छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता राजनेता बनने से पहले तमिल, कन्नड़ और तेलुगु फिल्मों की बेहद सफल अभिनेत्री रही थीं लेकिन कम लोग जानते हैं कि उन्होंने एक हिंदी फिल्म भी की थी जो हिट रही रही थी और फिल्म में उन पर फिल्माया गया एक गीत हिंदी सिनेमा के सदाबाहर डांस-सॉन्ग में शुमार किया जाता है। जयललिता ने बाल कलाकार के तौर पर एक हिंदी फिल्म में काम कर चुकी थीं लेकिन बालिग कलाकार के तौर पर उनकी पहली और आखिरी हिंदी फिल्म रही 1968 में आई टी प्रकाश राव की “इज्जत।” फिल्म की कहानी प्रेम-त्रिकोड़ पर आधारित थी। फिल्म में जयललिता, धर्मेंद्र और तनुजा मुख्य भूमिका में थे। फिल्म में बलराज साहनी और महमूद भी सहायक भूमिकाओं में थे।
फिल्म में जयललिता ने झुमकी नाम की आदिवासी लड़की का रोल किया था। प्रशिक्षित डांसर होने के कारण जयललिता ने फिल्म में दो अहम गाने मिले थे। फिल्म का एक गीत-नृत्य “जागी बदन में ज्वाला, सैंया तूने क्या कर डाला” सुपरहिट रहा। इस डांस-सॉन्ग को हिंदी फिल्मों के सदाबहार गीतों में शुमार किया जाता है और आपको अभी भी ये गीत गाहे-बगाहे कहीं बजता हुआ मिल जाएगा। फिल्म में जयललिता पर एक और डांस-सॉन्ग “रुक जा जरा..” भी फिल्माया गया था लेकिन इस गीत को ‘जागी बदन में ज्वाला…’ जैसी सफलता नहीं मिली।
जयललिता ने बाल कलाकार के तौर पर 1962 में आई हिंदी फिल्म मनमौजी में काम किया था। उन्होंने फिल्म में फिल्माई गई कृष्ण-लीला में कृष्ण की भूमिका की थी। उन्हें ये रोल मिलने की मुख्य वजह ये थी कि वो बचपन से शास्त्रीय नृत्य सीख रही थीं और बहुत कम समय में उसमें पारंगत हो चुकी थीं। इस फिल्म में किशोर कुमार , साधना और प्राण मुख्य भूमिकाओं में थे। इस फिल्म राजेंदर कृशन के बोल और मदन मोहन के संगीत से सजे गीत “जरूरत है जरूरत है जरूरत है एक श्रीमती की…” और “मैं तो तुम संग नैन मिलाके” गाने काफी लोकप्रिय हैं।
तजयललिता का जन्म 24 फरवरी 1948 को मैसूर में हुआ था। उनके दादा नरसिम्हन रंगाचारी मैसूर रियासत के डॉक्टर और सर्जन थे। उनके नाना रंगास्वामी अयंगर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में काम करते थे। उनके पिता जयराम वकील थे। जयललिता जब दो साल की थीं तो उनके पिता का निधन हो गया। पिता के निधन के कुछ साल बाद उनकी मां वेदवल्ली पहले क्लर्क के तौर पर और बाद में फिल्मों और नाटकों में काम करने लगीं। जयललिता की मौसी अंबुजावल्ली उनकी मां के पहले ही फिल्मों और नाटकों में काम करती थीं। अंबुजावल्ली ने ही अपनी बड़ी बहन को परिवार चलाने के लिए फिल्मों में काम करने के लिए प्रेरित किया था। उनकी मां का फिल्मी नाम”संध्या” था।
साभार- इंडियन एक्सप्रेस से