पहला व्याख्यान : हिन्दी का कथेतर गद्य – माधव हाड़ा
दूसरा व्याख्यान : उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकतावाद- सुधीश पचौरी
वाणी डिजिटल : शिक्षा शृंखला और प्रभाकर सिंह, बीएचयू वाराणसी की ओर से आयोजित हिन्दी साहित्य का इतिहास :अध्ययन की नयी दृष्टि, विचारधारा और विमर्श का दूसरा पड़ाव 6 अगस्त 2020 से शुरू किया गया। पहले पड़ाव को 5 लाख पाठकों ने सराहा, और वीडियो के 30,000 से अधिक शेयर हुए।
दूसरे पड़ाव में 16 व्याख्यानों की श्रृंखला में का पहला व्याख्यान सुप्रसिद्ध आलोचक माधव हाड़ा ने दिया। विषय ‘हिन्दी के कथेतर गद्य’ पर केन्द्रित था। इस विषय पर बोलते हुए माधव जी ने कहा कि कथेतर गद्य की रचनात्मकता औपनिवेशिक चेतना से मुक्त होने की जद्दोजहद का परिणाम है। हर जातीय समाज अपने सांस्कृतिक और वर्गीय ज़रूरतों के अनुसार साहित्य को सम्भव करता है। हिन्दी में कथेतर गद्य की रचनात्मकता इसी का परिणाम है। गद्य लेखन के आरम्भ से ही कथेतर गद्य में कई महत्वपूर्ण रचनाएँ रची गयीं। हिन्दी कथेतर गद्य की सैद्धांतिकी को भी विकसित किया गया। श्यामसुन्दर दास का साहित्यलोचन इसी का उदाहरण है। संगीत में फ्यूजन की तरह आज के साहित्य में कथेतर गद्य की रचनाएँ रची जा रही हैं। आत्मकथा, संस्मरण , उपन्यास आपस में एक-दूसरे से इस तरह घुलमिल गये हैं कि साहित्य की रचनात्मकता का विकास हुआ है। लघुता के इस दौर में साहित्य का हाशियाकरण विकसित हुआ है। हिन्दी की कथेतर गद्य विधाओं में अगर कुछ प्रमुख रचनाओं का नाम लिया जाये तो उसमें काशीनाथ सिंह का काशी का अस्सी ,राजेश जोशी का किस्सा कोताह, विश्वनाथ त्रिपाठी का व्योमकेश दरवेश ,स्वयं प्रकाश की रचना एक कहानीकार की नोटबुक कुछ प्रमुख रचनाएँ हैं। आज गद्य की रचनात्मकता में तमाम गद्य विधाएँ एक-दूसरे के सीमाओं में घुसने को आतुर हैं। गद्य का नया रूपबन्ध नए समय में अपने नये कलेवर के साथ विकसित हो रहा है। यों आलोचना में भी इसके कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। ख़ुद माधव जी की पुस्तक पंचरंग चोला पहर सखी री और राजेश जोशी की आलोचनात्मक पुस्तक एक कवि की नोटबुक इसका सुन्दर उदाहरण हैं।
दूसरा व्याख्यान : उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकतावाद- सुधीश पचौरी
वाणी डिजिटल : शिक्षा शृंखला की ओर से हिन्दी साहित्य का इतिहास :अध्ययन की नयी दृष्टि, विचारधारा और विमर्श नामक व्याख्यानमाला में आज दूसरे दिन सुप्रसिद्ध आलोचक मीडिया विशेषज्ञ और स्तंभ लेखक सुधीश पचौरी जी ने ‘उत्तर-आधुनिकता और उत्तर-आधुनिकतावाद’ पर कई वैचारिक और अवधारणा से युक्त बातें कहीं। उत्तर आधुनिकता ने हाशिये की तमाम सारी चीज़ों को केन्द्र में स्थापित कर दिया। नए पूँजीवाद अथवा वृद्ध पूँजीवाद ने और तकनीकी की नई दुनिया ने साहित्य में बने बनाए ढाँचे को तोड़ दिया। मेगा नैरेटिव का स्वरूप भी बदला है विधाएँ ख़त्म हुई हैं सब मिक्स हुआ है। यह भी बात ज़रूर हुई है कि अब ओरिजिनल जैसी कोई चीज नहीं रह गई। आज का लेखन पैरोडी को और सटायर को बहुत महत्त्व देता है। अद्वितीयता जैसी कोई चीज़ नहीं है। साहित्य में मनोहर श्याम जोशी उत्तर आधुनिक लेखक हैं। साथ ही हिन्दी साहित्य के इतिहास में आज उत्तर आधुनिकता की दृष्टि से हमें तुलसी, कबीर और सूरदास को भी पढ़ना चाहिए। इतिहास लेखन में भी साहित्य इतिहास की तीसरी परम्परा की खोज़ उत्तर आधुनिकता में नव इतिहास शास्त्र के माध्यम से किया जाना चाहिए। सोशल मीडिया के इस दौर में बहुत कुछ ऐसा भी लिखा जा रहा है जो उत्तर आधुनिकता की दृष्टि से बेहद ज़रूरी और महत्त्वपूर्ण है। उत्तर आधुनिकता हमें चीज़ों को सामान और सरल तरीक़े से देखने और समझने में मदद करती है। यहाँ श्रेष्ठता का कोई सिद्धान्त नहीं है। यह साहित्य के लोकतान्त्रिक स्वरूप को नयी दृष्टि प्रदान कर रहा है।
वाणी प्रकाशन के बारे में…
वाणी प्रकाशन, ग्रुप 57 वर्षों से 32 साहित्य की नवीनतम विधाओं से भी अधिक में, बेहतरीन हिन्दी साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। वाणी प्रकाशन, ग्रुप ने प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ऑडियो प्रारूप में 6,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। वाणी प्रकाशन ने देश के 3,00,000 से भी अधिक गाँव, 2,800 क़स्बे, 54 मुख्य नगर और 12 मुख्य ऑनलाइन बुक स्टोर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है।
वाणी प्रकाशन, ग्रुप भारत के प्रमुख पुस्तकालयों, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, ब्रिटेन और मध्य पूर्व, से भी जुड़ा हुआ है। वाणी प्रकाशन की सूची में, साहित्य अकादेमी से पुरस्कृत 25 पुस्तकें और लेखक, हिन्दी में अनूदित 9 नोबेल पुरस्कार विजेता और 24 अन्य प्रमुख पुरस्कृत लेखक और पुस्तकें शामिल हैं। वाणी प्रकाशन को क्रमानुसार नेशनल लाइब्रेरी, स्वीडन, रशियन सेंटर ऑफ आर्ट एण्ड कल्चर तथा पोलिश सरकार द्वारा इंडो, पोलिश लिटरेरी के साथ सांस्कृतिक सम्बन्ध विकसित करने का गौरव सम्मान प्राप्त है। वाणी प्रकाशन ने 2008 में ‘Federation of Indian Publishers Associations’ द्वारा प्रतिष्ठित ‘Distinguished Publisher Award’ भी प्राप्त किया है। सन् 2013 से 2017 तक केन्द्रीय साहित्य अकादेमी के 68 वर्षों के इतिहास में पहली बार श्री अरुण माहेश्वरी केन्द्रीय परिषद् की जनरल काउन्सिल में देशभर के प्रकाशकों के प्रतिनिधि के रूप में चयनित किये गये।
लन्दन में भारतीय उच्चायुक्त द्वारा 25 मार्च 2017 को ‘वातायन सम्मान’ तथा 28 मार्च 2017 को वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक व वाणी फ़ाउण्डेशन के चेयरमैन अरुण माहेश्वरी को ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज, ऑक्सफोर्ड में ‘एक्सीलेंस इन बिज़नेस’ सम्मान से नवाज़ा गया। प्रकाशन की दुनिया में पहली बार हिन्दी प्रकाशन को इन दो पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। हिन्दी प्रकाशन के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना मानी जा रही है।
3 मई 2017 को नयी दिल्ली के विज्ञान भवन में ‘64वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह’ में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के कर-कमलों द्वारा ‘स्वर्ण-कमल-2016’ पुरस्कार प्रकाशक वाणी प्रकाशन को प्रदान किया गया। भारतीय परिदृश्य में प्रकाशन जगत की बदलती हुई ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए वाणी प्रकाशन, ग्रुप ने राजधानी के प्रमुख पुस्तक केन्द्र ऑक्सफोर्ड बुकस्टोर के साथ सहयोग कर ‘लेखक से मिलिये’ में कई महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम-शृंखला का आयोजन किया और वर्ष 2014 से ‘हिन्दी महोत्सव’ का आयोजन सम्पन्न करता आ रहा है।
वर्ष 2017 में वाणी फ़ाउण्डेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित इन्द्रप्रस्थ कॉलेज के साथ मिलकर हिन्दी महोत्सव का आयोजन किया। व वर्ष 2018 में वाणी फ़ाउण्डेशन, यू.के. हिन्दी समिति, वातायन और कृति यू. के. के सान्निध्य में हिन्दी महोत्सव ऑक्सफोर्ड, लन्दन और बर्मिंघम में आयोजित किया गया ।
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