जासुसी पर देश विदेश में अनेकों किताबें लिखी जा चुकी हैं कुछ स्वयं उनके द्वारा जो जासूस रह चुके हैं और बहुत सी दूसरे लेखकों द्वारा तथ्यों के आलोक में प्रमाणिकता के साथ प्रकाशित हुई हैं।
इन्हें पढ़ने के बाद हमें अंदाजा होता है कि एक जासूस spy होना वो भी पाकिस्तान में जासूस होना किसे कहते हैं इस काम में कितनी चुनोतियाँ और कैसे कैसे खतरे हैं और भगवान ना करे अगर दुश्मन के हाथ पकड़े गए तो कितने अत्याचार और अमानवीय यातनाएं झेलनी पड़ती है एक जासूस को।
श्री मोहनलाल भास्कर भारत की खुफिया एजेंसी के ऐसे ही एक गुप्तचर थे जो 1965 के भारत पाक युद्ध के दौरान अपने मिशन पर पाकिस्तान गए थे वहां विश्वासघात के कारण वो दुश्मन के हाथ पड़ गए।फिर पाकिस्तान की जेलों से एक लंबी ख़ौफ़नाक जेलयात्रा के बाद आखिरकार किस तरह वह अपने देश वापिस लौट पाए श्री मोहनलाल ने इसका रोंगटे खड़े कर देने वाला वर्णन किया है जो आंखों के आगे फ़िल्म की तरह घूम जाता है व बताता है की इस भारत भूमि की आन बान शान की रक्षा के लिए वीर सपूतों ने न जाने कितनी मुसीबतें हंसते हंसते झेली है।
पुस्तक परिचय
पाकिस्तान में जासूस श्री भास्कर की यह पुस्तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में एक धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुई थी उसके बाद यह हिंदी मराठी और अन्य प्रमुख भाषाओं में एक पुस्तक के रूप में प्रकाशित हुई।
पुस्तक राजकमल प्रकाशन द्वारा छापी गई है और इसका पहला संस्करण 1987 में आया था और वर्ष 2018 तक इसके 14 संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। पुस्तक की प्रस्तावना मशहूर लेखक खुशवंत सिंह द्वारा लिखी गई है।
श्री भास्कर का पाकिस्तान में जासूस के रूप में कार्यकाल का अधिकांश समय जनरल याहया खान के शासन के दौरान बीता तथा जनरल भुट्टो को उन्होंने जेल में देखा था और भुट्टो को पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनते हुए भी देखा था। बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान को जब पाकिस्तान के नियम वाली जेल में ले जाया गया था उस समय भी श्री भास्कर उस जेल में कैद थे।
शुरुआत
किताब की शुरुआत श्री भास्कर पाकिस्तान स्थित वहीदा बेगम के हाई प्रोफाइल कोठे के किस्से से करते हैं है कि किस तरह एक जासूस को दुश्मन देश की संवेदनशील सूचनाएं प्राप्त करने के लिए कैसी-कैसी तरकीबें निकालनी पड़ती है वहीदा बेगम एक हाई प्रोफाइल वेश्यालय चलाने वाली औरत थी जहां पर लेखक है सूचनाएं निकलवाने के लिए रात गुजरता है।
भारत वापसी
1 दिन लाहौर में अपने एक दोस्त मोहम्मद अशरफ बट उर्फ बट बहनों वाला के यहां बैठे हुए भास्कर व उनके साथी रेडियो पर एक खबर सुनते हैं कि मियांवाली जेल में तीन हिंदुस्तानी जासूसों को फांसी दी गई है जिसके बाद यह परेशान हो जाते हैं और तनाव की हालत में शक से बचने के लिए बॉर्डर पार कर वापस भारत आ जाते हैं।
गिरफ्तारी
दोबारा पाकिस्तान में जासूस के रूप में जाने से पहले श्री भास्कर जालंधर के बारे में लिखते हैं कि उन्हीं के एक साथी ने अमरीक सिंह नामक एक व्यक्ति को उनके पास रात को रुकवाया था जिसने श्री भास्कर के बैग से छेड़छाड़ की थी जिस पर भास्कर ने अपने अधिकारियों को उसके बारे में बताया और उसे विश्वास के करने के लायक नहीं समझा।
इस बात के तीन चार महीने बीत जाने के बाद जब वह दोबारा पाकिस्तान में जासूस बनकर आ रहे थे तो उनके मन में बहुत बुरे बुरे ख्याल आ रहे थे रात को बॉर्डर पार करने के बाद अपने साथी समुंद्र सिंह के साथ में है वह लाहौर जाने वाली बस में बैठे हैं जिसमें वही अमरिक सिंह नामक व्यक्ति अपने तीन चार साथियों के साथ चढ़ा और धोखे से फौज के हाथों गिरफ्तार करवा दिया।
गिरफ्तारी के बाद
गिरफ्तार करने के बाद पाकिस्तान में जासूस श्री भास्कर को फील्ड इंटेरोगेशन यूनिट लाहौर ले जाया गया और मेजर एजाज मकसूद ने उनसे चाय पेश करते हुए पूछताछ करनी शुरू की कि और जासूसी के आरोप को नकारने के बाद बर्बर अत्याचार करने शुरू किया टॉर्चर करने का हर वह तरीका अपनाया जाने लगा जिसका नाम सुनते ही बड़े-बड़े सूरमा के माथे पर पसीना आ जाता है जैसे सर्द रात में नंगे बदन बिस्तर सर पर उठाकर पूरी रात ग्राउंड के चक्कर लगाना रुकते ही बुरी तरह पीटना शामिल था।
हैरतअंगेज किस्से..
जेल में बंद पाकिस्तान में जासूस लेखक एक कैदी खोह सिंह वलद है फैसला सिंह का जिक्र करता है जो अनेकों यातनाओं के बावजूद अपनी जिंदादिली कायम रखता है और पुलिसवालों को गालियां निकालता रहता है।
एक के बाद दूसरी जैल
लेखक को एक के बाद एक थाना नौलखा लाहौर, कोट लखपत जेल लाहौर से कुख्यात जैल शाही किला लाहौर लाया जाता है।शाही किला शाहजहां के समय बनना शुरू हुआ था जिसका निर्माण महाराजा रणजीत सिंह ने पूरा करवाया था।जेलों में कोठरीयों की हालत ,दूरी,कैदियों के रखने के नियम,संतरियों की ड्यूटी और अफसरों के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है।
इस जेल की भूमिगत कोठरी में जहां सूर्य की किरणें तक नहीं पहुंचती वहां श्री भास्कर को 6 महीने नजरबंद की सजा सुनाई गई थी
राजा गुल अनार खान(शाही किले का जल्लाद)
यह नाम था उस इंसान का जो इंसान नहीं जीता जागता खौफ का नाम था जिसका नाम सुनकर शातिर शातिर कैदियों के हौसले टूट जाया करते थे और वह इंसान था सब इंस्पेक्टर राजा गुलनार खान।भास्कर की मुलाकात भी राजा गुल अनार खान से होती है लेकिन उसका रवैया इनके प्रति सद्भाव पूर्ण रहता है.
दोनों आपस में खुल जाते हैं तो राजा गुलनार खान अपना इतिहास बताता है कि मेरे भी पूर्वज हिंदू थे जिन्होंने औरंगजेब के समय में अत्याचारों के कारण मजबूरी में इस्लाम धर्म अपना लिया था लेकिन कुछ समय बाद जब वह वापिस हिंदू धर्म में आना चाहते हैं तो परिवार समाज और पंडित पुजारियों ने किस तरह उन्हें दुत्कार कर हिंदू धर्म में वापस नहीं आने दिया उसकी दर्दनाक दास्तान सुनाता है।
जेलों के किस्से
पाकिस्तान में जासूस की कहानी आगे चलती रहती है लाहौर की शाही किला जेल से भास्कर को एफ आई सी रावलपिंडी ले जाया जाता है रावलपिंडी जेल में जेलर मेजर कमाल रजा जादू था जोकि लेखक के अनुसार एक बेरहम और बेवकूफ किस्म का आदमी था जिसने भास्कर को बहुत ज्यादा प्रताड़ित और अपमानित किया।
पाकिस्तान में फौजी हुकूमत
पाकिस्तान में जासूस की किताब में पढ़ने पर हमें यह पता चलता है कि किस तरह श्री भास्कर ने भारत में पहला पत्र अपने घर भेजा और कैसे उन्हें अपने घर से उसका उत्तर प्राप्त हुआ।श्री भास्कर ने अपने विद्यार्थी जीवन विवाह पूर्व अपनी धर्मपत्नी से मुलाकात और शादी के बाद के हालातों पर भी सरसरी नजर डाली है ।
मार्शल लॉ के दिनों में फौजी हुक्मरानों की पाकिस्तान में किस तरह मनमानी चलती थी किस तरह चलती फिरती फौजी अदालत ने थी जो 20 फुट में अपने निर्णय सुना कर सजा और जुर्माने लगाते थे और सरेआम सड़कों पर लोगों को कोड़े लगाए जाते हैं कोट लखपत जेल की फांसी की कोठरी में कैदियों के हालात क्या थे किस तरह वह फांसी के नाम से ही कहते थे बहुत से ऐसे भी कह देते जो हंसते गीत गाते हुए फांसी पर चढ़ जाते थे।
तत्कालीन पाकिस्तान में सिंध बलूचिस्तान और पठान इलाकों में बढ़ रहे समलैंगिक सेक्स के अपराधों पर भी श्री भास्कर द्वारा नजर डाली गई है विस्तार से बढ़ रही इस बीमारी का वर्णन किया गया है जिसमें बड़े-बड़े सेना के अधिकारी और अमीरों का इस शौक के संबंध में जिक्र किया गया है।
वतन वापसी
बहुत से खौफनाक और हैरतअंगेज घटनाओं से होती हुई पाकिस्तान में जासूस होने की सजा काट रहे भास्कर कि पुस्तक आखिरकार रिहाई व वतन वापसी तक पहुंचती है।
1971 की भारत-पाक जंग के बाद दोनों देशों की जेलों में बंद कैदियों की रिहाई पर दोनों सरकारों की सहमति बनती है,लेखक जुल्फिकार अली भुट्टो की दिल से प्रशंसा करते हैं जिन्होंने इन सभी कैदियों की रिहाई का मार्ग प्रशस्त किया और आखिरकार 1974 में श्री भास्कर समेत लगभग 400 भारतीय कैदियों जिनमें अधिकतर पाकिस्तान में जासूस होने के इल्जाम में जैल में बंद थे को पाकिस्तानी कैदियों के बदले में भारत वापस भेजा जाता है।
आज के हालात में नाखून की चोट दिखाकर खुद को देशभक्त बताने वाले नेताओं के सामने उनकी कुर्बानियां बहुत बड़ी है जो पाकिस्तान में जासूस बनकर रहे इनमें से भी बहुत कम खुशनसीब थे जो सही सलामत वापिस आ पाए अन्यथा बहुतेरे तो वहीं जेलों में ही मर खप गए कोई सुध लेने वाला न हुआ,बहुत से पागल हो गए।
लेखक परिचय
पुस्तक “मैं पाकिस्तान में भारत का जासूस था” के लेखक श्री मोहनलाल भास्कर का जन्म पंजाब की अबोहर तहसील में 1942 में हुआ था। 7 साल पाकिस्तान की कोट लखपत, मियांवाली और मुल्तान की जेलों में जेल में गुजारने के बाद रिहा हुए और भारत लौटकर नई जिंदगी शुरू की और मानव मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल की शुरुआत की और शिक्षा के क्षेत्र में अपना महत्व योगदान दिया और कुछ समय तक फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कार्य किया श्री भास्कर की याद में फिरोजपुर पंजाब में ऑल इंडिया मुशायरा का आयोजन आज भी करवाया जाता है। श्री भास्कर का निधन 22 दिसंबर 2004 को हुआ।
इस पुस्तक को आप अमेजन से प्राप्त कर सकते हैं।
साभार https://lookyourbook.com/ से