स्पीकिंग टाइगर एवं राजकमल प्रकाशन अनन्या मुख़र्जी की हिंदी पुस्तक ” ठहरती साँसों के सिरहाने से : जब ज़िन्दगी मौज ले रही थी (कैंसर डायरी)” एवं अंग्रेजी में ‘टेल्स फ्रॉम द टेल एंड : माय कैंसर डायरी” के लोकार्पण पर गुरूवार ,29 अगस्त ,शाम 7 बजे,सेमिनार हॉल I,II एवं III, कमलादेवी चट्टोपाध्याय हॉल ,इंडिया इंटरनेशनल सेंटर ,40 मैक्स मुलर मार्ग ,लोधी एस्टेट दिल्ली में
पुस्तक लोकार्पण के बाद परिचर्चा में हर्मला गुप्ता,अध्यक्ष कैनसपोर्ट एवं सादिया देहलवी,लेखक एवं स्तंभकार से संचालक प्रज्ञा तिवारी चर्चा करेंगी एवं युवा एवं नामी दास्तानगो कलाकार हिमांशु बाजपाई द्वारा दास्तानगोई प्रस्तुत किया जाएगा .
पुस्तक के बारे में
अनन्या मुखर्जी के शब्दों में कहें तो ‘जब मुझे पता चला कि मुझे ब्रैस्ट कैंसर है, मैं विश्वास नहीं कर सकी। इस ख़बर ने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। लेकिन, जल्द ही मैंने अपने आत्मविश्वास को समेटकर अपने को मजबूत किया। मैं जानती थी कि सब कुछ ठीक हो जाएगा…’
लेकिन पहली बार हुआ कि वो भविष्य के अंधेरों से जीत नहीं पाई।
18 नवंबर 2018 को अनन्या, कैंसर से अपनी लड़ाई हार गईं। लेकिन, अनन्या जीवित हैं, दोस्तों- परिवार की उन खूबसूरत यादों में जिसे वो उनके लिये छोड़ गई हैं। साथ ही, डायरी के उन पन्नों में जो कैंसर की लड़ाई में उनका साथी रहा।
यह किताब कैंसर की अंधेरी लड़ाई में एक रोशनी की तरह है (कमरे की खिड़की पर बैठे गंदे कौवे की तुलना अपने एकदम साफ़, बिना बालों के सर से करना), एक कैंसर के मरीज़ के लिए कौन सा गिफ्ट्स उपयोगी है ऐसी सलाह देना (जैसे रसदार मछली भात के साथ कुछ उतनी ही स्वादिष्ट कहानियां एक अच्छा उपहार हो सकता है), साथ ही एक कैंसर मरीज़ का मन कितनी दूर तक भटकता है (जैसलमेर रोड ट्रिप और गंडोला – एक तरह का पारंपरिक नाव – में बैठ इटली के खूबसूरत, पानी में तैरते हुए शहर वेनिस की सैर)
‘टेल्स फ्रॉम द टेल एंड’ किताब उम्मीद है, हिम्मत है. यह किताब सुबह की चमकती, गुनगुनाती धूप की तरह ताज़गी से भरी हुई है जो न केवल कैंसर से लड़ते मरीज़ के लिए बल्कि हम सभी के लिए, जो अपने-अपने हिस्से की लड़ाई लड़ते आये हैं, उनके लिए कभी न हार मानने वाली उम्मीद की किरण है.
लेखक अनन्या मुखर्जी के बारे में
अनन्या मुखर्जी ने अपना बचपन नागपुर और दिल्ली में बिताया, जहाँ उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की। उन्होंने सिम्बायोसिस कॉलेज, पुणे से मास कम्यूनिकेशन में स्नातकोत्तर की पढ़ाई की, और वे अपने बैच की टॉपर थीं। पत्रकारिता में स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण करने के लिए वह आस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ वोल्लोंगोंग गई।
अपने सत्रह साल के पेशेवर जीवन में उन्होंने कई जानी मानी पीआर कम्पनियों और कॉर्पोरेट कम्पनियों के साथ काम किया, जिनमें कॉर्पोरेट वोयस, गुड रिलेशंस, इंजरसोल रैंड और डालमिया भारत ग्रुप शामिल हैं।
2012 में शादी के बाद वे जयपुर चली गई, जो उनका दूसरा घर बन गया।
2016 में पता चला कि अनन्या को स्तन कैंसर था, जब उनका इलाज चल रहा था तो उन्होंने कैंसर से जुड़े अपने अनुभवों, और इस बारे में कि कैंसर का मुकाबला किस तरह किया जाए के बारे में लिखना शुरू कर दिया, जो इस किताब के रूप में सामने है।
कीमोथेरेपी के पचास से अधिक सत्रों से गुज़रने के बावजूद अनन्या शब्दों से जादू जगा देती थीं। यह किताब उन लोगों के जीवन में उम्मीद की किरण की तरह हो सकती है जिनको कैंसर है और उनके परिजनों तथा देखभाल करने वालों के लिए भी जो मरीज़ के साथ-साथ इस बीमारी को अनुभव कर रहे होते हैं। 18 नवम्बर, 2018 को अनन्या कैंसर से लड़ाई हार गई।
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संतोष कुमार
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