पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में विशेष व्याख्यान का आयोजन
भोपाल। दादा माखनलाल चतुर्वेदी के साथ ‘एक भारतीय आत्मा’ का संबोधन जुड़ा है। लेकिन, जब हम आज के मीडिया को देखते हैं, तब प्रश्न उठता है कि उसमें कहीं भी ‘भारतीय आत्मा’ मौजूद है क्या? क्या आज की पत्रकारिता में ‘भारत’ दिखाई देता है? दरअसल, हमने अपनी बुनियाद की ओर देखना ही बंद कर दिया है। इसलिए आज के मीडिया में ‘भारत’ कहीं लुप्त हो गया है। यह विचार वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने व्यक्त किए। वह स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नायक और पत्रकार पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती के अवसर पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से आयोजित विशेष व्याख्यान कार्यक्रम में उपस्थित थे।
वरिष्ठ पत्रकार श्री उपाध्याय ने कहा कि पिछले दिनों देश के पाँच राज्यों में चुनाव सम्पन्न हुए। लेकिन, मीडिया कवरेज से ऐसा लगता है कि सिर्फ उत्तरप्रदेश में ही चुनाव हुए हैं। मीडिया में सभी राज्यों को उचित कवरेज क्यों नहीं दिया जा रहा? आखिर क्या कारण है कि उत्तरप्रदेश को अतिरेक प्रचार मिल रहा है? मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा के लोग जब राष्ट्रीय मीडिया के कवरेज को देख रहे होंगे, तब वे क्या सोच रहे होंगे? क्या उनके मन में यह विचार नहीं आ रहा होगा कि सिर्फ उत्तरप्रदेश भारत का हिस्सा है, उनका राज्य भारत में नहीं है। मीडिया में भारत दिख नहीं रहा है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि आज से लगभग सौ साल पहले भी कसाईखाना मुद्दा था और आज भी है। तब एक पत्रकार (पं. माखनलाल चतुर्वेदी) संकल्प लेता है और अंग्रेज सरकार को झुका देता है। कसाईखाना खुलने नहीं देता। लेकिन, आज अवैध बूचडख़ानों पर बड़े-बड़े मीडिया संस्थानों का कवरेज किस प्रकार का है, यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
संस्कृति की बात करना दकियानूसी कैसे : श्री उपाध्याय ने कहा कि आज यह समस्या हो गई है कि जब हम अपनी संस्कृति-सभ्यता, परंपरा-थाती की बात करते हैं तो दकियानूसी करार दे दिए जाते हैं। शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहाँ अपनी संस्कृति के बारे में बात करने पर इस प्रकार का व्यवहार किया जाता हो।
आपस में लड़ा रहा है मीडिया: श्री उपाध्याय ने कहा कि आज का मीडिया लोगों को जोडऩे की जगह उन्हें एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास करता हुआ दिखाई देता है। यह जरूरी नहीं कि हम एक-दूसरे के विचारों से सहमत हों, लेकिन एक-दूसरे को अपने विचार प्रकट करने का अवसर तो देना ही चाहिए। आज मीडिया पूर्वाग्रह से ग्रसित दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि जो विषय हमें और राजनीति को अच्छे लगते हैं, हम उन्हीं मुद्दों को उठा रहे हैं। इसमें समाज कहीं भी नहीं हैं। मीडिया और समाज में जुड़ाव कहीं दिखाई नहीं दे रहा है। इसलिए आज मीडिया के सामने विश्वसनीयता का सबसे बड़ा संकट खड़ा हो गया है, जो पहले नहीं था। समाज जो देख रहा है, उसी हिसाब से मूल्यांकन करके वह मीडिया की आलोचना कर रहा है।
दादा के पत्रकारीय पक्ष पर शोध की आवश्यकता : विश्वविद्यालय के कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने कहा कि दादा माखनलाल चतुर्वेदी का व्यक्तित्व बहुआयामी है। उनके सभी आयामों पर शोधकार्य हुआ है, लेकिन पत्रकारीय पक्ष पर अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी ने यात्रा के दौरान सागर के समीप रतौना में वृहद कसाईखाना खुलने का विज्ञापन पढ़ा। उस विज्ञापन को पढ़ते ही वह अपनी यात्रा रद्द कर वापस आए और कर्मवीर के माध्यम से कसाईखाने के विरुद्ध आंदोलन का आह्वान किया। उनके विचारोत्तेजक लेखनी के कारण समाज की ओर से बड़ा आंदोलन प्रारंभ हो गया, जिसका परिणाम यह निकला कि अंग्रेस सरकार को मध्यभारत में पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा। अंग्रेस सरकार को कसाईखाना खोलने का निर्णय वापस लेना पड़ा। श्री आहूजा ने बताया, माखनलाल चतुर्वेदी मानते थे कि पत्रकारिता एक कला है, लेकिन जब इसमें मुनाफे की बात आ जाएगी और धनाढ्य लोग आ जाएंगे, तब यह व्यवसाय बन जाएगी। इससे पूर्व कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने माखनलाल चतुर्वेदी की कविता की संगीतमय प्रस्तुति दी।
(डॉ. पवित्र श्रीवास्तव)
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