भारतीय भाषाओं की चिंताजनक स्थिति, दशा एवं दिशा पर देश भर में गंभीर चिंतन एवं चर्चा के बाद विभिन्न भाषाओं के विद्वानों, बुद्धिजीवियों की ओर से यह सुझाव आया इस क्षेत्र में व्यापक सुधारों को वास्तविक रूप प्रदान करने के समन्वित प्रयास के रूप मे भारतीय भाषा मंच का गठन किया गया।
इसी क्रम में आज़ाद भवन प्रेक्षागृह, नई दिल्ली में १५ राज्यों से आये १७ भाषाओँ के प्रतिनिधियों द्वारा भारतीय भाषा मंच का औपचारिक गठन हुआ।
इस मंच के कुछ प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं—
१.भारतीय भाषाओं की वर्तमान स्थिति तथा उसमें सुधार के उपाय ।
२.भारतीय भाषाओं को संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, अपेक्षित स्थान पर प्रतिष्ठापित कराना तथा रोजगार से जोड़ना ।
३.केंद्र में हिंदी और राज्यों में उनकी राजभाषाओं के प्रयोग को बढ़ाने के लिए अभियान चलाना एवं जन-जागरण करना।
४.भारतीय भाषाओं के लिए काम करने वाले सभी व्यक्तियों, भाषा-प्रेमियों और संस्थाओं को एक मंच पर लाना तथा उनके मध्य सौहार्द एवं समन्यव स्थापित करना ।
५.केंद्र और राज्यों की राजभाषा नीति और नियमों के अनुसार सरकारी काम-काज में हिंदी और प्रादेशिक भाषाओं का प्रयोग किये जाने के लिए सरकारों से आग्रह करना व आवश्यकता पड़ने पर दबाब बनाना, राजभाषा अधिनियमों और नियमों को कड़ाई से लागू कराना ।
6.प्राथमिक, माध्यमिक, उच्चशिक्षा में चिकित्सा और तकनीकी सहित सभी स्तरों पर शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाएँ हों, —इस दिशा में प्रयास करना ।
७.छोटी-बड़ी सभी प्रतियोगी और भर्ती परीक्षाओं का माध्यम हिंदी और भारतीय भाषाओं को बनवाना एवं अंग्रेजी के अनिवार्य प्रश्न पत्र को हटवाना ।
८.विधि, न्याय और प्रशासन, सूचना प्रोद्योगिकी ( ई.गवर्नेंस) डिजिटल इंडिया और ऑनलाइन सेवा आदि उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ाना/बढ़वाना।
९.उच्चतम न्यायालय में हिन्दी और उच्च न्यायालयों में राज्य की राजभाषाओं के प्रयोग की अनुमति दिए जाने हेतु प्रयास करना ।
१०.भारतीय भाषाओं से संबंधित उन सभी बिन्दुओं पर विचार जो भारतीय भाषाओं के सम्वर्धन के लिए आवश्यक हैं।
इस मंच के राष्ट्रीय संयोजक श्री वृषभ जैन ने भारतीय भाषाओं की स्थिति एवं मंच की संकल्पना का परिचय देते हुए कहा कि भारतीय भाषाओं पर काम करने वाली देश में अनेक संस्थाएँ हैं, अब एक और नर्इ संस्था के रूप में एक नए भारतीय भाषा मंच की जरूरत क्यों?…….. इस प्रश्न के उत्तर में यह बात उभरी कि हमारी सभी भारतीय भाषाएँ हमारी पहचान हैं और वह पहचान निरन्तर तिरोहित होती जा रही है। उनका स्थान दोयम से, तीसरे और चौथे पर पहुँचता जा रहा है। यह न भाषाओं के हित में है और न भाषा-प्रयोक्ताओं के। उनका निरन्तर क्षरण हो रहा है, प्रतिदिन हमारे शब्द कम होते जा रहे हैं।
हमारी भारतीय भाषाओं को लेकर कुछ-कुछ आन्दोलन पहले भी हुए, परन्तु वे कुछ-कुछ भाषाओं के संदर्भ में ही हुए तथा भाषाओं के कुछ-कुछ पक्षों को लेकर हुए, पर ऐसा कोर्इ मंच नहीं बना, जो समस्त भारतीय भाषाओं के सभी पक्षों की चिन्ता करता हो। सभी भारतीय भाषाएँ हमारी राष्ट्रीय भाषाएँ हैं, अखण्ड भारत की एक संस्कृति की भाषाएँ हैं। इन सब को समृद्ध करने के लिए सरकारी और सामाजिक दोनो स्तरों पर हमें काम करने की आवश्यकता है। यह मंच उस रूप में आगे बढ़ने के लिए संकल्पित है। यह मंच पूरी तरह स्वायत्त रहेगा और इसमें निरन्तर इस बात पर ध्यान रखा जाएगा कि कोर्इ भी राजनीति प्रवेश न करे।
तत्पश्चात श्री चंद्रभूषण शर्मा : निदेशक राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी संस्थान ने त्रिभाषा सूत्र, विद्यालयी शिक्षा में भाषाओँ के महत्व, संस्कृत की स्थिति एवं उपादेयता आदि विषयों पर विस्तृत प्रकाश डाला; उसके बाद तमिलनाडु से पधारे श्रीमान पेरूमल जी ने भाषाओ के समेकन पर प्रकाश डाला तथा समझाया कि भारतीय भाषाओँ में परस्पर विरोध नहीं, वरन एकत्व का भाव है।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति श्रीमान् कुठियाला जी ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार विदेशों में मातृभाषा पर ही जोर दिए जाने से वे देश उन्नति के मार्ग पर अग्रसर हो पाए, वहीं हमारे देश में अपनी भाषा के प्रति पूर्वाग्रह ने विकास को अवरुद्ध कर दिया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सदस्य सचिव श्रीमती पंकज मित्तल ने बताया कि किस प्रकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भारतीय भाषाओं के विकास के लिए नवीन पहल की है।
वहीं केरल से पधारे श्री विनोद जी ने सभी लोगों से भाषायी आन्दोलन खड़ा करने की अपील की।
इसके बाद कार्यक्रम में पधारे सभी भाषाओं के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने विचार भी रखे और अब भारत के विभिन्न राज्यों में मंच की विभिन्न इकाइयाँ गठित जाएँगी। अंत में भारतीय भाषा मंच के संरक्षक एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अतुल कोठारी जी ने इस बात को समझाया कि देश को बदलना है, तो शिक्षा को बदलना होगा ।और यदि शिक्षा को बदलना है, तो भाषा को बदलना होगा।
उन्होंने कहा कि चर्चा समस्या की नहीं, बल्कि समाधान की होनी चाहिए, जिसकी शुरुआत स्वयं से करनी होगी, प्रयास व्यक्तिगत रूप से होते हुए व्यापक सामाजिक जन-जागरण का होना चाहिए।
अंग्रेजी के मिथक को तोड़ने के लिए वैकल्पिक तैयारी करनी होगी यथा स्वदेशी पुस्तकों का लेखनए कानूनी संघर्ष प्रशासनिक क्षेत्र में निजी व सामूहिक प्रयास स्वदेशी भाषाओँ का प्रोत्साहन आदि।
अंत में अतुल जी ने सभी से यह संकल्प लेने को कहा कि सभी अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते हुए इस आन्दोलन को सार्थक बनायें। लोग कहते हैं कि पुस्तकें नहीं हैं, भाषाओं पर काम करने वाले लोग नहीं हैं, सब ओर अंधकार हैं, आदि आदि, पर मुझे लगता है कि जब हम काम करने लगेंगे, तो भाषाओं के दीप जलने लगेंगे, और तब अन्धकार अपने आप दूर भगेगा और सब ओर प्रकाश दिखने लगेगा।
जय हिन्द
प्रस्तुति
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