Saturday, November 23, 2024
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इंडिया नहीं, भारत ही कहा जाए।

इंडिया को भारत ही कहा जाए। एक राष्ट्रवादी सरकार के बाद अब देश का प्रबुद्ध नागरिक भी सचेत हो गया है और भारत के धर्म के साथ साथ सांस्कृतिक एवं धार्मिक प्रभुसत्ता को स्थापित करने में योगदान देने चल पड़ा है। हमारे देश का नाम इंडिया की जगह भारत ही कहने पर बहस छिड़ी है। यह मांग उठी है कि भारतीय संविधान में लिखित ‘इंडिया दैट इज़ भारत’ को बदलकर केवल भारत कर दिया जाए।

भारत का संविधान तत्कालीन कारणवश सिर्फ भारत नाम को ही आधार बना कर नहीं लिखा गया बल्कि इसके खंड १ के अन्नुछेद एक में निम्नलिखित वाक्य प्रयुक्त हुआ :
“भाग 1
1. संघ का नाम और राज्यक्षत्रे –(1) भारत, अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा।”
भारत नाम के उद्भव की पृष्ठभूमि को देखने पर हम पाते हैं की प्राचीनकाल से भारतभूमि के अलग-अलग नाम रहे हैं जैसे जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द। इनमें भारत सबसे ज़्यादा लोकमान्य और प्रचलित एवं स्वीकार्य हो गया। भारत की वैविध्यपूर्ण संस्कृति की तरह ही अलग-अलग कालखण्डों में इसके अलग-अलग नाम भी मिलते है। इन नामों में कभी भौगोलिक दशा का वर्णन आता है तो कभी जातीय चेतना और कभी संस्कार। हिन्द, हिन्दुस्तान, इंडिया जैसे नाम भौगोलिक रूप से उत्पत हैं क्योंकि इन नामों के मूल में सिन्धु नदी का प्रभाव दीखता है। सिन्धु का अर्थ नदी भी है और सागर भी।

पौराणिक युग में भरत नाम के अनेक व्यक्ति हुए। दुष्यन्तसुत के अलावा दशरथपुत्र भरत भी प्रसिद्ध हैं। नाट्यशास्त्र के रचयिता भरतमुनि है। मगधराज इन्द्रद्युम्न के दरबार में भी एक भरत ऋषि थे, एक योगी भरत हुए हैं। ऐतरेय ब्राह्मण में भी दुष्यन्तपुत्र भरत ही भारत नामकरण के कारक हैं क्योंकि भरत एक चक्रवर्ती सम्राट बनें जिन्होंने चारों दिशाओं की भूमि का अधिग्रहण कर विशाल साम्राज्य का निर्माण कर अश्वमेध यज्ञ किया, उनके द्वारा निर्मित भूखंड को भारतवर्ष नाम मिला। मत्स्यपुराण में उल्लेख है कि मनु को प्रजा को जन्म देने वाले वर और उसका भरण-पोषण करने के कारण भरत कहा गय। जिस भू खण्ड पर उसका शासन-वास था उसे भारतवर्ष कहा गया। नामकरण के सूत्र जैन परम्परा तक में मिलते है। भगवान ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र महायोगी भरत के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। इतिहास के अध्येताओं का आमतौर पर मानना है कि भरतजन इस देश में दुष्यन्तपुत्र भरत से भी पहले से थे। इसलिए यह तार्किक है कि भारत का नाम किसी व्यक्ति विशेष के नाम पर न होकर जाति-समूह के नाम पर प्रचलित हुआ। भरतजन अग्निपूजक, अग्निहोत्र व यज्ञप्रिय थे। वैदिकी में भरत / भरथ का अर्थ अग्नि, लोकपाल या विश्वरक्षक (मोनियर विलियम्स) और एक राजा का नाम है। जहाँ तक जम्बुद्वीप की बात है यह सबसे प्राचीन नाम है। आज के भारत, आर्यावर्त, भारतवर्ष से भी प्राचीन। जामुन फल को संस्कृत में ‘जम्बु’ कहा जाता है और अनेक उल्लेख हैं कि इस केन्द्रीय भूमि पर यानी आज के भारत में किसी काल में जामुन के पेड़ों की बहुलता थी, इसी कारण इसे जम्बु द्वीप कहा गया। कालांतर में जनमानस की चेतना जम्बूद्वीप के साथ नहीं, भारत नाम से जुड़ती चली गई। ‘भरत’ संज्ञा के रूप में प्रयोग होने लगा एवं समस्त क्षेत्र में इसकी कथाएं जुड़ती चली गई जो की स्वीकार्यता को बढाती चली गई।

सन्दर्भ बताते हैं कि देवश्रवा और देववात इन दो भरतों यानी भरतजन के दो ऋषियों ने ही मन्थन के द्वारा अग्नि प्रज्वलन की तकनीक खोज निकाली थी। भरतों से निरन्तर संसर्ग के कारण अग्नि को भारत कहा गया. इसी तरह यज्ञ में निरन्तर काव्यपाठ के कारण कवियों की वाणी को भारती कहा गया. यह काव्यपाठ सरस्वती के तट पर होता था इसलिए यह नाम भी कवियों की वाणी से सम्बद्ध हुआ एवं अनेक वैदिक मन्त्रों में भारती और सरस्वती का उल्लेख आता है. प्राचीन ग्रन्धों में वैदिक युगीन एक प्रसिद्ध जाति भरत का नाम अनेक सन्दर्भों में आता है. यह सरस्वती नदी या आज के घग्घर के कछार में बसने वाला समूह था. ये यज्ञप्रिय अग्निहोत्र जन थे. इन्हीं भरत जन के नाम से उस समय के समूचे भूखण्ड का नाम भारतवर्ष हुआ. विद्वानों के मुताबिक़ भरत जाति के मुखिया सुदास थे. इस तरह भरतों के इस संघ को भरत जन नाम से जाना जाता था. बाक़ी अन्य आर्यसंघ भी अनेक जन में विभाजित था इनमें पुरु, यदु, तुर्वसु, तृत्सु, अनु, द्रुह्यु, गान्धार, विषाणिन, पक्थ, केकय, शिव, अलिन, भलान, त्रित्सु और संजय आदि समूह भी जन थे. महाभारत की प्रामणिकता एवं विश्वश्नीयता भी भारत नाम को सिद्ध करता है वह युद्ध जिसका नाम ही महा’भारत’ है जो की भारत की भौगोलिक सीमा में आने वाले लगभग सभी साम्राज्यों ने हिस्सा लिया था इसलिए इसे महाभारत कहते हैं। इस विजय के बाद तत्कालीन आर्यावर्त में भरत जनों का वर्चस्व बढ़ा और तत्कालीन जनपदों के महासंघ का नाम भारत हुआ।

भारत-ईरान संस्कृति के ऐतिहासिक सन्दर्भ को देखें तो पायेंगें की ईरान पहले फ़ारस था. उससे भी पहले अर्यनम, आर्या अथवा आर्यान. अवेस्ता में इन नामों का उल्लेख है. माना जाता है कि हिन्दूकुश के पार जो आर्य थे उनका संघ ईरान कहलाया और पूरब में जो थे उनका संघ आर्यावर्त कहलाया. ये दोनों समूह महान थे, प्रभावशाली थे। कुर्द सीमा पर बेहिस्तून शिलालेख पर उत्कीर्ण हिन्दुश शब्द इसका प्रमाण है।

ग्रीक में भारत के लिए India अथवा सिन्धु के लिए Indus शब्दों का प्रयोग इस बात का प्रमाण है कि हिन्द अत्यन्त प्राचीन शब्द है और भारत की पहचान हैं. संस्कृत का ‘स्थान’ फ़ारसी में ‘स्तान’ हो जाता है. इस तरह हिन्द के साथ जुड़ कर हिन्दुस्तान बना- जहाँ हिन्दी लोग रहते हैं, हिन्दू बसते हैं। .’इंडिका’ का प्रयोग मेगास्थनीज़ ने किया. वह लम्बे समय तक पाटलीपुत्र में भी रहा मगर वहाँ पहुँचने से पूर्व बख़्त्र, बाख्त्री (बैक्ट्रिया), गान्धार, तक्षशिला (टेक्सला) इलाक़ों से गुज़रा. यहाँ हिन्द, हिन्दवान, हिन्दू जैसे शब्द प्रचलित थे. उसने ग्रीक स्वरतन्त्र के अनुरूप इनके इंडस, इंडिया जैसे रूप ग्रहण किए. यह ईसा से तीन सदी और मोहम्मद से 10 सदी पहले पहले की बात है.

भरतजनों का वृतान्त आर्य इतिहास में इतना प्राचीन और दूर से चला आता है कि कभी युद्ध, अग्नि, संघ जैसे आशयों से सम्बद्ध ‘भरत’ का अर्थ सिमट कर महज़ एक संज्ञा भर रह गया जिससे कभी ‘दाशरथेय भरत’ को सम्बद्ध किया जाता है तो कभी भारत की व्युत्पत्ति के सन्दर्भ में दुष्यन्तपुत्र भरत को याद किया जाता है.

इंडिया नाम पुरानी अंग्रेजी में ९वीं शती में और आधुनिक अंग्रेजी में १७वीं शती से मिलता है। ब्रिटिश काल के शाशन में इंडिया नाम प्रमुखता से शाशकों द्वारा स्वीकार कर लिया गया अतः यह संविधान सभा के सामने भी स्वीकार हो गया। अगर हम सविधान सभा की बहस एवं कार्यवाही को देखें तो पायेंगें की अन्नुछेद १ के सन्दर्भ में हुई चर्चा में यह विषय उठाया गया था की India that is Bharat के स्थान पर Bharat that is India होना चाहिए। इसपर चर्चा १५-१७ नवंबर, १९४८ एवं १७-१८ सितम्बर, १९४९ में हुई एवं संविधान सभा ने सभी आपत्तिओं को अस्वीकार मतदान द्वारा India that is Bharat को ही मान्य किया।

अब विषय यह उठता है की सभी सरकारी कामों में, पासपोर्ट पर, विदेश जाने वाले कागज़ों पर भारत शब्द की जगह इंडिया नाम का प्रयोग किया जाता है जिसके कारण सभी जगह देश को भारत की जगह इंडिया के नाम से प्रचलित कर दिया गया। यह देश के मूल नाम एवं पहचान को बदल देता है क्योंकि दक्षिण अमेरिका भी रेड इंडियंस का देश है, जबकि मेगस्थनीज़ के आने के हजारों वर्ष पूर्व से यह भू खंड भारतवर्ष नामित था। किन्हीं कारणों से मेगस्थनीज़ ने इसका नाम सिंधु नदी से जोड़ कर लिख दिया तो यह कालांतर में इंडिया हो गया।
जैसा की प्रारम्भ में लिखा गया है, अब जनमानस भी इन सभी विषयों पर गंभीर हो गया है और भारत एक विश्वगुरु बनने की राह पर है तो इंडिया जो की एक विदेशी द्वारा दिया गया नाम है उससे क्यों जाना जाये ? अतः इस बात की मांग उठी है की देश का नाम अधिकारी रूप से इंडिया की जगह भारत होना चाहिए। यह हमारे देश के प्राचीन सांस्कृतिक एवं राजनैतिक नाम को ही स्वीकार करता है।

इस सन्दर्भ में एक याचिका सर्वोच्च न्यायालय में जून २०२० को प्रस्तुत की गई थी की इंडिया शब्द के बदले भारत शब्द का प्रयोग होना चाहिए। याचिकाकर्ता की माँग थी कि इंडिया ग्रीक शब्द इंडिका से आया है और इस नाम को हटाया जाना चाहिए. याचिकाकर्ता ने कहा कि वह केंद्र सरकार को निर्देश दे कि संविधान के अनुच्छेद-1 में बदलाव कर देश का नाम केवल भारत करे. इस याचिका की सुनवाई के पश्च्यात सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि इस याचिका को संबंधित मंत्रालय में भेजा जाना चाहिए और याचिकाकर्ता सरकार के सामने अपनी माँग रख सकते हैं.
एक प्रबुद्ध नागरिक होने के नाते सभी को अधिकार है की अब अपने देश का नाम भारत ही कहें एवं लिखें इसके कारन भारत शब्द की स्वीकार्यता देश के नाम के रूप में होगी एवं जनमानस एवं लोगों के मुँह से स्वतः ही इंडिया की जगह भारत शब्द ही देश के नाम के रूप में निकलेगा और सभी इसका प्रयोग करेंगें। यह भारत को विश्वगुरु की और अग्रसर करने की दिशा में एक बृहद कदम होगा और विश्व में भारत एक सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक धरोहर के रूप में जाना जायेगा।

भारत देश के नाम से अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक इंडिया शब्द हटाने के लिए प्रस्तुत याचिका (पिटीशन) के समर्थन के लिए

निम्नलिखित लिंक पर जा कर हस्ताक्षर ( साइन करें।) और मित्रों को भी लिंक साझा करें।

http://chng.it/dsfdfT7QFD

निर्मलकुमार पाटोदी,
विद्या -निलय, ४५, शांति निकेतन ,(बाॅम्बे हाॅस्पीटल के पीछे),
इन्दौर-४५२०१० मध्य प्रदेश। सम्पर्क :०७८६९९१७०७० ।
मेल: nirmal.patodi@gmail.com

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