यह एक ऐसे आईएएस अधिकारी की कहानी है जो साधु बन गया. सुनील पटनायक ने एक आईएएस अधिकारी के रूप में 23 साल बिताने के बाद आखिरकार उस सरकारी नौकरी को अलविदा कह दिया जिसको पाने के लोग सपने देखा करते हैं. सुनील पटनायक जब संन्यास ले रहे थे तब उनकी प्रतिष्ठित नौकरी के 14 साल बाकी थे. हालांकि उनका यह निर्णय अचानक जागृति या ईश्वर का आह्वान नहीं था. वह कई वर्षों से इसके बारे में सोच रहे थे और जैसे-जैसे दिन बीत रहे थे, स्वामी शिवानंद की शिक्षाएं उनके दिमाग पर गहरा प्रभाव डाल रही थीं. यह 1990 की बात है जब सुनील पटनायक ऋषिकेश पहुंचे और उन्होंने एक साधारण साधक के रूप में आश्रम में कदम रखा. उन्हें संन्यास की दीक्षा दी गई और उनका नाम बदलकर निर्लिप्तानंद कर दिया गया.
आपने सिविल सेवकों को असाधारण काम करते हुए सुना होगा, लेकिन भगवान का पूर्णकालिक सेवक बनना एकदम अलग बात थी. सुनील पटनायक आज डिवाइन लाइफ सोसाइटी के उपाध्यक्ष हैं, जिसका मुख्यालय ऋषिकेश में शिवानंद आश्रम में है. यह बात थोड़ी हैरत में डालने वाली थी कि राष्ट्रीय या राज्य-स्तर पर नीति बनाने और उसे लागू करने के समान संतुष्टि भिक्षुकपन कैसे प्रदान कर सकता है. ईश्वर के साथ निरंतर संवाद के बदले में उस अधिकार को त्यागना कितना कठिन रहा होगा जिसका आनंद उन्होंने 23 साल की नौकरी में कई बार लिया होगा?
लेकिन सुनील पटनायक थे ही ऐसे. जब वह राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी में प्रशिक्षण ले रहे थे, तब उन्हें एक बहुत ही शांत व्यक्ति के तौर पर जाना जाता था. उन्हें आमतौर पर गंभीर विचारकों की संगत में देखा जाता था. हालांकि वह कभी कभार बिलियर्ड्स खेला करते थे, लेकिन बाकी बातूनी और मौज-मस्ती पसंद करने वाले प्रोबेशनरों से अलग थे. लेकिन जब कई साल बाद पता चला कि पटनायक साधु बन गए हैं तो उन्हें जानने वाले लोगों के लिए यह बात थोड़ी चौंकाने वाली थी. मसूरी में प्रशिक्षण के समय एक सप्ताहांत, जब पूरी अकादमी शहर के जीवन का आनंद ले रही थी सुनील ने अपने दो दोस्तों को ऋषिकेश में शिवानंद आश्रम जाने के लिए राजी किया. यह यात्रा उनके लिए एक निर्णायक क्षण थी; लेकिन सुनील को आश्रम में स्थायी रूप से शामिल होने में उसके बाद भी 22 साल और लग गए.
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