यह तो सभी जानते हैं कि तोते इन्सानों की भाषा की नकल कर सकते हैं। लेकिन, वे ऐसा कैसे कर पाते हैं इस बात को लेकर वैज्ञानिक हमेशा जानने के लिए उत्सुक रहे हैं। पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां संदेशों के आदान-प्रदान के लिए कई तरह के ध्वनि संकेतों का उपयोग करती हैं। भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में तोते और कौए जैसे पक्षियों द्वारा ध्वनियों के अनुकरण की क्षमता की तुलना मनुष्यों के साथ करने पर कई महत्वपूर्ण तथ्य उभरकर आए हैं।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, मनुष्य, कौए तथा तोते के स्वर तंत्र में कार्डिनल स्वरों का स्थान अलग-अलग होता है। इसका अर्थ है कि ये तीनों जीव उच्चारण के लिए अलग-अलग धवन्यात्मक क्षेत्रों का उपयोग करते हैं। लेकिन, इनके धवन्यात्मक क्षेत्रों का आकार समान होता है। मनुष्यों में कार्डिनल स्वर स्थानों के बीच की दूरी तोते और कौओं की तुलना में अधिक पायी गई है। जबकि तोते में कार्डिनल स्वर स्थानों ‘आई’ एवं ‘यू’ के बीच की दूरी सबसे कम पायी गई है।”
कपूरथला स्थित आई.के. गुजराल पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी, गुरदासपुर स्थित बेअंत कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी और जम्मू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा कार्डिनल स्वरों ‘ए’, ‘आई’ एवं ‘यू’ को केंद्र में रखकर यह अध्ययन किया गया है। इसमें ध्वनियों की नकल करने की तोते और कौए की क्षमता की तुलना मनुष्य के साथ की गई है। शोधकर्ताओं ने कॉमसोल मल्टीफिजिक्स नामक एक खास सॉफ्टवेयर का उपयोग इस अध्ययन में किया है। स्वर तंत्र के आकार अथवा उसके विभिन्न आयामों में होने वाले परिवर्तनों का परीक्षण कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से किया गया है।
इस अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता रणधीर सिंह ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “कार्डिनल स्वरों के लिए मानवीय स्वर तंत्र के आकार और क्षेत्र का अनुमान लगाने के लिए पूर्व अध्ययनों से मिले आंकड़ों का उपयोग किया गया है। मनुष्य की नकल करने के लिए कौए तथा तोते द्वारा अपनी जीभ में मॉड्युलेशन करने की क्षमता को केंद्र में रखकर उनके स्वर तंत्र की बनावट का आकलन करने की कोशिश की गई है। 100 से 5000 हजार हर्ट्ज की आवृत्ति के दायरे में यह अध्ययन किया गया है।”
वैज्ञानिकों ने पाया है कि चोंच को छोड़कर पक्षियों के ध्वनि उत्पन्न करने वाले अंग मनुष्यों की तरह होते हैं। फेफड़े, श्वासनली, स्वर यंत्र, मुंह और चोंच पक्षियों के प्रमुख ध्वनि उत्पादक अंग होते हैं, जो उच्चारण में मदद करते हैं। तोते की रिंगरनेक तथा एलेक्जडरीन प्रजातियां और भूरे रंग के अफ्रीकी तोते समेत कौओं को अन्य जीवों की आवाज की नकल करने में सक्षम माना जाता है। तोते के ध्वनि उत्पन्न करने वाले अंग में मौजूद कंपक झिल्ली की बनावट अन्य पक्षियों की तुलना में जटिल नहीं होती है। तोते और मनुष्य की जीभ की सतह आकार में समान होती है। तोते विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को पैदा करने के लिए अपनी जीभ में बदलाव कर सकते हैं।
दुनिया भर में तोतों की तकरीबन 350 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं, ये प्रायः 3.5 से 40 इंच तक लंबे तथा 64 ग्राम से 1.5 किलोग्राम तक वजन के होते हैं। भारतीय रिंगरनेक तोते की लंबाई 37-42 सेंटीमीटर एवं वजन 120-140 ग्राम होता है। तोते सिर्फ हरे रंग के ही नहीं होते, बल्कि इनकी कई प्रजातियां रंग-बिरंगी भी होती हैं। उत्तरी कनाडा में तो सतरंगे तोते भी देखे जा सकते हैं। वहीं, कौओं को उनकी अनुकूलन क्षमता, चातुर्य और संचार संबंधी गुणों के लिए खासतौर पर जाना जाता है। भारत में पाया जाने वाला कौआ आमतौर पर 44 सेंटीमीटर लंबा होता है, जिसके पंखों का आकार 76-85 सेंटीमीटर और वजन 300-400 ग्राम होता है। मादा और नर कौए देखने में एक जैसे ही होते हैं, पर नर कौआ मादा की अपेक्षा आकार में थोड़ा बड़ा होता है।
“वैज्ञानिकों के मुताबिक, बोलने की क्षमता रखने वाले पक्षियों के दिमाग में वोकल लर्निंग को नियंत्रित करने वाला एक केंद्र होता है, जिसे कोर कहते हैं। लेकिन, तोते के दिमाग में इस कोर के अलावा एक बाहरी रिंग या शेल भी पायी जाती है, जो बोलना सीखने में इसकी विशेष मदद करती है।
शोध पत्रिका करंट साइंस में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, ये दोनों पक्षी आमतौर पर इन्सानी पक्षियों के आसपास पाए जाते हैं और कई बार कुछेक समस्याओं का कारण बन भी जाते हैं। इन्हें ऐसे रोगाणुओं के संवाहक के तौर पर भी जाना जाता है, जो मनुष्य और मवेशियों को प्रभावित करते हैं। कई अध्ययनों में इन पक्षियों को हैजा, पेचिश, वेस्ट नील वायरस (डब्ल्यूएनवी) और बर्ड फ्लू फैलाने के लिए भी जिम्मेदार बताया गया है। इसलिए इन पक्षियों के संदेशों के आदान-प्रदान संबंधी व्यवहार को समझना महत्वपूर्ण हो जाता है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस अध्ययन के नतीजे स्वर तंत्र के मॉड्युलेशन को समझने में मददगार हो सकते हैं। उदाहरण के लिए भोजन के लिए पक्षियों को इकट्ठा करने और बीमारियों से बचाव के लिए उन्हें कृत्रिम रूप से बुलाकर दवा देने में इसका उपयोग हो सकता है। इन्सानी बस्तियों के आसपास पाए जाने वाले कौए और तोते जैसे पक्षियों में इस तरह की तकनीक का उपयोग खासतौर पर किया जा सकता है।
शोध पत्रिका प्लॉस वन में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में अमेरिका की ड्यूक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तोते के दिमाग में खास तरह की संरचना का पता लगाया है, जिसकी वजह से वे मनुष्य की भाषा की नकल कर पाते हैं। इस शोध में ड्यूक यूनिवर्सिटी की भारतीय मूल की न्यूरोबॉयोलॉजी में एसोसिएट प्रोफेसर मुक्ता चक्रबर्ती भी शामिल थीं। वैज्ञानिकों के मुताबिक तोते द्वारा मनुष्यों की बोली की नकल करने की क्षमता का पता तोते के जीन पैटर्न के अध्ययन से लगाया गया है।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, बोलने की क्षमता रखने वाले पक्षियों के दिमाग में वोकल लर्निंग को नियंत्रित करने वाला एक केंद्र होता है, जिसे कोर कहते हैं। लेकिन, तोते के दिमाग में इस कोर के अलावा एक बाहरी रिंग या शेल भी पायी जाती है, जो बोलना सीखने में इसकी विशेष मदद करती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तोतों की कुछ प्रजातियों में तो यह रिंग सामान्य से ज्यादा बड़ी होती है, जिसके चलते वे ज्यादा अच्छे तरीके से मनुष्यों की आवाज की नकल कर पाते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार तोतों की सबसे पुरानी प्रजाति कीया में भी यह बाहरी रिंग पायी जाती है, न्यूजीलैंड में पाए जाने वाले इस तोते की रिंग संरचना से पता लगाया जा सका है कि इसके शेल में न्यूरॉन्स की संख्या 29 लाख साल पहले पैदा हुई थी।
पक्षियों द्वारा उपयोग की जाने ध्वनियों को गीत और संकेतों में वर्गीकृत किया जा सकता है। गीत की अपेक्षा संकेतों की संरचना जटिल नहीं होती, बल्कि ये छोटी अवधि के होते हैं और उनमें लयात्मकता नहीं होती। एक- दूसरे से संपर्क, अपनी लोकेशन बताने, उड़ते हुए अपना संदेश दूसरे साथी तक पहुंचाने, खतरों से सचेत करने और भोजन के स्रोतों की जानकारी साझा करने के लिए नर और मादा दोनों ही इन संकेतों का उपयोग करते हैं। इसके विपरीत, पक्षियों के गायन में लयात्मकता होती है और और वे संकेतों की तुलना में जटिल होते हैं।
कई पक्षियों को उनके गायन के लिए जाना जाता है। पर, कुछ जानकारों का कहना है कि पक्षियों के स्वर सीमित होने के कारण वे गा नहीं पाते नहीं हैं। वे सिर्फ बार-बार एक जैसी कुछ आवाजें निकाल सकते हैं। तोता और मैना जरूर कुछ शुद्ध बोल सकते हैं। कुछ पक्षियों की बोली सुनकर संगीत जैसा आनंद मिलता है। इसका अर्थ यह नहीं कि वे गाना गा रहे हैं। उदाहरण के लिए कोयल सिर्फ कूहू-कूहू बोलती है, टिटहरी टिव-टिव और कठफोड़वा पेड़ों को ठोक-ठोककर ठक-ठक की आवाज निकालता है।
बुलबुल अक्सर शाम को गाती है, तो कोयल का गायन सुबह, दोपहर, शाम कभी भी हो सकता है। लार्क, लावा और पिपिट का स्वर बेहद आकर्षक होता है। पर, कौए जैसे पक्षियों की कांव-काव का स्वर उतना ही कर्कश। तोता और मैना जैसे पक्षी मनुष्य या अन्य जीवों की आवाज को दोहराने की क्षमता रखते हैं। पर, इसका मतलब यह है नहीं है कि वे इन ध्वनियों का अर्थ भी समझते हैं।
उमाशंकर मिश्र विज्ञान से जुड़े विषयों पर लिखते हैं