मनुष्यों की तरह सरकारों का भी भाग्य होता है। कई बार सरकारें आती हैं और सुगमता से किसी बड़ी चुनौती और संकट का सामना किए बिना अपना कार्यकाल पूरा करती हैं। कई बार ऐसा होता है कि उनके हिस्से तमाम दैवी आपदाएं, प्राकृतिक झंझावात और संकट होते हैं। इस बार सत्तारुढ़ होते ही मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ऐसे ही संकटों से दो-चार हैं। सत्ता ग्रहण करते ही वैश्विक करोना संकट ने उनके सामने हर मोर्चे पर चुनौतियों का अंबार ला खड़ा किया। यहीं पर अनुभव, राज्य की शक्ति और सीमाओं की समझ तथा समाज की चिंताओं का अध्ययन काम आता है। मध्यप्रदेश जैसे भौगोलिक तौर पर विस्तृत राज्य की चुनौतियां बहुत विलक्षण हैं। चुनौती इसलिए भी बड़ी है क्योंकि उसके दोनों बड़े शहरों इंदौर और भोपाल में करोना का संक्रमण विकराल दिखता है।
करोना का संकट एक ऐसी चुनौती है जिससे उबरना आसान नहीं है। सच तो यह है कि इस संकट के सामने दुनिया की हर सरकार खुद को विवश पा रही है। शपथ लेते ही जिस तरह खुद को झोंककर मप्र के मुख्यमंत्री ने अपनी दक्षता दिखाई वह सीखने की चीज है। शिवराज सिंह की खूबी यह है कि वे अप्रतिम वक्ता और संवादकला के महारथी हैं। उनकी वाणी और कर्म में जो साम्य है, वह उन्हें हमारे समय के राजनेताओं में एक अलग ऊंचाई देता है। उनकी खूबी यह भी है कि वे सिर्फ कहते नहीं हैं, खुद को उस अभियान में झोंक देते हैं। ऐसे में जनता, शासन-प्रशासन और सामाजिक संगठन उनके साथ होते हैं। करोना युद्ध में भी उन्होंने पहले तो लोगों को आश्वस्त किया कि वे लौट आए हैं। उनकी पुराना ट्रैक भी एक भरोसा जगाता है, जिसमें हर वर्ग की परवाह है, उनसे संवाद है और योजनाओं का सार्थक क्रियान्वयन है।
करोना योद्धाओं को भरोसा दिलाया-
सरकार संभालते ही उन्होंने पहले तो करोना योद्धाओं को भरोसा दिया कि वे निर्भय होकर काम करें और उनकी चिंता सरकार पर छोड़ दें। यही कारण है कि डाक्टरों और पुलिस हमले और असहयोग करने वालों को उन्होंने जेल की सीखचों को भीतर डालकर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसे कड़े कदम उठाए। इसके बाद ‘मुख्यमंत्री कोविड-19 योद्धा कल्याण योजना’ की शुरुआत की है जिसमें करोना की बीमारी में सेवा दे रहे कर्मियों के कल्याण की बात की गई। हर स्तर की चिकित्सा सेवाओं से जुड़े कर्मी, गृह विभाग, नगरीय निकाय के हर स्तर के कर्मी, निजी संगठनों के लोग व कोविड -19 से संबंधित सेवाओं में जुड़े हर पात्र कर्मी को इससे जोड़ा गया है। अपनी जान पर खेल लोगों की जान बचाने वाले लोगों के कर्तव्यबोध को जगाने का यह अप्रतिम प्रयास है। इसके तहत सेवा के दौरान प्रभावित होने और जान जाने पर 50 लाख तक के मुआवजे का उनके आश्रितों को प्रावधान है।
किसानों और श्रमिकों को प्रति संवेदना-
किसानों पर अपने अनुराग के लिए शिवराज जाने ही जाते हैं। उन्हें किसानों के आंसू पोंछने और राज्य को कृषि क्षेत्र में ऊंचाईयों पर ले जाने का श्रेय है। किसानों को कष्ट न हो इसके लिए उनकी सरकार हर उपाय करती ही है। इसके साथ ही श्रमिकों के साथ उनकी संवेदना बहुज्ञात है। दूसरे राज्यों में फंसे श्रमिकों को वापस लाने, कोटा में फंसे विद्यार्थियों को वापस लाने की पहल को इसी नजर से देखा जाना चाहिए। सामान्य योजनाओं से समझा जा सकता है कि वे लोगों को कष्ट को समझते हैं तो सामाजिक सहभागिता के अवसर भी जुटाते हैं। महिलाओं से मास्क बनाने का आह्वान उनकी इसी सोच का परिचायक है जिसमें प्रति मास्क 11 रुपए दिए जाने का योजना है। इसे उन्होंने जीवनशक्ति योजना का नाम दिया है। किसानों के कल्याण और उन्हें सही मूल्य मिले इसके लिए सरकार शीध्र ही मंडी एक्ट में संशोधन के लिए भी तैयार है। राज्य में किसान उत्पादक संगठन(एफपीओ) को स्व-सहायता समूहों की तरह सशक्त बनाने की भी तैयारी है।
करोना को लेकर उनकी पूरी टीम पूरी सक्रियता से मैदान में है। वे ही हैं जो सरकार, संगठन, सामाजिक संगठनों, धार्मिक नेताओं, आम लोगों और समाज के हर वर्ग से संवाद करते हुए संकटों का हल निकाल रहे हैं। संवाद में उनका भरोसा है इसलिए वे राज्य स्तरीय समिति में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी, पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच, जबलपुर के लोकप्रिय चिकित्सक डा. जितेंद्र जामदार आदि के साथ चर्चा कर राहें निकाल रहे हैं। शिवराज जी की खूबी है कि वे अपनी सहजता, सरलता और भोलेपन से लोगों के दिलों में जगह बनाते हैं तो वहीं जब दृढ़ता प्रदर्शन करना होता है, तो वे कड़े फैसले लेने में संकोच नहीं करते। इस बार सत्ता में आते ही उन्होंने जिस तरह ताबड़तोड़ फैसले लिए उसने यह साबित किया कि वे शांतिकाल के नायक तो हैं ही, संकटकाल में भी अपना धैर्य नहीं खोते। असली राजनेता की यही पहचान है।
राज्य की आर्थिक चिंताओं से बड़ी इस राज्य के लोंगो की जिंदगी है। तभी कोराना संकट से मुकाबले के प्रारंभ में ही मुख्यमंत्री ने कहा “जान है तो जहान है। आर्थिक प्रगति तो हम कभी भी कर लेंगें पर जीवन न रहा तो उसका क्या मतलब।” यह साधारण वक्तव्य नहीं है। यह एक तपे हुए राजनेता का बयान है, जिसके लिए अपने राज्य के लोग ही सब कुछ हैं। इसीलिए अब वे हैप्पीनेस फार्मूले की बात कर रहे हैं। उनके सपनों का आनंद मंत्रालय फिर से पुर्नर्जीवित होने जा रहा है। इसके तहत आनंद की गतिविधियों तो पूर्ववत चलेंगी ही,वर्तमान करोना संकट में इसके शिकार मरीजों को खुश रखने के भी प्रयास होगें। उम्मीद की जानी चाहिए कि मध्यप्रदेश और देश करोना संकट से जीत पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण बनेगा। उसके द्वारा स्थापित व्यवस्थाएं एक उदाहरण बनेंगी। जिसमें स्वास्थ्य, स्वच्छता, आनंद और सामाजिक सुरक्षा के भाव मिले जुले होंगे। राजसत्ता को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने में मध्यप्रदेश सरकार के प्रयास एक उदाहरण बनेगें इसमें दो राय नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक हैं)
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– प्रो, संजय द्वेिवेदी,
अध्यक्षः जनसंचार विभाग,
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय,
प्रेस काम्पलेक्स, एमपी नगर, भोपाल-462011 (मप्र)
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