्वीकृति देने से राजेश हतप्रभ हो गया. यह अजीब शख्स है भाई! बगल वाली टेबल पर छः लोग बैठे हैं. शम्भु भाई उनकी टेबल पर पांच समोसे और छः चाय रखते हैं. किसी एक ने कुछ पूछना चाहा तो शम्भु भाई बोल पड़े –“पांडेय जी को समोसे नहीं मिर्ची पकौड़े चाहिए. बस अब तलकर निकलनेवाले हैं.” राजेश उन्हें ख़ामोशी से देखता हुआ सोचने लगा- यह शम्भु भाई भी शोध का विषय है. राजेश के दुकान से निकलते वक़्त शम्भु भाई ने उनसे कल आने का वादा करा लिया था. राजेश कुछ बोलता उसके पहले ही शम्भु भाई बोल पड़े- “ ख्वाइशों की अनवरत दौड़ है साहब ये ज़िन्दगी, चाय की चुस्कियों में ही निकल जाएगी.”
राजेश अपने क्वार्टर पहुंचकर भी शम्भु भाई के बारे में ही सोचता रहा. दूसरे दिन ऑफिस में भी उनके बारे में तरह-तरह के विचार आते रहे. अजीब इंसान है- हर चेहरे को पढ़ लेता है,निगाहों की भाषा समझ लेता है, सवालों के पहले जवाब तैयार रखता है. वह सबकी ख्वाइशों को पढ़ लेता है और अपने चिरपरिचित मुस्कान से सबका दिल मोह लेता है. राजेश बेसब्री से शाम होने का इंतज़ार करता रहा.ऑफिस समाप्त होते ही वो शम्भु भाई की दूकान पर पहुँच गया. दूकान पर हर दिन की तरह लोगों की भीड़ जमा हो चुकी थी. शम्भु भाई उसी अंदाज़ में सबका स्वागत कर रहे थे और उन सबके टेबल पर उनकी पसंद के नाश्ते और चाय रख रहे थे. राजेश को देखते ही शम्भु भाई ने अपने चिरपरिचित मुस्कान से उनका स्वागत किया-
“नमस्ते साहब जी. पहले समोसे खाइए और चाय पीजिये, दो घंटे बाद आपके सवालों का जवाब दूंगा.”
‘अरे शम्भु भाई आपको कैसे पता कि मेरे पास सवाल हैं?”
“साहब जी बीस वर्षों से चेहरे पढ़ रहा हूँ . आज आपको मेरे हाथ की बनी पूरी और आलूदम खाना होगा. उसी वक़्त गुफ्तगू भी होगी.”
राजेश ख़ामोशी से कोने की एक कुर्सी पर बैठ गए. तीन घंटों में कभी चाय, कभी कॉफ़ी और कभी गरमागरम जलेबियों का भी आनंद लिया.
रात्रि के नौ बजने वाले हैं. शम्भु भाई की दुकान लगभग खाली हो चुकी है.राजेश किन्ही ख्यालों में गुमसुम विचारों के प्रवाह में बहे जा रहे हैं.
“और साहबजी. हमारे हाथ की बनी इस पूरी और आलूदम का आनंद लीजिये.”- शम्भु भाई के इस आग्रह से राजेश विचारों की दुनिया से बाहर निकले.
”शम्भू भाई हमारे कुछ सवाल हैं? क्या आप बताना चाहेंगे?”- राजेश के इस प्रश्न पर शम्भु भाई मुस्करा उठे.
”आपके हर सवालों का जवाब है मेरे पास. आप सुनना चाहेंगे?”
“पर मैंने अभी सवाल तो पूछा ही नहीं?”
“सवाल कोई भी हो, मेरा जवाब एक ही है.”
“क्या?”
“साहब जी. मैं संवाद करता हूँ. संवाद के माध्यम से लोगों को समझता हूँ, पढने का प्रयास करता हूँ, उनकी नज़रों से उनकी दुनिया देखता हूँ,उनके स्वपनों को कुरेदता हूँ, उनकी ख्वाइशों की अंधी दौड़ में शामिल होता हूँ , उनकी ज़िन्दगी का हिस्सा बन जाता हूँ और उनके स्वपन में ही अपने स्वपन देखने लगता हूँ.” -राजेश अपलक शम्भु भाई को निहारे जा रहे थे.
“अरे साहब जी. ज़िन्दगी इंसानों को पढने का ही तो नाम है. मैं वही तो करता हूँ.सबके सुख-दुःख में शामिल, सबके दर्द में शरीक , सबकी मस्तियों में मस्त; यही मेरे जीवन का मंत्र है. मैं यहाँ आनेवाले हर ग्राहक की ज़िन्दगी में इस कदर लिपटा हूँ कि सबकी ख्वाइशें,उड़ानें,सपने मेरे अपने बन गए हैं.”
राजेश शम्भु भाई को एक शालीन श्रोता की तरह सुनते हुए पूरी और आलूदम खाए जा रहे हैं.
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-श्रीकांत उपाध्याय
नई दिल्ली
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