” क्या घोड़ी नाचता है घांसी लाल पंकज, तेज गति से नाचती घोड़ी के धुमाव के साथ वेशभूषा का चक्राकार में फैलाव, लगता था जैसे कोई चकरी घूम रही हो। खास बात है कि गायकों और वादकों के घटते – बढ़ते स्वरों के साथ-साथ नृत्य की गति भी तीव्र, माध्यम और कम होती रहती थी। यह नृत्य दर्शकों के समक्ष एक सम्मोहन से भरपूर माहोल का सृजन कर देता है। दर्शक नृत्य के जादुई सम्मोहन में खो जाते हैं। ”
इस लोक नृत्य का सिद्धहस्त लोक कलाकार घांसी लाल बताता है कि हाड़ोती में के कई गांवों में भी इस लोक नृत्य के अनेक कलाकार हैं। यह नृत्य विशेष रूप से दूल्हा पक्ष के बारातियों के मनोरंजन करने के लिए व अन्य खुशी अवसरों पर भी प्रदर्शित किया जाता है। वह बताता है जब यह जवान था और कोटा के हाड़ोती उत्सव में कच्ची घोड़ी नृत्य प्रस्तुत किया था। मुझे भी इस कलाकार का कच्ची घोड़ी नृत्य देखने का सौभाग्य मिला था। कभी-कभी एक या दो महिलाएं भी घुड़सवार नर्तक के साथ-साथ नृत्य करती हैं।
उन्होंने बताया इनके दादा अलगोजा वादक थे। अपने दादाजी से अलगोजा वादन की कला सीखी। गांव के लोक कलाकारों से तेजाजी गायन और कच्ची घोड़ी का नृत्य सीखा। सन 1996 में दशहरा मेले में नगर- निगम कोटा द्वारा दशहरा में किसान रंग मंच पर कच्ची घोड़ी का नृत्य तेजाजी गायन के साथ दिखाया। पणिहारी लोक कला मंडल के माध्यम से अपनी लोककला को जनता के सामने लाए। क्षेत्रीय रंगमंच पर भी अनेक बार कच्ची घोड़ी का नृत्य लोगों की पसंद बना।
कच्ची घोड़ी नृत्य के बारे में इसने बताया कि राजस्थानी परंपरागत वेशभूषा पहनी जाती है। सिर पर पगड़ी, कमरबंद, बाजूबंद के साथ ही हर कलाकार के घनी और लंबी मूंछें होती है, जो लोक संस्कृति का प्रतीक है। इसमें एक घोड़ी की आकृति के साथ में कलाकार लोकगीतों के साथ परंपरागत वाद्य यंत्रों की धुनों पर इस नृत्य को करते हैं। अलगोजा, ढोलक और घुंघरू मुख्य वाद्य होते हैं।
यह नृत्य एक नकली घोड़े की पोशाक के साथ कुर्ता और पगड़ी पहने पुरुष द्वारा किया जाता है । नकली घोड़ा बांस के फ्रेम और टोकरियों से बनाया जाता है किसी कांच की कढ़ाई वाले चमकीले कपड़े से ढक दिया जाता है । इस नकली घोड़े के पैर नहीं होते हैं। इसके बजाय नर्तक की कमर के चारों ओर कपड़ा लपेटा जाता है, जिससे उसके पैरों की पूरी लंबाई ढँक जाती है। टखनों के आसपास, नर्तक घुंघरू के रूप में जानी जाने वाली संगीत की घंटियाँ पहनते हैं । नर्तक अपने हाथों में तलवार लेकर नृत्य करता है। इस प्रकार कच्छी घोड़ी में नर्तक ,गायकों और संगीतकारों का संयुक्त प्रदर्शन होता है।
घांसी लाल 1996 से कोटा में तालाब की पाल पर श्री तेजाजी के थानक पर तेजाजी जागरण व तेजाजी-गायन का कार्यक्रम लगातार 20 साल से कर रहें हैं। हाडोती के प्रसिद्ध जनकवि डा. धन्नालाल सुमन के साथ भी लोककला का कार्य किया है। इन्होंने 1997 से लेकर सन 2015 तक हर वर्ष राम बारात रावण दहन भरत मिलाप व किसान रंगमंच पर प्रोग्राम तेजाजी गायन व हाड़ोती लोक गीतों की प्रस्तुति दी। आकाशवाणी कोटा से इनसे मिलिए कार्यक्रम में इनके गीत भी प्रसारित हुए। पंकज अच्छे कवि भी हैं। इन्होंने दशहरा मेला, और केशोरायपाटन मेले में काव्यपाठ भी किया है।
रंगबिरंगे सांस्कृतिक राजस्थान की लोक कलाओं में कच्ची घोड़ी नृत्य एक बहुत ही आकर्षक और रोमांचकारी नृत्य है। यह लोक नृत्य विदेशी पर्यटकों को भी खूब आकर्षित करता हैं। मैंने उदयपुर के शिल्प ग्राम उत्सव में तेज गतिमान इस नृत्य से अनेक विदेशी पर्यटकों को कोतुक के साथ आनंदित होते हुए देखा हैं। प्राचीन समय से प्रचलित इस लोक नृत्य को करने वाले अनेक लोक कलाकार राजस्थान के अनेक भागों में निवास करते हैं। पिछले दिनों भारत जोड़ों यात्रा के दौरान टोंक के कलाकार सीताराम ने नृत्य की प्रस्तुति से राहुल गांधी को भी खूब लुभाया। वे भी अपने को थिरकने से नहीं रोक सके। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र से आरम्भ हुआ नृत्य केवल राजस्थान ही नहीं बल्कि भारत के अन्य भागों जैसे महाराष्ट्र गुजरात आदि में भी प्रसिद्ध है।
परिचय : लोक कलाकार घांसीलाल पंकज का जन्म 25 मई 1973 को कोटा जिले की तहसील दीगोद के ग्राम कोटड़ा दीपसिंह में हुआ। माता-पिता दोनों काश्तकार थे एवं वे दोनों ही अनपढ़ थे। इन्होंने 10 वीं कक्षा तक शिक्षा प्राप्त की। रोजगार की तलाश में कोटा आया और रायपुरा की मानसरोवर कॉलोनी में ही बस गया। अवसर मिलने पर कच्ची घोड़ी नृत्य, अलगोजा वादन और तेजाजी गायन का प्रदर्शन करता है और काव्यपाठ भी। इनकी की पीड़ा है कि व्यवथाएं ऐसी हैं की हम जैसे कम पढ़े लिखे गांव के कलाकारों को आगे बढ़ने का अवसर ही नहीं मिल पाता। जिनकी सेटिंग हो जाती है वह देश तो क्या विदेश तक चले जाते हैं। मौका मिले तो हम भी अपनी कला का जलवा दिखा सकते हैं।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवम् पत्रकार, कोटा