राजस्थान और गुजरात के दूर-दूर तक फैले निर्जन इलाकों में मसालों के तौर पर इस्तेमाल होने वाली औषधियों, बीजों और फलों की खेती का खास महत्त्व है। आमतौर पर इन्हें बीज मसालों के नाम से जाना जाता है। ये बीज मसाले उन कम फसलों में शुमार है जो ऐसी विषम परिस्थितियों में भी उगाई जा सकती हैं जिनकी पैदावार के लिए कम लागत आती है, साथ ही बाजार में इन मसालों की अच्छी कीमत मिलती है। इसलिए राजस्थान और गुजरात को देशभर में 'बीज मसालों के कटोरे' के नाम से जाना जाता है, हालांकि देश के अन्य राज्यों में भी इस मसालों की पैदावार होती है।
राजस्थान धनिया, मेथी और अजवायन के उत्पादन में आगे है। इसके अलावा गुजरात जीरा, सुआ और सौंफ के उत्पादन में अहम हिस्सेदारी निभाता है। अन्य राज्यों में पंजाब अजमोद के उत्पादन के लिए प्रसिद्घ है तो उत्तर प्रदेश और बिहार कलौंजी के नाम से लोकप्रिय मसाले का उत्पादन करते हैं। भारत के दक्षिणी हिस्से में स्थित राज्यों में भी इन मसालों की पैदावार होती है। आंध्र प्रदेश में जीरे और मेथी का उत्पादन काफी मात्रा में होता है। अन्य दक्षिणी राज्यों में मुख्य रूप से काली मिर्च और इलायची का उत्पादन होता है जिन्हें फसल आधारित बीज मसालों की फेहरिस्त में शामिल नहीं किया जाता है। अन्य राज्यों में पैदा किए जाने वाले दूसरे बीज मसालों में शिया जीरा और विलायती सौंफ प्रमुख हैं।
दुनिया भर में सिर्फ भारत ही एक ऐसा देश है जहां व्यावसायिक रूप से मूल्यवान लगभग सभी बीज मसालों का उत्पादन देश के किसी न किसी हिस्से में जरूर होता है। इस तरह भारत दुनिया का सबसे बड़ा बीज मसाला उत्पादक और उपभोक्ता देश है। दुनिया की लगभग 60 फीसदी जरूरतें भारत के जरिये ही पूरी होती है। सबसे खास बात यह है कि मसालों का निर्यात पिछले पांच सालों के दौरान मूल्य की दृष्टिï से 15 फीसदी और आकार की दृष्टिï से 8.7 फीसदी की दर से वृद्घि कर रहा है। पिछले साल अकेले जीरा 1,093 करोड़ रुपये की ऊंची कीमत पर पर पहुंच गया जिसकी वजह से जीरा कृषि निर्यात के मामले में अग्रणी फसलों में शुमार हो गया। बाहरी कारोबार में दूसरे मसाले खासतौर पर सौंफ, अजमोद और मेथी की पैदावार में भी वर्ष 2011-12 के मुकाबले वर्ष 2012-13 करीब 55 फीसदी का इजाफा हुआ।
निर्यात के मामले में शानदार प्रदर्शन का मतलब कतई यह नहीं लगाया जा सकता कि घरेलू बीज मसालों के कारोबार में सबकुछ ठीक चल रहा है और यह कारोबार ऊंचाइयों को हासिल कर चुका है। निर्यात में आई इस बढ़ोतरी की प्रमुख वजह भारत के कारोबारी प्रतिद्वंद्वी सीरिया की ओर से होने वाली आपूर्ति की कमी है। सीरिया के घरेलू हालात ठीक नहीं होने के कारण वहां से आपूर्ति में गिरावट दर्ज की गई। लेकिन सिर्फ ऐसा नहीं है कि मुकाबला सिर्फ सीरिया से है। चीन, तुर्की और ईरान जैसे देश भी भारत को तगड़ी टक्कर दे रहे हैं।
हालांकि भारत का उत्साह बढ़ाने वाला तथ्य यह है कि हमारे पास उत्पादन में इजाफा करने और गुणवत्ता में सुधार करने की असीमित संभावना है। इससे वैश्विक मसाला बाजार में देश की हिस्सेदारी को आसानी से बढ़ाया जा सकता है। इसके अलावा अंतरराष्टï्रीय मसाला बाजार काफी तेजी से बढ़ रहा है। साफ है कि इन उत्पादों के भारतीय निर्माताओं और निर्यातकों के लिए भी उम्मीदें बढ़ रही हैं। दुनिया भर में इन मसालों की बढ़ती मांग की एक प्रमुख वजह भारतीय खाने की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता भी है। मांग बढऩे की एक अन्य वजह दवा, प्रसाधन और सुगंधित द्रव्य बनाने वाले उद्योगों में इन चीजों का बढ़ता इस्तेमाल भी है।
अजमेर स्थित राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केंद्र (एनआरसीएसएस) के निदेशक बलराज सिंह निर्यात में होने वाली बढ़ोतरी के कुछ अन्य कारणों पर प्रकाश डालते हैं। इनमें एनआरसीएसएस और अन्य शोध संस्थानों द्वारा प्रवर्तित तकनीकी और भारतीय मसाला बोर्ड सहित अन्य एजेंसियों की ओर से चलाए जा रहे प्रचार कार्यक्रम भी शामिल हैं। एनआरसीएसएस ने इन फसलों की कई अलग-अलग और पहले से बेहतर प्रजातियां विकसित कर ली हैं और खेती के नए तरीके भी ईजाद किए हैं। इसके अलावा संगठन इन फसलों को सूखे, रोगों और कीटों से बचाव के तरीके और इनकी गुणवत्ता सुधारने की ओर ध्यान दे रहा है।
देश में बीजीय मसाला क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी मुश्किल पैदावार के बाद का बुरा प्रबंधन और मूल्य वर्धन की कमजोर प्रक्रिया है। इन मसालों का 80 फीसदी तक निर्यात कच्चे माल के तौर पर किया जाता है। उत्पादन के बाद बेहतर तकनीकी और प्रसंस्करण के जरिये उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाकर निर्यात से होने वाली आय में इजाफा किया जा सकता है। बेहतर गुणवत्ता के बीजों खासकर अधिक उत्पादन करने वाले बीजों की कमी भी उत्पादकता और उत्पादन बढ़ाने के मामले में एक बड़ी बाधा है। उत्पादन के बदले उचित कीमत न मिलने के कारण भी किसान इन फसलों का रकबा बढ़ाने से कतराते हैं। बीजीय मसालों के कारोबार में मौजूद क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए इन सभी मसलों पर जल्दी से जल्दी गौर किया जाना चाहिए।
साभार- बिज़नेस स्टैंडर्ड से