दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर-पश्चिमी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डब्ल्यूडीएफसी) और पूर्वी डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर(ईडीएफसी) के वर्ष 2017-18 से प्रारम्भ होकर अगले चार वर्षों में चरण-वार पूरा होने के साथ ही भारतीय रेल के माल ढुलाई परिचालन में आमूल-चूल बदलाव आएगा।
कुल 10548 हैक्टेयर जमीन में 86 प्रतिशत का अधिग्रहण किया जा चुका है और 9 राज्यों तथा 61 जिलों से होकर गुजरने वाली इन परियोजनाओं के लिए ज्यादातर पर्यावरणीय स्वीकृतियां प्राप्त की जा चुकी हैं। चालू वित्त वर्ष (2015-16) के आखिर, या 2016 के मध्य तक 81,459 करोड़ रुपये की लागत वाली परियोजनाओं के लिए अधिकांश संविदाएं प्रदान किए जाने की योजना है।
3360 मार्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में दोनों परिेयोजनाओं के चालू होने से, न सिर्फ रेलवे को माल ढुलाई याफ्रेट परिवहन में अपनी बाजार हिस्सेदारी को पुन: प्राप्त करने में मदद मिलेगी, बल्कि साथ ही यह माल ढुलाई की कारगर, विश्वसनीय, सुरक्षित एवं किफायती व्यवस्था की भी गारंटी होगी। माल ढुलाई से संबंधित इन दो कोरिडोर्स के चालू होने से, परिवहन की इकाई लागत में कटौती होने, छोटे संगठन और प्रबंधन की कम लागत होने और ऊर्जा की कम खपत से रेलवे के परिचालनों में मूलभूत बदलाव आएगा।
रेल मंत्रालय द्वारा वर्ष 2006 में विशेष प्रयोजन संस्था के रूप में गठित किए गए डेडिकेटेड फ्रेट कोरीडोर कॉपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (डीएफसीसीआईएल) द्वारा कार्यान्वित किए जा रहे दोनों डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर्स – पश्चिमी और पूर्वी रेल मार्गों के साथ बने रेलवे के बेहद भीड़भाड़ वाले स्वर्णिम चतुर्भुज को राहत पहुंचाएंगे और कोरिडोर्स के साथ नये औद्योगिक कार्यकलापों तथा मल्टी मॉडल मूर्ल्य वर्धित सेवा केंद्रों को सहायता प्रदान करेंगे।
भारतीय रेल के स्वर्णिम चतुर्भुज में दो विकर्णों (दिल्ली-चेन्नई और मुम्बई-हावड़ा) सहित चारों महानगरों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और हावड़ा (कोलकाता) को जोड़ने वाला रेलवे नेटवर्क शामिल है। इसके कुल मार्ग की लम्बाई 10, 122 किलोमीटर है और यह मालढुलाई से रेलवे को प्राप्त होने वाले राजस्व का 58 प्रतिशत से अधिक हिस्से का वहन करता है।
स्वर्णिम चतुर्भुज पर भीड़भाड़ से रेलवे की दक्षता प्रभावित हो रही है और वह आर्थिक प्रगति के कारण माल ढुलाई के यातायात में हो रही वृद्धि में अपना हिस्सा बरकरार रखने अथवा बढ़ाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है। रेल मंत्री श्री सुरेश प्रभु ने वर्ष 2015-16 के अपने बजट भाषण में कहा था कि इसका मूलभूत कारण रेलवे में ‘’दीर्घकालिक अल्पनिवेश’’ है। इसकी वजह से उपनुकूलित फ्रेट और यात्री यातायात तथा अल्प वित्तीय संसाधनों के साथ भीड़-भाड़ और अतिशय उपयोग में वृद्धि हुई है।
अतिशय भीड़भाड़ वाले स्वर्णिम चतुर्भुज पर स्थितियों को सुगम बनाने के लिए भारत सरकार ने पहले चरण में, दो गलियारों, 1504 मार्ग किलोमीटर वाले डब्ल्यूडीएफसी और 1856 मार्ग किलोमीटर वाले ईडीएफसी का निर्माण करने को मंजूरी दी है। पश्चिम बंगाल के दनकुनी से प्रारम्भ हो रहा ईडीएफसी झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और हरियाणा से होकर गुजरेगा और पंजाब के लुधियाना में समाप्त होगा। उत्तर प्रदेश के दादरी को मुम्बई-जवाहरलाल नेहरू पोर्ट (जेएनपीटी) से जोड़ने वाला डब्ल्यूडीएफसी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र से होकर गुजरेगा। डब्ल्यूडीएफसी दादरी में ईडीएफसी से जुड़ेगा।
डब्ल्यूडीएफसी की स्वीकृत लागत 46,718 करोड़ रुपये और ईडीएफसी की स्वीकृत लागत 26, 674 करोड़ रुपये है। पूंजीगत व्यय की पूरी लागत रेल मंत्रालय द्वारा ऋण एवं इक्विटी के माध्यम से वित्त पोषित है। ऋण की व्यवस्था बहुपक्षीय प्रमुख एजेंसियों से कर्ज लेकर की जाएगी। पिछले एक साल में 17, 590 करोड़ रुपये मूल्य की संविदाओं को अंतिम रूप दिया गया है, जबकि पिछले छह वर्षों में 13,000 करोड़ रुपये मूल्य की संविदाओं को अंतिम रूप दिया गया था।
डब्ल्यूडीएफसी ने प्रथम चरण में रिवाड़ी से इकबालगढ़ तक 625 किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन और दूसरे चरण में वडोदरा से वैतरणा तक 322 किलोमीटर लम्बी रेलवे लाइन के निर्माण के लिए 11,028 करोड़ रुपये मूल्य की लोक कार्य संविदाएं प्रदान की हैं। इसके अलावा, प्रथम चरण में 950 किलोमीटर के लिए 5,486 करोड़ रुपये मूल्य की इलैक्ट्रिकल एवं सिग्नल एवं दूरसंचार संबंधी संविदाएं भी प्रदान की गई हैं। ईडीएफसी ने कानपुर और खुर्जा के बीच 343 किलोमीटर लम्बी डबल ट्रैक लाइन के निर्माण के लिए 3300 करोड़ रुपये मूल्य की संविदा प्रदान की है। कानपुर से खुर्जा तक इलैक्ट्रिकल एवं सिग्नल एवं दूरसंचार संबंधी संविदा भी प्रदान की गई है। एक अन्य संविदा में ईडीएफसी ने मुगलसराय- न्यू भाउपुर (कानपुर) के बीच 402 किलोमीटर डबल ट्रैक लाइन के निर्माण के लिए 5080 करोड़ रुपये मूल्य की संविदा प्रदान की है।
जेएनपीटी से दादरी तक की 1504 किलामीटर लम्बी डबल लाइन ट्रेक वाले पश्चिमी कोरिडोर में विमार्गों को छोड़कर, ज्यादातर मौजूदा लाइन्स के समानांतर ही संरेखन किया है और रेवाड़ी से दादरी तक और सांनंद से वडोदरा तक पूरी तरह नया संरेखन किया है। डब्ल्यूडीएफसी के दादरी, प्रिथाला, रेवाड़ी, अटेली, फुलेरा, बांगुरग्राम, मारवाड़, पालनपुर, चतोदर, मेहसाणा, सांणंद (एन), सांणंद (एस), मकरपुरा, उधना, खरबाओ और जेएनपीटी में भारतीय रेलवे प्रणाली के साथ लिंक्स होंगे।
डब्ल्यूडीएफसी मुख्यत: पेट्रोलियम, तेल और ल्यूब्रीकेंट्स, आयातित खाद एवं कोयला, अनाज, सीमेंट, नमक तथा लोहा और इस्पात के अलावा निर्यात-आयात कंटेनर यातायात को लाभ पहुंचाएगा। 2021-22 में डब्ल्यूडीएफसीपर यातायात 152.24 मिलियन टन होने की संभावना है।
1856 किलोमीटर लम्बाई वाला ईडीएफसी मार्ग लुधियाना-खुर्जा तथा खुर्जा-दादरी के बीच 447 किलोमीटर का इलैक्ट्रिफाइड सिंगल लाइन खंड होगा। भारतीय रेलवे की लिंक प्वाइंट्स में चावापेल, सरहिंद, टुंडला, कानपुर, मुगलसराये, सोन नगर और दनकुनी शामिल हैं। इससे उत्तरी क्षेत्र के बिजली घरों के लिए बिहार, झारखंड और बंगाल की कोयला खानों से कोयला पहुंचाने, परिष्कृत इस्पात, अनाज और सीमेंट की ढुलाई में लाभ होगा।
माल ढुलाई यातायात में रेलवे की घटती हिस्सेदारी का हवाला देते हुए 12वीं योजना (2012-17) में कहा गया है, ‘देश में कुल माल में से 57 प्रतिशत की ढुलाई सड़क मार्ग द्वारा की जाती है, जबकि चीन में 22 प्रतिशत और अमेरिका में 32 प्रतिशत माल की ढुलाई सड़क मार्ग से की जाती है।’ इसके विपरीत भारतीय रेलवे देश के कुल माल ढुलाई यातायात में से मात्र 36 प्रतिशत की ही ढुलाई करता है, जबकि अमेरिका में 48 प्रतिशत और चीन में 47 प्रतिशत ढुलाई रेलवे द्वारा की जाती है।
12वीं परियोजना में यह बताया गया है कि रेलवे में तुरंत निवेश की कितनी आवश्यकता है और कहा गया कि ‘अगर अगले 20 वर्ष में लगातार 7 से 10 प्रतिशत की सालाना वृद्धि हासिल करनी है, तो रेलवे के माल ढुलाई और यात्री ट्रैफिक के लिए रेलवे की क्षमता अभूतपूर्व तरीके से बढ़ाने की अत्यंत जरूरत है, जो स्वाधीनता के बाद से अब तक नहीं हुआ है।’ 10वीं परियोजना में भारतीय रेल को विश्व का सबसे बड़े रेल नेटवर्क बताया गया था, 31 मार्च, 2011 को जिसका कुल 64,460 किलोमीटर लंबा मार्ग था, जिसमें से 21,034 किलोमीटर विद्युतीकृत है। कुल 1,13,994 किलोमीटर लंबी पटरियां है, जिसमें से 1,20,680 किलोमीटर ब्रॉडगेज, 8,561 किलोमीटर मीटरगेज और 2,753 किलोमीटर नैरो गेज है। 12वीं परियोजना के दस्तावेज के अनुसार देश का आकार और किफायत की आवश्यकता को देखते हुए रेलवे नेटवर्क का विस्तार पर्याप्त नहीं है, हालांकि भारतीय रेल ने स्वाधीनता के बाद से 11,864 किलोमीटर नई लाइनें जोड़ी है।
विभिन्न मार्गों की क्षमता परिपूर्ण होने के बारे में बताते हुए रेल मंत्री ने इस वर्ष अपने बजट भाषण में कहा था कि ‘भारतीय रेल को एक ही पटरी पर राजधानी और शताब्दी जैसी तेज एक्सप्रेस रेल, सामान्य धीमी गति की यात्री रेल और मालगाड़ी चलानी पड़ती है। यह आश्चर्य की बात है कि हालांकि राजधानी और शताब्दी 130 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है और औसत रफ्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं होती है। यह भी आश्चर्यजनक है कि सामान्य रेल या एक मालगाड़ी की औसत रफ्तार करीब 25 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक नहीं होती है।’ यह ध्यान देने योग्य है कि दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर से रेलगाड़ी की अधिकतम गति 100 किलोमीटर प्रति घंटा हो सकती है।
इन दो परियोजनाओं की प्रमुख उपलब्धियों में ईडीएफसी-3 परियोजना के लिए बातचीत पूरी होना और पिछले वर्ष 30 जून, को विश्व बैंक द्वारा 650 मिलियन अमरीकी डॉलर का ऋण मंजूर किया जाना शामिल है। पटरी और ओएचई कार्य पूर्ण होने के बाद 30 जून, 2015 को सासाराम-दुर्गावती सैक्शन पर इंजन चलाने का कार्य किया गया। पिछले आठ महीनों में डब्ल्यूडीएफसी के रिवाड़ी-इकबालगढ़ सैक्शन में खुदाई और निर्माण कार्य में तीन गुना प्रगति हुई है।
इसी प्रकार पिछले आठ महीने में ईडीएफसी खुर्जा-कानपुर सैक्शन में खुदाई और निर्माण कार्य में तीन गुना प्रगति हुई है। ईडीएफसी में जून, 2015 के दौरान देश में पहली बार यांत्रिक पटरी बिछाने की मशीन के साथ पटरी को जोड़ने का कार्य शुरू किया गया। भारतीय रेल की पहली जक्शन व्यवस्था इसी वर्ष जून में शुरू की गई। डब्ल्यूडीएफसी के भगेगा में स्लीपर संयंत्र का शुभारंभ किया गया और ईडीएफसी में स्लीपर का उत्पादन 1000 प्रतिदिन से बढ़ाकर 1500 प्रतिदिन किया गया। ठाणे और रायगढ़ जिलों में तटवर्ती और नियामक क्षेत्र मंजूरी प्राप्त हो चुकी है।
भूमि अधिग्रहण के मामले में डीएफसीसीआईएल ने परियोजना से प्रभावित लोगों के लिए बेहतरीन पुनर्वास और पुर्नस्थापन पैकेज लागू किया है। इन दो परियोजनाओं से तीन लाख से अधिक लोग प्रभावित होंगे। रेल संशोधन अधिनियम 2008 के अंतर्गत भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है। सोननगर-डांकुनी सैक्शन को छोड़कर 86 प्रतिशत भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है।
नये भूमि अधिग्रहण अधिनियम के अनुसार 01 जनवरी, 2015 से मुआवजा दिया जा रहा है। भूमि खोने वालों के विरोध के कारण ईडीएफसी के 192 किलोमीटर में 140 स्थानों पर और डब्ल्यूडीएफसी में 183 किलोमीटर के 231 स्थानों पर भूमि अधिग्रहण रूका पड़ा है। इस समस्या के समाधान के लिए राज्य सरकार के प्रमुख सचिव और अन्य अधिकारी स्तरों पर नियमित बैठकें और बातचीत की जा रही है। डीएफसीसीआईएल के लगातार समझाने के बाद भूमि अधिग्रहण से संबद्ध 7,000 से अधिक मध्यस्थता वाले मामले और 1,500 अदालती मामलों में से 3,536 मध्यस्थ्ता मामले और 681 अदालती मामले सुलझा लिये गये हैं।
डीएफसीसीआईएल दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के कार्यान्वयन में निम्न कार्बन मार्ग, विभिन्न तकनीकी विकल्पों को अपनाने पर ध्यान दे रहा है, जिससे अधिक ऊर्जा दक्षता के साथ इन्हें परिचालित किया जा सकेगा। ग्रीन हाऊस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन के 30 वर्ष के अनुमान के अनुसार अगर डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर न होते तो जीएचजी में 582 मिलियन टन कार्बन डाईक्साइड का उत्सर्जन होगा, जबकि दो डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) से 124.5 मिलियन टन कार्बन डाईक्साइड का उत्सर्जन होगा, जो एक चौथाई से भी कम होगा।
रेल मंत्रालय की चार और डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर (डीएफसी) बनाने की योजना है और इनके लिए डीएफसीसीआईएल को प्रारंभिक इंजीनियरिंग और यातायात सर्वेक्षण (पीईटीएस) का काम सौंपा गया है। ये अतिरिक्त कॉरिडोर करीब 2,330 किलोमीटर का पूर्व-पश्चिम कॉरिडोर (कोलकाता-मुम्बई), करीब 2,343 किलोमीटर का उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर (दिल्ली-चेन्नर्इ), 1100 किलोमीटर का पूर्व तटीय कॉरिडोर (खड़गपुर-विजयवाड़ा) और लगभग 899 किलोमीटर का दक्षिणी कॉरिडोर (चेन्नई-गोवा) हैं।
* (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व अनुसंधान एसोसिएट, नीति आयोग, नई दिल्ली है)