शंका- वैदिक संध्या प्रातः: और सांय दो बार करने का प्रावधान बताया गया हैं। जबकि नमाज़ एक दिन में पाँच बार करने का प्रावधान बताया गया है। इससे तो यह सिद्ध होता है कि नमाज़ वैदिक संध्या से उत्तम हैं क्योंकि पाँच बार करने से उसका प्रभाव अधिक रहेगा।
समाधान-
1. दो बार वैदिक संध्या करने का प्रावधान इसलिए रखा गया है क्योंकि प्रातः: करी गई संध्या से प्रातः: से सांय तक परमेश्वर का स्मरण करते हुए उत्तम आचरण करने की प्रेरणा मिलती हैं और सांय करी गई संध्या से सांय से प्रातः: तक परमेश्वर का स्मरण करते हुए उत्तम आचरण करने की प्रेरणा मिलती हैं।
2. वैदिक संध्या पूर्णतः वैज्ञानिक और प्राचीन काल से चली आ रही हैं। यह ऋषि-मुनियों के अनुभव पर आधारित हैं जबकि नमाज तो केवल पिछले 1400 वर्षों में एक मत से सम्बंधित कल्पित पद्यति हैं। इस्लाम की स्थापना से पूर्व लोग ईश्वर उपासना किस प्रकार करते थे इस पर इस्लाम मौन हैं।
3 . नमाज़ का इतिहास पढ़े तो अल्लाह ने आदम को एक दिन में हज़ारों बार नमाज़ पढ़ने को कहा। मुहम्मद साहिब ने उनसे सिफारिश करके उसे एक दिन में पाँच बार सीमित करने निवेदन किया। अब यह प्रसंग कल्पित सिद्ध होता है। क्या इस्लाम का ईश्वर इतना अपरिपक्व और अज्ञानी हैं कि वह यह भी नहीं जानता कि एक दिन में हज़ारों बार नमाज़ पढ़ना मनुष्य के लिए संभव नहीं हैं? फिर मुहम्मद साहिब के माध्यम से सुलहनामा कराना यह सिद्ध करता हैं यह मुहम्मद साहिब का महिमा मंडन (Marketing Agenda) करने की सोची समझी रणनीति हैं। निष्पक्ष लोग इसे नबी को अल्लाह से अधिक महत्व देना कहेंगे।
4. वैदिक संध्या की विधि से उसके प्रयोजन पर प्रकाश पड़ता है। मनुष्य में शरीर, इन्द्रिय, मन, बुद्धि, चित और अहंकार स्थित हैं। वैदिक संध्या में आचमन मंत्र से शरीर, इन्द्रिय स्पर्श और मार्जन मंत्र से इन्द्रियाँ, प्राणायाम मंत्र से मन, अघमर्षण मंत्र से बुद्धि, मनसा-परिक्रमा मंत्र से चित और उपस्थान मंत्र से अहंकार को सुस्थिति संपादन किया जाता है। फिर गायत्री मंत्र द्वारा ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना और उपासना की जाती हैं। अंत में ईश्वर को नमस्कार किया जाता हैं।
यह पूर्णतः वैज्ञानिक विधि हैं जिससे व्यक्ति धार्मिक और सदाचारी बनता हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को सिद्ध करता हैं।
नमाज अरबी भाषा में होने के कारण विश्व के 99.9% मुसलमानों को समझ ही नहीं आती। दूसरा वह कल्पित हैं इसलिए उसके प्रयोजन और उद्देश्य का ज्ञान होना उनके लिए असंभव हैं। मुल्ला मौलवियों को भी उसका अर्थ और प्रयोजन नहीं मालूम। सम्भवत इसीलिए इस्लाम में क़ुरान की मान्यताओं पर प्रश्न करने पर मनाही है। ऐसे में स्वतंत्र चिंतन के स्थान पर भेड़चाल अधिक दिखती है। तीसरा इस्लाम में जीवन का उद्देश्य मोक्ष के स्थान पर भोग है। जन्नत, हूरें, मीठे पानी के चश्मे, शराब की नहरें, गिलमान। क्या इन्हें आप जीवन का उद्देश्य मानते हैं? यह किसी रेगिस्तान में रहने वाले निर्धन चरवाहे का सुनहरी ख़्वाब लगता हैं। वैज्ञानिक वैदिक संध्या के समक्ष नमाज़ केवल प्रयोजन रहित भेड़चाल सिद्ध होती हैं।
5. वैदिक ईश्वर की स्तुति करने का उद्देश्य ईश्वर के समान न्यायकारी, दयालु, सत्यवादी, श्रेष्ठ कर्म करने वाला बनना हैं। इस्लाम का ईश्वर अशक्त प्रतीत होता है। उसे अपना ज्ञान बार बार बदलना पड़ता हैं। कभी तौरेत, कभी जबूर, कभी इंजील और अंत में क़ुरान दिया। इस्लाम के ईश्वर को अपना पैगाम देने के लिए 4 लाख फरिश्ते चाहिए। वैदिक ईश्वर को कोई मध्यस्थ नहीं चाहिए। इस्लाम का ईश्वर चौथे आसमान पर विराजमान है। उनसे मिलने के लिए लड़की के सर और पंख वाला उड़ने वाला बराक गधा चाहिए। जो केवल मुहम्मद साहिब को नसीब था। इसलिए मुसलमानों को जीवन भर नबी से अधिक रसूल की खुशामद करनी पड़ती हैं। वैदिक ईश्वर हमारे हृदय में आत्मा में स्थित है। इसलिए स्वयं में पूर्णतः: सक्षम और सर्वशक्तिमान है। किसी पर निर्भर नहीं हैं। इस्लाम का ईश्वर मुहम्मद साहिब से सिफारिश स्वीकार करता है। वैदिक ईश्वर किसी भी मनुष्य के कर्मों के अनुसार फल देता हैं। कोई पक्षपात नहीं। इसलिए नमाज़ खुद से अधिक रसूल की खुशामद सिद्ध होती हैं। नमाज में एक अशक्त अल्लाह की इबादत है जबकि वैदिक संध्या में सर्वशक्तिमान ईश्वर की उपासना हैं।
उपरोक्त कारणों से वैदिक संध्या केवल और केवल ईश्वर की आराधना होने के कारण नमाज से श्रेष्ठ सिद्ध होती हैं।