संघ से जुड़े थिंकटैंक इंडियन पॉलिसी फाउंडेशन (आईपीएफ) ने अपनी नई पत्रिका ‘पाकिस्तान वॉच’ के पहले अंक में पाकिस्तान के प्रथम कानून मंत्री जोगेंद्र नाथ मंडल का इस्तीफा छापा है। यही नहीं संस्था के निदेशक राकेश सिन्हा के मुताबिक, पत्रिका के हर अंक में वे पाकिस्तान निर्माण और विभाजन से जुड़ा एक दस्तावेज जरूर छापेंगे, ताकि लोगों को उस दौर की पूरी हकीकत समझ आ सके।
कौन थे जोगेंद्रनाथ मंडल?
स्वाधीनता से पहले मंडल डॉ. अंबेडकर की तरह दलित आंदोलन के प्रमुख चेहरा थे। बंगाल की सियासत में पहली बार मंडल ने दलित-मुस्लिम गठबंधन का प्रयोग किया था। अंबेडकर से उलट उनका इस नए गठबंधन पर अटूट विश्वास था। 1937 में पहली बार बंगाल असेंबली में मंडल को ख्वाजा निजामुद्दीन की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया था। उसके बाद वे 1946 में एचएस सुहरावर्दी की सरकार में भी मंत्री रहे।
मंडल के कद का पता इसी बात से चल जाता है कि जिन्ना ने 1946 में अविभाजित भारत की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग की तरफ से जिन पांच नामों को भेजा था, उनमें एक नाम मंडल का भी था। यही नहीं, भारत की संविधान सभा के चुनाव में अंबेडकर जब बंबई में हार गए थे, तो ये मंडल ही थे जिन्होंने अंबेडकर को बंगाल असेंबली के जरिये चुनकर संविधान सभा में भेजा था। विभाजन के बाद मंडल न सिर्फ पाकिस्तान के पहले कानून मंत्री बने, बल्कि पाकिस्तान के संविधान लिखने वाली कमेटी के अध्यक्ष भी रहे थे। लेकिन, 1950 में मंडल ने पाकिस्तान सरकार से इस्तीफा दिया और वापस कलकत्ता आ गए और फिर लौट कर कभी पाकिस्तान नहीं गये।
आईपीएफ ने जेएन मंडल का इस्तीफा छाप कर बुद्धिजीवी वर्ग औऱ आधुनिक इतिहासकारों के बीच बहस छेड़ दी है। जेएनयू, जामिया और इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टीज़ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में पाकिस्तान को लेकर विशेष केंद्र बहुत पहले से काम करते आ रहे हैं। लेकिन, आजतक पाकिस्तान निर्माण की पूरी प्रक्रिया को लेकर कोई बड़ा अध्ययन यहां से नहीं निकला है। यही नहीं, मुस्लिम लीग और पाकिस्तान में विभाजन के बाद जाने वाले हिन्दू दलित समाज को लेकर भी आजतक कोई ठोस रिसर्च या अध्ययन इन केंद्रों ने नहीं किया है। कुल मिलाकर जेएनयू, जामिया और आईडीएफ के जानकारों पर अब इन विषयों पर अपनी स्थिति साफ करने का दबाव बढ़ा दिया गया है। खास बात यह है कि न तो आधुनिक इतिहास की किताबों में और न ही राजनीतिक शास्त्र की किताबों में पाकिस्तान निर्माण और आजादी से पहले के दलित आंदोलन के संबंध पर कुछ विशेष लिखा मिलता है।
उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ी हलचल मची हुई है। ऐसे में आईपीएफ के ‘पाकिस्तान वॉच’ पत्रिका ने यूपी में बन रहे संभावित दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सिद्धांत पर प्रश्न चिह्न लगा दिये हैं। संघ विचारक और आईपीएफ के निदेशक राकेश सिन्हा के मुताबिक, देश विभाजन के वक्त पाकिस्तान में दलित-मुस्लिम गठबंधन का जो प्रयोग किया गया था, वह इतिहास में पहला और आखिरी था। मंडल ने उस वक्त इसमें अहम भूमिका निभाई थी। लेकिन, फिर उन्होंने ही कहा कि पाकिस्तान में हिंदू सुरक्षित नहीं हैं। यूपी में जो संकेत मिल रहे हैं, उसे देखते हुए लग रहा है कि बीएसपी और कांग्रेस इस कोशिश में हैं कि दलित-मुस्लिम की सोशल इंजीनियरिंग के सहारे सत्ता हासिल की जाये।