भोपाल। स्वीडन (जर्मनी) के शिक्षक प्रो. हाइंस वारनाल वेस्लर का कहना है कि मैं अगर भोपाल नहीं आता तो जीवनभर अफसोस रहता। मुझे हिन्दी बहुत प्रिय है। मैं जर्मनी में बच्चों को हिन्दी पढ़ाता हूं। मुझे हिन्दी पढ़ाने से ऊर्जा और बोलने में खुशी मिलती है।
विश्व हिन्दी सम्मेलन में शिरकत करने आए प्रो. हाइंस वारनाल वेस्ल ने इस प्रतिनिधि से विशेष बातचीत में कहा कि हिन्दी से मेरा नाता 30 साल पुराना है। हिंदी शुद्ध और संपन्न भाषा है। इसके एक-एक शब्द का उच्चारण जुबान के लिए योग-व्यायाम की तरह है। अक्षरों की बनावट भी खूबसूरत है।
उन्होंने कहा मैं हमेशा सुनता आया हूं कि एक जर्मन के लिए हिन्दी बोलना कठिन है। इस पर मैंने सोचा-हिन्दी बोलना कठिन है, सीखना नहीं। इसलिए मैंने इसका अभ्यास शुरू किया। इसके लिए मैंने संस्कृत का सहारा भी लिया।
उनके अनुसार जर्मनी का संस्कृत भाषा से सदियों पुरान रिश्ता है। साल 1800 में जर्मन विद्वान विलियम जोस ने भारत के महाकवि कालिदास की ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्” का जर्मनी भाषा में अनुवाद किया था। मैंने वह भी पढ़ा। हम जर्मनी की युवा पीढ़ी को भारतीय ग्रंथों, वेदों, दोहों, चौपाइयों के जरिए भाषा का विस्तृत परिचय देते हैं। 19वीं शताब्दी में यूरोप में संस्कृत का काफी बोलबाला था। इन बातों ने भी मुझे हिन्दी सीखने के लिए प्रेरित किया। मैं दर्जनों बच्चों को हिन्दी सिखाता-पढ़ाता हूं।”
हिन्दी सेवियों की संख्या घटी
प्रो. हाइंस वारनाल वेस्लर ने कहा कि मैंने पढ़ा है कि संस्कृत भारतीय ग्रंथों की गहराई नापने का जरिया रही है। हमारे देश में हिन्दी कई सालों से बोली, लिखी और पढ़ी जा रही है। जर्मनी प्रारंभ से ही कवियों, चिंतकों-विचारकों का देश रहा है इसलिए वहां हिन्दी-संस्कृत बोलने-पढ़ने वाले लोगों की काफी संख्या थी। पिछले कुछ सालों में वहां हिन्दी की लोकप्रियता कमी आई है। हां, लेकिन दिलचस्पी बरकरार है।
उनके अनुसार जर्मन नागरिकों के लिए हिंदी एशियाई देशों संपर्क का एक बड़ा माध्यम है। कहां, कितने लोग हिंदी पढ़ते हैं मैं भाषा विशेषज्ञ के तौर पर काम करता हूं। लिहाजा जर्मनी में घूम-घूमकर विभिन्न् भाषाएं जानने वाले लोगों से मिलता और हिन्दी की शिक्षा देने वाले संस्थानों में जाता हूं।
जर्मनी के हाइडेलबर्ग, लोवर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हंबोलडिट, बॉन विश्वविद्यालय आदि संस्थानों में हिन्दी सालों से पढ़ाई जा रही है, लेकिन पिछले 10 साल में यहां हिन्दी के विद्यार्थियों की संख्या कम हुई है। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के सहयोग से वहां हिन्दी और संस्कृत पढ़ाई जाती है। परिषद ही जर्मनी में हिन्दी शिक्षकों की नियुक्ति करता है। स्वीडन में इस साल चार नए हिन्दी शिक्षक रखे गए हैं। पहले एशियाई भाषा अध्ययन विभाग के विश्वविद्यालयों में एक सत्र में हिन्दी-संस्कृत विद्याथियों की संख्या 100 से अधिक थी। अब 40 के आसपास ही हैं।
साभार- http://naidunia.jagran.com/ से