महात्मा गांधी के व्यक्तित्व,कृतित्व और अवदान पर आज भी लेखकों की लेखनी रूकी नहीं है, कवियों और वक्ताओं की वाणी थमी नहीं है। चिंतकों की चिंतनधारा कुंद या मंद नहीं हुई है। कर्मनिष्ठा,भावनिष्ठा और त्यागनिष्ठा को चरितार्थ कर गांधी ने एक ऐसी बडी लकीर खींची है जिसे अभी तक छोटी नहीं किया जा सका है। गांधी की कथनी और करनी में एकरूपता के साथ ही उनकी व्यावहारिक जीवनशैली आज की पीढी के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है। क्योंकि वे किसी वाद या विचारधारा को लेकर नहीं चले। अपने जीवन और व्यवहार से उन्होंने जितनी जिन्दगियां बदल दी उसका दसवां भाग भी सदियों से चली आ रही अनेक विचारधाराओं से संभव नहीं है। इससे यह धारणा पुष्ट होती है कि सिद्धांत की तुलना में व्यावहारिक जीवन पद्धति ही अधिक कारगर है। राजनीति,राष्ट्रनीति,जननीति को सहजता और दृढता के साथ स्पष्ट करता गांधी का व्यक्तित्व एक ऐसा दीप स्तम्भ बना हुआ है जिसके आलोक में आने वाली कई सदियों तक सत्य को परिभाषित होते हुए देखा जा सकता है।
150 वें जन्मशती वर्ष में वरिष्ठ कवि, सम्पादक, शिक्षाविद् डॉ देवेन्द्र जोशी द्वारा गांधी जी के समग्र व्यक्तित्व पर रचित महाकाव्य “महात्मायन” और कस्तूरबा गांधी के जीवन पर केन्द्रीत कृति “राष्ट्रमाता कस्तूरबा” के माध्यम से दोनों को याद किया है और उन्होंने अपनी निश्छल वैचारिकता के साथ उस दोनों को भाव सुमन अर्पित किए है।
मोहनदास के महात्मा गांधी बनने और प्रकारान्तर से राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किये जाने की संघर्षपूर्ण गाथा को डॉ जोशी ने “महात्मायन” में गांधी जी के जीवन को 28 प्रसंगों के माध्यम से व्यक्त किया गया है। जिनमें उनके पूर्वज, बचपन, शिक्षा, विलायत प्रवास, रंगभेद संघर्ष, प्रथम श्रेणी डिब्बे से उतारने की घटना , कीमती उपहारों को लेकर पति -पत्नी की नोकझोक और ट्रस्ट बनाकर उपहारों का त्याग, सर्वोदय प्रस्फुटन, गोरों के हाथों गांधी जी की पिटाई, नमक आन्दोलन, चम्पारन सत्याग्रह, कांग्रेस की अध्यक्षता, दलितोद्धार, भारत छोडो आन्दोलन आदि प्रसंग प्रमुख हैं। यह महाकाव्य नई पीढी को ध्यान में रखकर सहज – सरल भाषा में चतुष्पदी में लिखा गया है। आज के डिजिटलाइजेशन और इन्टरनेट के युग में गांधी जी से दूर होती जा रही नई पीढी में महात्मा गांधी के प्रति कविताओं के जरिए रूचि जगाने की रचनाकार का अच्छा प्रयास है।
कस्तूरबा के बिना गांधी की कल्पना नहीं की जा सकती। अगर कस्तूरबा न होती तो गांधी राष्ट्रपिता और महात्मा नहीं बन पाते। यह वर्ष कस्तूरबा का भी 150 वें जयंती का वर्ष है। डॉ जोशी ने पुस्तक “राष्ट्रमाता कस्तूरबा” के रूप में एक शोध ग्रंथ समाज के सामने रखा है। यह पुस्तक कस्तूरबा और महात्मा गांधी के जीवन के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती है। अनेक नई और शोधपूर्ण जानकारी इससे पाठकों तक पहुंचती है। जिसे जुटाने में लेखक ने बहुत श्रम किया है। डॉ जोशी ने शोध ग्रंथ के 25 अध्याय में कस्तूरबा गांधी के जीवन की सम्पूर्ण दास्तान संजोई है। पत्नी , मां, स्वतंत्रता सेनानी, जेल कैदी, बालिका वधू, गांधी जी की हमसफर, सहनशीलता की मूरत, भारतीय नारी, आज्ञाकारी पत्नी और पति की छाया आदि रूपों में कस्तूरबा गांधी की भूमिका पर ग्रंथ में विस्तार से प्रकाश डाला गया है। हर सफल पुरूष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है। गांधी जी की सफलता में वह हाथ कस्तूरबा का ही था। गांधी जी हठी सिद्धांतवादी और जिद्दी व्यक्ति थे। इस कारण कस्तूरबा को उनके अनेक अत्याचार झेलने पडे। एकाधिक बार गांधी जी ने कस्तूरबा को घर से बाहर निकाला। फिर भी पतिव्रता कस्तूरबा ने अंत तक गांधी जी का साथ नहीं छोडा। वे परिवार समाज और राष्ट्र के साथ ही गांधी जी की हर कसौटी पर खरी उतरी। कस्तूरबा गांधी के योगदान को जन – जन तक पहुंचाने का यह एक सार्थक प्रयास है।
गांधी जी ने खुद अपनी आत्मकथा में लिखा है कि यदि कस्तूरबा ने न सम्हाला होता तो राष्ट्रपिता और महात्मा बनना तो दूर मैं पूरी उम्र जिन्दा भी नहीं रह पाता और समय से पहले ही मर जाता। ग्रंथ में उल्लेखित है कि कस्तूरबा महात्मा गांधी से 6 माह बडी थी। उनका गांधी जी के साथ बाल विवाह हुआ था। 6 वर्ष की उम्र में सगाई और 12 वर्ष की आयु में शादी हुई थी। उस समय लडकियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। इस कारण कस्तूरबा निरक्षर थी। लेकिन गांधी जी के साथ रहकर उन्होंने लिखना- पढना सीख लिया था। गांधी जी और वे जब जेल में होते थे एक- दूसरे से पत्र व्यवहार करते थे। बाद में वे भी आजादी के आन्दोलन में कूद पडी और कई बार जेल गई। उनकी मृत्यु पूणे के आगा खां महल स्थित जेल में 22 फरवरी 1944 को हुई थी। वैचारिक मतभेद के बावजूद सुभाष चंद्र बोस और महात्मा गांधी एक – दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। कस्तूरबा की मृत्यु पर नेताजी ने महात्मा गांधी को लिखे एक पत्र में उनकी मृत्यु को राष्ट्र के लिए बलिदान बताते हुए उन्हें राष्ट्र माता कहा था। जिसका उल्लेख इस कृति में है।
उल्लेखनीय है कि डॉ जोशी कस्तूरबा गांधी पर विगत कई वर्षों से शोध कर रहे थे जो अब जाकर पूर्ण हुआ और संयोग से कस्तूरबा गांधी के डेढ शताब्दी वर्ष में पुस्तकाकार रूप में सामने आया है। इस शोध हेतु कस्तूरबा गांधी पर मौलिक और प्रामाणिक जानकारी संकलन के लिए लेखक ने 10 राज्यों की हजारों किलोमीटर की यात्रा कर अत्यंत परिश्रमपूवक जुटाई जानकारी के आधार पर कस्तूरबा गांधी के जीवन ने अनेक अनछुए पहलुओं को उजागर किया है। चूंकि कस्तूरबा गांधी पर बहुत कम लिखा गया है इसलिए लेखक का यह प्रयास उपयोगी एवं जानकारीवर्धक है। यह सच है कि महात्मा गांधी पर विश्व भर में जितना साहित्य रचा गया उसकी तुलना में कस्तूरबा पर बहुत कम लिखा गया।जबकि कस्तूरबा ने गांधी जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की जंग लड़ी थी। कस्तूरबा के इसी संघर्ष को पुस्तक में सामने लाने की कोशिश लेखक ने की है। इस दृष्टि से यह एक महापुरूष की पत्नी के साथ ही एक स्वंत्रचेता भारतीय नारी की दास्तान प्रतीत होती है जो गांधी जी महामानव की चकाचौंध में कहीं ओझल सी हो गई थी जिसे लेखक ने फिर सामने ला दिया है।
निरंतर अहिंसक और अराजक होते समाज में साहित्य और कला की नगरी उज्जैन से 150 वें जयंती वर्ष में बापू और बा को सच्चे अर्थों में ये रचनात्मक काव्यांजलि है। डॉ जोशी की यह दोनों कृतियां महात्मायन और राष्ट्रमाता कस्तूरबा सदैव जन जन को प्रेरित करते रहेंगे और शताब्दियों तक नई पीढी को गौरवशाली अतीत से अवगत कराता रहेगा। इन दोनों धरोहरों को समाज के सामने लाने के लिए डॉ देवेन्द्र जोशी धन्यवाद और बधाई के पात्र है।
-संदीप सृजन
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