नई दिल्ली। वह शाम कुछ अलग एवम् खुशनुमा थी। बरसात की सौगात और महफिल सजी थी। हुई थी शमा रोशन सांस्कृतिक साहित्य पृष्ठभूमि साझा करते दो पड़ोसी मुल्कों ‘भारत-पाक’ के दोस्ताना सम्बंधों की। शायर थे, शायरी थी, शायराना माहौल था, खचाखच भरा माॅडर्न स्कूल बाराखम्भा रोड का सभागार था और पर्द उठ चुका था शंकर शाद मुशायरा का।
अपनी ही तरह के प्रसिद्ध व उल्लेखनीय कार्यक्रमों में से एक डी.सी.एम. शंकर-शाद मुशायरा ने दिलों को जोड़ने के साथ-साथ साझा विरासत की जीवंत निशानी प्रस्तुत करते हुए दोनों मुल्कों के रिश्ते को संजोय रखने में एक बड़ा व महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अपने 51 वें संस्करण में, शंकर-शाद मुशायरा विश्व भर में उर्दू का सबसे बड़ा और सबसे लोकप्रिय मुशायरा रहा है और उर्दू शायारी प्रेमियों के बीच इसने अपनी अलग पहचान कायम की है। डी.सी.एम. श्रीराम इंडस्ट्रीज़ लि. की पहल शंकर-शाद मुशायरा डीसीएम की विरासत सर शंकरलाल शंकर और लाला मुरलीधर शाद की स्मृति में आयोजित किया जाता है, जो कि सामाजिक, शैक्षिक व नई दिल्ली की सांस्कृतिक धरोहर में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। दिल्ली के रत्न एवम् डी.सी.एम. के संस्थापक लाला मुरलीधर शाद एवम् श्री शंकरलाल द्वारा रचित इस पहल का बिगुल वर्ष 1953 में गुंजायमान हुआ था और अपनी तरह के इस उत्सव ने लगातार एक परम्परा को आगे बढ़ाया है।
शनिवार की शाम आयोजित किये गये इस मुशायरे में भारत, पाकिस्तान एवम् अमेरिका से आये शायरों ने शिरकत की और एक के बाद एक अपने प्रस्तुतिकरण से उपस्थित मेहमानों व अन्य को गद्गद् किया। तालियों की गड़गड़ाहट और वंस मोर की फरमाइश के बीच शायर शमा की रोशनी बढ़ाते नज़र आये।
51वें शंकर-शाद मुशायरे में पीरज़दा कासिम (कराची), किश्वर नाहीद (इस्लामाबाद), अज़ीज़ नबील (दोहा कटार), डाॅ. अब्दुल्ला (यू.एस.), और फरहत शहजाद (न्यू जर्सी, यू.एस) जैसे प्रख्यात कवियों के साथ भारतीय शायरों में; जावेद अख्तर (मुम्बई), अनवर जलालपुरी (लखनऊ), प्रो. वसीम बरेल्वी (बरेली), डाॅ. पाॅपुलर मेरठी (मेरठ), इकबाल अशर (दिल्ली), डाॅ. गौहर रज़ा (दिल्ली), इफ्फत ज़रीन (दिल्ली), नवाज़ देवबंधी (देवबंध), कुंवर रंजीत चैहन (दिल्ली), डाॅ. मलिकजदा मंजूर अहमद (लखनऊ) एवम् बेकल उत्साही (बलरामपुर) जैसे दिग्गजों ने कार्यक्रम को शोभायमान किया।
मौके पर फरहत शहजाद ने कहा यह एक सिलसिला है, बहुत अच्छी बात है कि इस तरह के आयोजन दोस्ती व प्रेम-भावना जागृत करने का प्रयास करते आ रहे हैं। इस प्रयास में हम दिलो-जान से इनके साथ हैं। बहुत प्राईड की बात है मेरे लिये, इसकी बहुत खुशी है मुझे।
वहीं अब्दुल्ला साहिब ने बताया कि मैं अमेरिका में रहता हूं। जब मैं भारत में पढ़ता था तब से यह डी.सी.एम. मुशायरा के नाम से जाना जाता था, एक इंस्पिरेशन था और इस मुशायरा का रूबाब इतना है कि आप पूर्ण शायर के रूप में जाने जाते हैं जब शंकर-शाद मुशायरा का मंच आपके पास होता है। मैं भी अमेरिका में मुशायरे से जुड़ा हूं और 1975 में सबसे पहला मुशायरा किया था। यह काफी अच्छा एक्सचेंज प्रोग्राम है और समय के साथ इसका रूतबा और भी बढ़ेगा।
अनवर जलालपुरी साहब ने बताया कि मैं पिछले 35 वर्षों से बतौर शायर 5 बार इस मुशायरा में आ चुका हूं, लेकिन मेरे उस्ताद डाॅ. मजिलजदा मंजूर अहमद साहब इसकी निजामत एक अर्से से कर रहे थे, लेकिन उनके स्वास्थ्य के चलते पांच वर्ष से मैं इसके संचालन की जिम्मेदारी भी संभाल रहा हूं, जो कि मेरे लिये गर्व और गौरव की बात है। इस मुशायरा का स्तर बहुत ऊँचा है और जिस तरह से इन्होंने परम्पराओं को बनाये रखा है वह ऐतिहासिक है। सबसे बड़ी बात यह है कि इनका खानदान मुशायरा की सरपरस्ती कर रहा है। इनका एक ऐसा खानदान है जो पिछले 60-65 वर्षों उर्दू जुबान, उर्दू अदब और उर्दू की गंगा-जमुनी जहजीब का संरक्षण कर रहा है। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान की दोस्ती का मुशायरा है और हमेशा से एक परम्परा को कायम रखा है जो अपने आप में बड़ी बात है।
किश्वर नाहीद साहिबा बताती हैं शंकर शाद मुशायरा की एक रिवायत है, यह रिवायत पार्टिशन से पहले की है, फैसलाबाद में शंकरशाद मुशायरा हुआ करता था जहां भारत-पाकिस्तान के शायर सम्मिलित होते थे। यह रिवायत 1965 तक कायम रही, लेकिन जंग के बाद यह जारी नहीं रही। उस समय हर शायर को कपड़े का थान भी दिया जाता था। शंकर शाद की रिवायत जारी रही, एक ऐसी रिवायत जहां शेर पढ़ने और सुनने की रिवायत शंकर-शाद से वापस आयी।
जावेद अख्तर साहब कहते हैं शंकर शाद मुशायरे के विषय में स्कूल काॅलेज के दिनों से सुना है। खूबी यह है कि यह आयोजन फायदे के लिए नहीं वरन् अदब की खिदमद व शायरी को जिंदा रखना के लिए है। आम तौर पर मैं मुशायरा में नहीं जाता, लेकिन शंकर-शाद मुशायरा से जुड़ना मेरे लिए इज्जत की बात है। यहां हमेशा से अच्छे शायर सम्मिलत हुए हैं और अच्छी शायरी सुनने को मिलती है जो सुकून प्रदान करता है। अपनी फैमिली ट्रेडिशन को आगे लेकर चल रहे इस परिवार का योगदान सराहनीय है।
प्रो. डाॅ. पीरज़दा कासिम ने कहा कि इस कार्यक्रम के माध्यम से हमें हिन्दुस्तान में एक अदब पूर्ण, शायरी अथवा मुशायरे से जुड़ने का मौका मिलता है। उर्दू अदब व रोशनी लाने में डीसीएम मुशायरे का योगदान है और एक परम्परा को आगे लेकर चले इस परिवार ने ऐतिहासिक भूमिका अदा की है। वह कहते हैं कि आज के समय में कोशिश करनी चाहिए कि प्रोफेशनिलिज़्म के पीछे भागते लोगों में संस्कृति पीछे छूट रही है। हमें चाहिए कि वर्सेटाइल बनाया जाये युवा पीढ़ी को। मेरी उम्र के लोगों के लिए मौका मिला, हमने वह समय देखा है जब एक से बढ़कर एक दिग्गज मौजूद थे और यह मौका हर किसी को नहीं मिलता। ऐसे में यह मुशायरा एक अहम् भूमिका निभा रहा है।
शायरी की बात व जावेद अख्तर का साथ हो, ऐसे में जावेद साहब की नज़्म न हो तो पाठकों के लिए यह ना इंसाफी प्रतीत होगी। आईये नज़र डालते हैं उनकी नज़्म यहये खेल क्या है… पर! मेरे मुखालिफ ने चाल चल दी है, और अब मेरी चाल के इंतजार में है! मगर मैं कबसे सफेद खानो सिया खानो में रखे कोले सफेद मोहरों को देखता हूं, मैं सोचता हूं यह मोहरे क्या हैं! अगर मैं समझू कि ये जो मोहरे सिर्फ लकड़ी के हैं खिलौने, तो जीतना जीतना क्या है हारना क्या…
अपने वार्षिक पर्व के विषय में श्री माधव बी श्रीराम (अध्यक्ष, शंकर लाल-मुरली धर मेमोरियल सोसायटी और निदेशक, डीसीएम श्रीराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड) ने कहा इस कार्यक्रम के साथ परम्परायें जुड़ी हैं, ऐसे में अपेक्षायें बहुत होती है, जिन पर खरा उतरना एक चुनौति है। दर्शकों की प्रतिक्रया शानदार है। बेमौसम बरसात के बावजूद खचाखच भरा सभागार उनके उत्साह एवम् मुशायरे के प्रति उनका प्यार व आकर्षण दर्शाता है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति पर उर्दू भाषा का खासा प्रभुत्व रहा है और इसे संरक्षित करने की आवश्कता है जिससे इस भाषा ही नहीं एक सशक्त संस्कृति को विलुप्त होने से बचाया जा सके। हमें खुशी है कि एक परम्परा को जीवित रखने के प्रयास में हम भी योगदान दे पा रहे है ‘शंकर-शाद मुशायरा’ के माध्यम से।’
मौके पर शंकर लाल मुरलीधर मैमोरियल सोसायटी की बोर्ड आॅफ गवर्नर डाॅ. रक्षंदा जलील ने कार्यक्रम की सफलता व इस दौरान प्रस्तुत किये गये नगमों के विषय में कहा, खूबसूरत मौसम में ऐसे नगमों, नज़्मों व शायरी को सुनना अच्छा अनुभव है। विशेष रूप से दोनों देशों से दिग्गजों का एक मंच साझा करना दोस्ती की अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है। हमारा प्रयास इस विरासत को सशक्त रूप में आगे बढ़ा रहा है और हमें उम्मीद है कि इस दोस्ती, सद्भाव और शांति व प्यार का संदेश देते शंकर-शाद मुशायरा की शमा यूं ही रोशनी फैलाती रहेगी।
अधिक जानकारी हेतु सम्पर्क सूत्रः शैलेश नेवटिया – 9716549754, भूपेश गुप्ता – 9871962243