Saturday, November 23, 2024
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शरद जोशी की स्मृति में ‘अंधो का हाथी’ ने खूब गुदगुदाया

चित्रनगरी संवाद मंच मुम्बई के साप्ताहिक आयोजन में रविवार 3 सितंबर को 2023 को शरद जोशी लिखित नाटक ‘अंधों का हाथी’ का मंचन शानदार रहा। शरद जोशी स्मृति दिवस के अवसर पर इस नाट्य प्रस्तुति को बेहद पसंद किया गया। इस नाटक में व्यंग्य की ऐसी धार है जो श्रोताओं को कभी विचलित कर देती है और कभी वे सरकारी तंत्र के निकम्मेपन और राजनीति की असंवेदनशीलता पर तालियां भी बजाते हैं।
सूत्रधार समस्या के रूप में हाथी को सामने लाता है ताकि पांच अंधे समस्या को समझें और उससे मुक्ति दिलाएं। मगर ये अंधे अपने अंधत्व में पहले तो निकम्मे, आलसी, भ्रष्ट सरकारी तंत्र में और बाद में षड्यंत्रकारी राजनेता में तब्दील हो जाते हैं। सूत्रधार राष्ट्र का एक सजग नागरिक है। इसलिए अंधे समस्या को सुलझाने के बजाय उसकी हत्या कर देते हैं और उसे श्रद्धांजलि देते हैं। अंत में सूत्रधार कहता है- “मैं मरा नहीं हूं। कैसे मरूंगा सूत्रधार जो हूं। मैं बार-बार हाथी को स्टेज पर लाऊंगा। अनंत बार जन्म लूंगा।”
प्रज्ञा गान्ला के निर्देशन में ‘अंधों का हाथी’ की प्रस्तुति बहुत असरदार रही। सभी कलाकारों ने सशक्त अभिनय किया। उनका आपसी तालमेल सराहनीय था। चुटीले संवादों पर दर्शकों ने कई बार तालियां बजाईं। कुल मिलाकर शरद जोशी की स्मृति में रचनात्मकता की यह एक यादगार शाम थी। कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ मधुबाला ने आयोजन की प्रस्तावना पेश की।
दिल्ली से पधारे व्यंग्य यात्रा के संपादक प्रेम जनमेजय ने बड़ी आत्मीयता से शरद जोशी के व्यक्तित्व और कृतित्व को याद किया। शरद जोशी के व्यंग्य की विशेषताओं को उजागर करने के साथ ही प्रेम जी ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया कि कैसे शरद जोशी रिश्तों नातो को अहमियत देते थे। प्रेम जी ने शरद जोशी की रचनात्मकता पर केंद्रित किताब ‘व्यंग्य के नावक : शरद जोशी’ का परिचय भी श्रोताओं को दिया। व्यंग्यकार सुभाष काबरा का व्यंग्य लेख “आप जाने के बाद ज़्यादा काम आ रहे हो शरद जी” काफ़ी दिलचस्प था।

कार्यक्रम के संचालक देवमणि पांडेय ने शरद जोशी से जुड़े कुछ रोचक प्रसंग साझा किए। उन्होंने बताया कि मुम्बई के परिवार काव्य उत्सव में शरद जोशी हर साल आते थे और हर बार दो नई व्यंग्य रचनाएं सुनते थे। कार्यक्रम में पर्यावरण प्रेमी अफ़ज़ल खत्री और नुसरत खत्री के साथ रचनाकार जगत से कई रचनाकार पत्रकार मौजूद थे।

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