एशिया के सर्वश्रेष्ठ टाइगर रिजर्व में से एक कान्हा के मुख्य आकर्षण हैं बाघ। बाघों को पर्याप्त मात्रा में स्वस्थ शाकाहारी जानवर उपलब्ध होते रहे इसके लिए कान्हा कोर जोन के 8 प्रतिशत भाग को घास मैदान के रूप में विकसित किया गया है। घास मैदान विस्थापित वन ग्रामों में हैं।
राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन कुशल वैज्ञानिक प्रबंधन द्वारा घास मैदान विकसित करता है। चराई के बहुत दबाव के कारण किसी विशेष घास मैदान के बिगड़ने पर उसे चेनलिंक फेंसिंग से घेरकर चराई रोक दी जाती है और नए तैयार मैदान की फेंसिंग हटा दी जाती है। दो-तीन वर्षा ऋतु के बाद ऐसे क्षेत्र में फिर अच्छी घास उगने लगती है। अगर मैदान अधिक बिगड़ जाता है तो पहले हल द्वारा जुताई कर अच्छी गुणवत्ता की घास लगायी जाती है। संरक्षित क्षेत्र में उगी खरपतवार को प्रबंधन द्वारा सितम्बर माह में जड़ से उखाड़कर अलग कर दिया जाता है।
बरसात के दौरान अक्सर राष्ट्रीय उद्यान में साजा, तेन्दू, लेड़िया, पलाश आदि वृक्ष प्रजातियों के पौधे उगने लगते हैं। इन्हें बरसात खत्म होने के पहले उखाड़ा जाता है ताकि ये घास मैदान को जंगल में न परिवर्तित कर दें। इस तरह शाकाहारी वन्य-प्राणियों का चारा और आवास-स्थल दोनों ही बचे रहते हैं।
कान्हा में संकटग्रस्त प्रजाति बारासिंगा के लिए विशेष रूप से ऊँची घास उगाई जाती है। मादा बारासिंगा सुरक्षा की दृष्टि से अपने बच्चे ऊँची घास में ही देती है।
गर्मी के मौसम में वन्य-प्राणी संरक्षित क्षेत्र को बचाने के लिए फरवरी के पहले ज्यादा से ज्यादा अग्नि रेखाओं (फायर लाइन) जैसे वन मार्ग, पगडंडी, प्रकोष्ठ, परिसर, परिक्षेत्र सीमाएँ आदि की घास कटाई एवं जलाई का काम पूरा कर लिया जाता है। अग्नि रेखाएँ आग लगने की स्थिति में आग को अधिक फैलने से रोकती हैं। फायर सीजन के दौरान विशेष वाच टावर भी बनाए जाते हैं ताकि आग पर तत्काल काबू पाया जा सके।