'हंस' के सम्पादक और प्रसिद्ध साहित्यकार राजेन्द्र यादव के असामयिक निधन पर हिन्दू कालेज के हिंदी विभाग द्वारा श्रद्धांजलि दी गई। शोक सभा में विभाग के आचार्य डॉ रामेश्वर राय ने कहा कि स्त्री और दलित विमर्श की ज़मीन तैयार करने वाले साहसी सम्पादक और विख्यात लेखक का जाना असामयिक इसलिए लगता है कि उन्होंने अपने को अप्रासंगिक नहीं होने दिया था। डॉ राय ने उनके उपन्यास 'सारा आकाश' को हिंदी रचनाशीलता के श्रेष्ठ उदाहरण के रूप ने रेखांकित करते हुए उनके अवदान की चर्चा भी की।
वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ हरीन्द्र कुमार ने यादव के कहानी लेखन की चर्चा करते हुए 'जहां लक्ष्मी कैद है' और नयी कहानी आंदोलन में उनकी भूमिका के बारे में बताया। विभाग की पत्रिका 'हस्ताक्षर' की सम्पादक डॉ रचना सिंह ने हस्ताक्षर में उनके साक्षात्कार के बारे में बताया और कहा कि अपने मत पर अडिग रहने वाले दूरदर्शी सम्पादक के रूप में यादव जी को याद किया जाता रहेगा। सभा में विभाग के प्रभारी डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर ने कहा कि कहानी,उपन्यास और सम्पादन के साथ साथ यादव जी को हिंदी गद्य की उच्च स्तरीय समीक्षा के लिए भी याद किया जाता रहेगा।
डॉ. तीर्थंकर ने 'अठारह उपन्यास ' को उपन्यास आलोचना की श्रेष्ठ कृति बताया और कहा कि गद्य के लिए साहित्य में जैसा मोर्चा राजेंद्रा यादव ने लिया वह कोई साधारण बात नहीं है। डॉ अरविन्द सम्बल और डॉ रविरंजन ने भी सभा में भागीदारी की। संयोजन कर रहे हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने कहा कि पाखण्ड से भरे भारतीय जीवन में अपनी स्थापनाओं के लिए राजेन्द्र यादव को याद किया जाता रहेगा। उन्होंने कहा कि हंस के माध्यम से यादव जी ने अपने समय की सबसे प्रभावशाली और ईमानदार पत्रिका पाठकों को दी। अंत में सभी अध्यापकों और विद्यार्थियों ने दो मिनिट का मौन रख राजेन्द्र यादव के प्रति श्रद्धांजलि व्यक्त की।
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