मार्च 2020 के बाद कोरोना महामारी के प्रथम दौर के दौरान पूरे देश में लगाए गए लॉकडाउन के कारण भारत में आर्थिक गतिविधियां, कृषि क्षेत्र को छोड़कर, लगभग ठप्प सी पड़ गई थीं। इसके कारण अप्रेल-जून 2020 में आर्थिक विकास दर ऋणात्मक 25 प्रतिशत रही थी। देश की 60 प्रतिशत से अधिक अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर स्पष्टतः दिखाई दिया था। जुलाई-सितम्बर 2020 तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में कुछ संकुचन दिखाई दिया था। परंतु इस नकारात्मक वृद्धि दर को तृतीय तिमाही (अक्टोबर-दिसम्बर 2020) एवं चतुर्थ तिमाही (जनवरी-मार्च 2021) में ही सकारात्मक वृद्धि दर में परिवर्तित कर लिया गया था और जैसे ही आभास होने लगा था कि वित्तीय वर्ष 2021-22 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2021) में अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर बहुत तेज गति से आगे बढ़ेगी तो कोरोना महामारी का दूसरा दौर प्रारम्भ हो गया जिससे मई एवं जून 2021 माह में वृद्धि दर में कुछ कमी दृष्टिगोचर हुई।
परंतु, यह हर्ष का विषय है कि उक्त विपरीत परिस्थितियों के बीच, केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लिए गए कई निर्णयों के चलते अर्थव्यवस्था पर कोरोना महामारी के द्वितीय दौर के प्रभाव को काफी कम करते हुए अप्रेल-जून 2021 तिमाही में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 20.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है। यह वृद्धि दर पूरे विश्व के बड़े देशों में, ब्रिटेन की 22 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर को छोड़कर, सबसे अधिक है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान कोरोना महामारी का सबसे अधिक विपरीत असर उद्योग एवं सेवा क्षेत्रों पर पड़ा था और भारत में रोजगार के अधिकतम अवसर इन्हीं दोनों क्षेत्रों में पैदा होते हैं। इस प्रकार देश में बेरोजगारी की दर भी इस दौरान बहुत अधिक हो गई थी। परंतु केवल कृषि क्षेत्र पर ही कोरोना महामारी का कोई असर नहीं हुआ था एवं यह क्षेत्र वित्तीय वर्ष 2020-21 की चारों तिमाहियों में अपनी विकास दर को बनाए रखने में सफल रहा था। इसी क्रम को जारी रखते हुए वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम तिमाही में कृषि क्षेत्र ने 4.5 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है जो कि वित्तीय वर्ष 2020-21 की प्रथम तिमाही (अप्रेल-जून 2020) में 3.5 प्रतिशत रही थी एवं वित्तीय वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च 2021) में 3.1 प्रतिशत रही थी।
उद्योग क्षेत्र ने तो कमाल ही कर दिया है एवं इस क्षेत्र ने अप्रेल-जून 2021 तिमाही के दौरान 46.6 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल की है। विनिर्माण क्षेत्र ने 49.6 प्रतिशत एवं निर्माण क्षेत्र ने 68.3 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की है। इसी प्रकार सेवा क्षेत्र ने भी 11.4 प्रतिशत की विकास दर हासिल की है। सेवा क्षेत्र में वित्त, बीमा, ढांचागत निर्माण, बस सेवाओं आदि में अच्छी वृद्धि दर दृष्टिगोचर हुई है। परंतु होटल, परिवहन, व्यापार आदि क्षेत्र अभी भी कोरोना महामारी की मार से पूरे तौर पर उबर नहीं पाए हैं।
सबसे अच्छी खबर तो राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण के मोर्चे पर आई है। वित्तीय वर्ष 2021-22 के प्रथम चार माह, अप्रेल-जुलाई 2021, की अवधि के दौरान राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2021-22 के कुल बजटीय अनुमान (15.07 लाख करोड़ रुपए) का केवल 21 प्रतिशत (3.21 लाख करोड़ रुपए) ही रहा है, जो पिछले 11 वर्षों के दौरान की इसी अवधि में सबसे कम है। इसका आश्य यह है कि केंद्र सरकार द्वारा खर्चों पर नियंत्रण रखकर कर उगाही एवं अन्य स्त्रोतों से आय की उगाही पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है जिसका परिणाम भी राजकोषीय घाटे में कमी के रूप में दिखाई दे रहा है। पिछले वित्तीय वर्ष 2020-21 के अप्रेल-जुलाई 2020 के दौरान राजकोषीय घाटा पूरे वित्तीय वर्ष के बजटीय अनुमान का 103.1 प्रतिशत था। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की वसूली में तो लगातार वृद्धि देखने में आ रही है एवं यह अब प्रति माह एक लाख करोड़ रुपए से अधिक के स्तर पर पहुंच गई है। अप्रेल 2021 माह में तो वस्तु एवं सेवा कर की वसूली, पिछले सारे रिकार्ड तोड़ते हुए, 1.41 लाख करोड़ रुपए की रही थी। इस प्रकार तो वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान राजकोषीय घाटे के सकल घरेलू उत्पाद के 6.8 प्रतिशत के बजटीय अनुमान को अवश्य ही प्राप्त कर लिया जाएगा। यह राजकोषीय घाटा वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान सकल घरेलू उत्पाद के 9.3 प्रतिशत से भी अधिक रहा था।
देश में आर्थिक गतिविधियां, कोरोना महामारी के पूर्व के स्तर को तेजी से प्राप्त कर रही हैं। माह अगस्त 2021 के दौरान विद्युत उपभोग में 18.6 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है और यह 12,951 करोड़ यूनिट के स्तर पर पहुंच गया है। इसी प्रकार, यूपीआई प्लेट्फार्म पर वित्तीय लेनदेन के रुपए 6.39 लाख करोड़ रुपए के 355 करोड़ व्यवहार दर्ज किये गये हैं जो अपने आप में अभी तक का एक उच्चतम रिकार्ड है। उक्त आंकड़े देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी से हो रहे सुधार को दर्शाते हैं।
देश में विभिन्न कम्पनियों की उत्पादकता में भी सुधार दिखाई दे रहा है। 3700 कम्पनियों के वित्तीय परिणामों की विवेचना करने पर ज्ञात हुआ है कि जिन कम्पनियों के वित्तीय व्यवहार 50 करोड़ रुपए तक के थे, इन कम्पनियों ने अप्रेल-जुलाई 2021 की तिमाही के दौरान अपने खर्चों (कर्मचारी लागत सहित) में 5 प्रतिशत तक की कमी दर्ज की है। जिसके परिणामस्वरूप इन कम्पनियों की लाभप्रदता में वृद्धि दर्ज हो रही है।
इस दौरान विदेशी व्यापार के क्षेत्र से भी अच्छी खबर आई है। भारत से अप्रेल-अगस्त 2021 को समाप्त अवधि के दौरान निर्यात 66.92 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 16,367 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गए हैं। पिछले वित्तीय वर्ष की इसी अवधि के दौरान 9,805 करोड़ अमेरिकी डॉलर के निर्यात किए गए थे। इसी प्रकार, उक्त अवधि के दौरान ही भारत में आयात भी 81.75 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 21,954 करोड़ अमेरिकी डॉलर के रहे है। विदेशी व्यापार में लगातार हो रहे सुधार से भी यह आंकलन किया जा सकता है कि देश में आर्थिक गतिविधियों में तेज छलांग लग रही है।
आगे आने वाले समय में अब न केवल केंद्र सरकार को अपने खर्चों में वृद्धि की ओर ध्यान देना होगा बल्कि निजी निवेश में भी वृद्धि दर्ज करना अब आवश्यक हो गया है, अन्यथा देश के आर्थिक विकास पर ब्रेक लग सकता है। चूंकि अप्रेल-जुलाई 2021 के दौरान केंद्र सरकार के विभिन विभागों में पूंजीगत खर्चों में कुछ कमी आंकी गई है अतः भारत के वित्त मंत्रालय ने पूंजीगत खर्च करने वाले समस्त विभागों के निर्देश जारी किये हैं कि वे अपने पूंजीगत खर्चों में वृद्धि दर्ज करें। इससे देश में न केवल आधारभूत सुविधायें बढ़ाने में मदद मिलेगी बल्कि रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होंगे।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत्त उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
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