Monday, November 25, 2024
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स्वदेशी अपनाकर ही देश में आर्थिक विकास को गति देना सम्भव

परम पूज्यनीय सरसंघचालक श्री मोहन जी भागवत ने देश में वर्तमान विशिष्ट परिस्थितियों के बीच स्वयंसेवकों की भूमिका को स्पष्ट करते हुए अपने सारगर्भित उदबोधन में कहा कि आप न केवल स्वयं अच्छे बने बल्कि दुनिया को भी अच्छा बनाएँ। सारी दुनिया इस सिद्धांत को मानती है एवं हम ख़ुद भी ऐसा ही मानते हैं। अपने ओजस्वी उदबोधन में परम पूज्यनीय सरसंघचालक ने कई मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किए हैं। इनमें से कुछ विचारों को केंद्र में रखकर निम्न प्रकार वर्णन किए जाने का प्रयास किया गया है।

पूरे विश्व में आज कोरोना वायरस एक महामारी के रूप में फैला है। हमारे देश में भी एक विशिष्ट परिस्थिति उत्पन्न हुई है। सभी लोगों को घर में बंद रहना पड़ रहा है। देश में सारे उद्योग धन्धे बंद हो गए हैं। परंतु, फिर भी जितना सम्भव हो रहा है, लोग घरों में रहकर भी जितना काम कर सकते हैं, कर रहे हैं। जीवन तो चल ही रहा है। अगर नित्य के कार्य बंद हुए हैं तो कुछ दूसरे तरह के कार्यों ने उसकी जगह ले ली है।

स्वयंसेवक तो “एकांत में आम-साधना और लोकांत में परोपकार” नामक सिद्धांत का पालन करते रहें हैं। आज देश में संकट की इस घड़ी में स्वयंसेवकों द्वारा घरों में रहकर एवं सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पूर्णतः पालन करते हुए भी देश के ग़रीब वर्ग की सहायता के दृष्टिगत देश के विभिन्न भागों में कई प्रकार के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। स्वयंसेवकों का यही ध्येय होना भी चाहिए। देश में सारा समाज भी इन कार्यकर्मों को प्रोत्साहन दे रहा है।

हालाँकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्य प्रसिद्धि पाना कभी नहीं रहा है। देश में स्वयंसेवक जो भी सेवा कार्य कर रहे हैं वह इस देश को, पूरे समाज को एवं इस देश में रह रहे समस्त नागरिकों को अपना मानते हैं, इसलिए कर रहे हैं। वर्तमान परिस्थिति में भी, इस सेवा कार्य में स्वयंसेवक निरंतर लगे हुए हैं। हाँ, स्वयंसेवकों से यह अपेक्षा ज़रूर की जा सकती है कि वे स्वयं तो सेवा कार्य करें ही, अच्छी बात है, साथ ही देश में अन्य लोगों को भी जागरूक करें, ताकि उन्हें भी दरिद्र वर्ग की सेवा हेतु प्रेरित किया जा सके। विशेषतः वर्तमान परिस्थियों में स्वयंसेवकों को समाज में सेवा कार्य करने के साथ ही कोरोना से बचाव के उपायों को भी अपनाना ज़रूरी है एवं स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन करना भी आवश्यक है। कोरोना वायरस की महामारी से डरने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है ब्लिक़ पूरे विश्वास के साथ इस महामारी का डटकर मुक़ाबला करने की आवश्यकता है।

कोरोना वायरस की महामारी कोई जीवन भर चलने वाली नहीं है, अंततः इस बीमारी पर क़ाबू पा ही लिया जाएगा। परंतु, जिस प्रकार से इस बीमारी ने पूरे विश्व में, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में, वहाँ की जीवन पद्धति पर एक प्रश्न चिन्ह लगाया है, उसके चलते अब यह सोचा जाने लगा है कि कहीं न कहीं भारतीय जीवन पद्धति ही श्रेष्ठ जीवन पद्धति हो सकती है एवं इसे पश्चिमी देशों द्वारा भी अपनाया जा सकता है। परंतु, इस सबके पूर्व हमें, अपने देश में, नए मॉडल विकसित कर अपनी जीवन पद्धति एवं आर्थिक गतिविधियों की सफलता को सिद्ध करना आवश्यक होगा। कोरोना वायरस की महामारी ने भारत को शायद एक मौक़ा दिया है कि वह इसे एक अवसर में बदल दे। यह भारत ही था, जिसने विभिन्न देशों में, इस महामारी के बीच, दवाईयों की हो रही कमी को पूरा किया। हमारे देश की संस्कृति भी यही है। हम वसुदेव कुटुम्भकम के सिद्धांत को मानने वाले लोग हैं।

अब चूँकि कोरोना वायरस महामारी की समाप्ति के बाद नए सिरे से देश में आर्थिक गतिविधियों की शुरुआत होगी तो क्यों न इन गतिविधियों को एक नए मॉडल के तहत प्रारम्भ किया जाए। इस महामारी के चलते देश के शहरों से बहुत बड़ी संख्या में श्रमिक वर्ग के लोगों ने गावों की ओर पलायन किया है। अब जब आर्थिक गतिविधियाँ पुनः प्रारम्भ होंगी तो ज़रूरी नहीं कि ये सभी लोग गावों से शहरों की ओर लौट जाएँ। सम्भव है इनमे से बहुत सारे लोग गावों में ही रह जाएँगे। इन्हें यहाँ रोज़गार के अवसर किस प्रकार उपलब्ध कराए जा सकते हैं, इस बात पर विचार करना आवश्यक है। “स्वदेशी” मॉडल को अपनाकर देश में ग़रीब वर्ग की आर्थिक समस्यायों का निदान सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

यदि देश के ग्रामीण इलाक़ों में ही कुटीर एवं लघु उद्योगों की स्थापना की जाय तो ग्रामीण आबादी के लिए ग्रामीण स्तर पर ही रोज़गार के अत्यधिक अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं। परंतु, इसकी सफलता के लिए देश के नागरिकों को भी भरपूर सहयोग करना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम सभी मिलकर आज यह प्रण लें कि विदेश में उत्पादित सामान का उपयोग नहीं करेंगे और केवल देश में निर्मित उत्पादों का ही उपयोग करेंगे तो देश के ग्रामीण इलाक़ों में कुटीर उद्योग पनप जायेगा। इससे ग्रामीण इलाक़ों में ही रोज़गार के अवसर उपलब्ध होंगे एवं इन इलाक़ों से नागरिकों का शहरों की ओर पलायन रुकेगा। धीरे धीरे, इन उद्योगों द्वारा निर्मित उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार आएगा, इनकी उत्पादकता में वृद्धि होगी एवं इनकी उत्पादन लागत कम होती जाएगी। जिसके चलते, ये उत्पाद हमें सस्ती दरों पर उपलब्ध होने लगेंगे।

आज चीन से छोटी छोटी वस्तुओं का भी भारी मात्रा में आयात हो रहा है। हालाँकि इनकी गुणवत्ता कोई बहुत उम्दा नहीं है परंतु बहुत ही सस्ती दरों पर उपलब्ध हो जाती है जिसके कारण आम भारतीय इन वस्तुओं की ओर आकर्षित हो जाते हैं एवं अपने देशी उद्योग धंधो एवं व्यापार का विनाश कर देते हैं। आज की विपरीत परिस्थितियों में हमें इस ओर सोचना चाहिए एवं केवल देश में उत्पादित वस्तुओं के उपयोग करने का प्रण लेना चाहिए। समाज के हर तबके के लोगों को इस विशेष प्रयास में शामिल होना आवश्यक है। विदेशी उत्पादों पर निर्भरता अब कम करनी ही होगी। समय आ गया है कि जब हम सभी नागरिक मिलकर आपस में एक दूसरे के भले के लिए काम करें एवं आगे बढ़ें।

प्रधान मंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी ने भी देश के सरपंचों को सम्बोधित करते हुए कहा है कि कोरोना वायरस महामारी हमें स्वावलंबी बनने का संदेश देकर जा रही है। हमारी परम्परा भी इसी प्रकार की रही है। अतः हमें स्वावलंबी बनने के लिए हर हाल में स्वदेशी को अपनाना ज़रूरी है।

देश में, कोरोना वायरस के चलते चूँकि लगभग सभी प्रकार की गतिविधियों पर रोक लग गई है अतः पर्यावरण शुद्ध हो गया है, नदियाँ साफ़ हो गई हैं, वायु शुद्ध हो गई है। अब इस बात पर भी विचार किया जाना चाहिए कि किस प्रकार इस स्थिति को बनाए रखा जा सकता है। शुद्ध पानी की उपलब्धता, वृक्षों का संरक्षण एवं संवर्धन, प्लास्टिक के उपयोग से मुक्ति का मार्ग अपनाना ही आज की आवश्यकता बन गई है। ज़मीन की उर्वरा शक्ति बढ़ाने के उद्देश्य से रासायनिक खाद के उपयोग के स्थान पर जैविक खाद के उपयोग को बढ़ाया जाना भी अब आवश्यक हो गया है।

यह भारतीय परम्पराएँ ही हैं जिसके चलते कोरोना वायरस की महामारी का प्रभाव भारत में बहुत कम दिखा है। अपनी प्रतिरोधात्मक क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से भारत के आयुष मंत्रालय ने एक काढ़ा पीने का सुझाव दिया है जिसके उपयोग से शरीर में प्रतिरोधात्मक क्षमता विकसित होती है एवं कोरोना वायरस का प्रभाव कम अथवा नहीं होता है। इसके साथ ही, भारत में कोरोना वायरस के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से भारत सरकार ने तत्परता पूर्वक कई उपायों की घोषणा भी की थी। देश में लॉकडाउन समय पर ही लागू कर दिया। नागरिकों को कई प्रकार के दिशा निर्देश जारी किए, यथा, केवल घरों में रहें, नागरिक आपस में दूरी बनाएँ रखें, मुँह पर मास्क धारण करें एवं अपने हाथों, शरीर को बार बार सेनेटाईज करते रहें, आदि। देश के नागरिकों ने भी आम तौर पर सरकार द्वारा सुझाए गए उपायों को दृढ़ता पूर्वक लागू किया।

भारत को कोरोना वायरस की महामारी के संकट से निकालकर सारे विश्व में देश की महत्ता को सिद्ध करते हुए हमें नए भारत का उत्थान करने का विचार आज करना चाहिए तथा देश पर आए इस संकट को देश के लिए एक अवसर में बदलकर हमें आगे बढ़ना चाहिए।

प्रह्लाद सबनानी,
सेवा निवृत्त उप-महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
के-8, चेतकपुरी कालोनी,
झाँसी रोड, लश्कर,
ग्वालियर – 474009
मोबाइल नम्बर 9987949940

ईमेल psabnani@rediffmail.com

लेखक परिचय
श्री प्रह्लाद सबनानी, उप-महाप्रबंधक के पद पर रहते हुए भारतीय स्टेट बैंक, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई से सेवा निवृत हुए है। आपने बैंक में उप-महाप्रबंधक (आस्ति देयता प्रबंधन), क्षेत्रीय प्रबंधक (दो विभिन्न स्थानों पर) पदों पर रहते हुए ग्रामीण, अर्ध-शहरी एवं शहरी शाखाओं का नियंत्रण किया। आपने शाखा प्रबंधक (सहायक महाप्रबंधक) के पद पर रहते हुए, नई दिल्ली स्थिति महानगरीय शाखा का सफलता पूर्वक संचालन किया। आप बैंक के आर्थिक अनुसंधान विभाग, कारपोरेट केंद्र, मुम्बई में मुख्य प्रबंधक के पद पर कार्यरत रहे। आपने बैंक में विभिन पदों पर रहते हुए 40 वर्षों का बैंकिंग अनुभव प्राप्त किया। आपने बैंकिंग एवं वित्तीय पत्रिकाओं के लिए विभिन्न विषयों पर लेख लिखे हैं एवं विभिन्न बैंकिंग सम्मेलनों (BANCON) में शोधपत्र भी प्रस्तुत किए हैं।

श्री सबनानी ने व्यवसाय प्रशासन में स्नात्तकोतर (MBA) की डिग्री, बैंकिंग एवं वित्त में विशेषज्ञता के साथ, IGNOU, नई दिल्ली से एवं MA (अर्थशास्त्र) की डिग्री, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से प्राप्त की। आपने CAIIB, बैंक प्रबंधन में डिप्लोमा (DBM), मानव संसाधन प्रबंधन में डिप्लोमा (DHRM) एवं वित्तीय सेवाओं में डिप्लोमा (DFS) भारतीय बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान (IIBF), मुंबई से प्राप्त किया। आपको भारतीय बैंक संघ (IBA), मुंबई द्वारा प्रतिष्ठित “C.H.Bhabha Banking Research Scholarship” प्रदान की गई थी, जिसके अंतर्गत आपने “शाखा लाभप्रदता – इसके सही आँकलन की पद्धति” विषय पर शोध कार्य सफलता पूर्वक सम्पन्न किया। आप तीन पुस्तकों के लेखक भी रहे हैं – (i) विश्व व्यापार संगठन: भारतीय बैंकिंग एवं उद्योग पर प्रभाव (ii) बैंकिंग टुडे एवं (iii) बैंकिंग अप्डेट

एक निवेदन

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