Monday, December 23, 2024
spot_img
Homeसोशल मीडिया सेकहाँ खो गया बीजू आम

कहाँ खो गया बीजू आम

चीनी जैसे मीठा था इसलिए उसका नाम रखा गया चिनियावा, गोल था तो गोलियांबा हो गया। बतासे जैसा चपटा आम था तो उसका नाम बतासवा रखा गया सिंदूर जैसी धारी थी तो सेनूरियावा हो गया कच्चा में मीठा था तो उसका नाम ककड़ीयावा आम हो गया। मधु जैसा मीठा था तो मधुआवा आम हो गया। बनावट के हिसाब से इन आमो का नामकरण होता गया। कुछ साल पहले तक खूबसूरत पीले बीजू आम हर जगह दिख जाते।

पेड़ों से टपक कर जमीन पर गिरे इन रसीले आमों का स्वाद शहद सा मीठा होता।बच्चें जेठ की तपती दोपहरी में भी इस पेड़ के चक्कर लगाते । टपकते आम को हासिल करने के लिए एक दूसरे में होड़ लगा रहता।गांव के कई नौजवान और बुजुर्गों कई किलो बीजू बेहद आराम से खा जाते । छोटे बीजू आम जिसमें गुठली की साइज बड़ी होती थी। रस और रेशो से भरपूर।बचपन की याद अब लोगों को तड़पाने लगी है। बीजू आम पर किसी का पहरा नहीं होता था। किसी के पेड़ से कोई भी व्यक्ति आसानी से आम चुनता और खाता। पेड़ मालिक इसे तोड़ने की जहमत भी नहीं उठाते। कारण था कि इसके फल बेहद छोटे और पेड़ बहुत ही बड़े होते थे। तोड़ने को कोई साहसी चढ़ता भी तो कुछ ही मिनटों में चढ़ाई उसे कमजोर कर देती।दरअसल बीजू आम आम के बीज यानी गुठलियों के द्वारा उत्पन्न किए गए पेड़ों से पाए जाते हैं। समय के साथ इसके पेड़ बेहद बड़े हो जाते हैं।

आज के टिशु कल्चर और क्रॉस किए गए नर्सरी के आमों के विपरीत बीजू आम के फलन में बहुत सालों का वक्त लगता था। इसके अलावा इसके पेड़ काफी जमीन भी घेरते हैं। कभी यह आम व्यवसायिक दृष्टिकोण पर खड़ा नहीं उतरा। हालांकि इस आम की लकड़ियां बेहद कामगार होती है। इसके चटनी और आचार का भी कोई जवाब नहीं होता।आज विरले ही कोई बीजू आम का पेड़ लगाया करता है। पूर्वजों का भला हो जिनके लगाए पेड़ आज भी सही सलामत कुछ जगह दिख जाते हैं पर आज के दौर में कोई बीजू को लगाने की जहमत नहीं उठाता।

ऐसा ही चलता रहा तो ही मीठे-पीले-रसीले आम भविष्य में गुमनाम हो जाएगा। जब जब जेठ की दोपहरी बचपन को सताएगी तब-तब इन रसीले फल की याद आयेगी , पर अफसोस यह आम नहीं मिलेगा। बीजू आम समाप्त होने के पीछे सबसे ज्यादा कोई कारण रहा तो वह उसके पेड़ का विशाल होना किसानों को जब आर्थिक रूप से जरूरत महसूस हुई तो सबसे पहले बीजू आम के पेड़ ही बेचे गए।

चीनी जैसे मीठा था इसलिए उसका नाम रखा गया चिनियावा, गोल था तो गोलियांबा हो गया। बतासे जैसा चपटा आम था तो उसका नाम बतासवा रखा गया सिंदूर जैसी धारी थी तो सेनूरियावा हो गया कच्चा में मीठा था तो उसका नाम ककड़ीयावा आम हो गया। मधु जैसा मीठा था तो मधुआवा आम हो गया। बनावट के हिसाब से इन आमो का नामकरण होता गया। कुछ साल पहले तक खूबसूरत पीले बीजू आम हर जगह दिख जाते। पेंड़ों से टपक कर जमीन पर गिरे इन रसीले आमों का स्वाद शहद सा मीठा होता।बच्चें जेठ की तपती दोपहरी में भी इस पेड़ के चक्कर लगाते । टपकते आम को हासिल करने के लिए एक दूसरे में होड़ लगा रहता।गांव के कई नौजवान और बुजुर्गों कई किलो बीजू बेहद आराम से खा जाते । छोटे बीजू आम जिसमें गुठली की साइज बड़ी होती थी। रस और रेशो से भरपूर।बचपन की याद अब लोगों को तड़पाने लगी है।

बीजू आम पर किसी का पहरा नहीं होता था। किसी के पेड़ से कोई भी व्यक्ति आसानी से आम चुनता और खाता। पेड़ मालिक इसे तोड़ने की जहमत भी नहीं उठाते। कारण था कि इसके फल बेहद छोटे और पेड़ बहुत ही बड़े होते थे। तोड़ने को कोई साहसी चढ़ता भी तो कुछ ही मिनटों में चढ़ाई उसे कमजोर कर देती।दरअसल बीजू आम आम के बीज यानी गुठलियों के द्वारा उत्पन्न किए गए पेड़ों से पाए जाते हैं। समय के साथ इसके पेड़ बेहद बड़े हो जाते हैं। आज के टिशु कल्चर और क्रॉस किए गए नर्सरी के आमों के विपरीत बीजू आम के फलन में बहुत सालों का वक्त लगता। इसके अलावा इसके पेड़ काफी जमीन भी घेरते हैं। कभी यह आम व्यवसायिक दृष्टिकोण पर खड़ा नहीं उतरा। हालांकि इस आम की लकड़ियां बेहद कामगार होती है। इसके चटनी और आचार का भी कोई जवाब नहीं होता।आज विरले ही कोई बीजू आम का पेड़ लगाया करता है। पूर्वजों का भला हो जिनके लगाए पेड़ आज भी सही सलामत कुछ जगह दिख जाते हैं पर आज के दौर में कोई बीजू को लगाने की जहमत नहीं उठाता।

ऐसा ही चलता रहा तो ही मीठे-पीले-रसीले आम भविष्य में गुमनाम हो जाएगा। जब जब जेठ की दोपहरी बचपन को सताएगी तब-तब इन रसीले फल की याद आयेगी , पर अफसोस यह आम नहीं मिलेगा। बीजू आम समाप्त होने के पीछे सबसे ज्यादा कोई कारण रहा तो वह उसके पेड़ का विशाल होना किसानों को जब आर्थिक रूप से जरूरत महसूस हुई तो सबसे पहले बीजू आम के पेड़ ही बेचे गए।

एक निवेदन

ये साईट भारतीय जीवन मूल्यों और संस्कृति को समर्पित है। हिंदी के विद्वान लेखक अपने शोधपूर्ण लेखों से इसे समृध्द करते हैं। जिन विषयों पर देश का मैन लाईन मीडिया मौन रहता है, हम उन मुद्दों को देश के सामने लाते हैं। इस साईट के संचालन में हमारा कोई आर्थिक व कारोबारी आधार नहीं है। ये साईट भारतीयता की सोच रखने वाले स्नेही जनों के सहयोग से चल रही है। यदि आप अपनी ओर से कोई सहयोग देना चाहें तो आपका स्वागत है। आपका छोटा सा सहयोग भी हमें इस साईट को और समृध्द करने और भारतीय जीवन मूल्यों को प्रचारित-प्रसारित करने के लिए प्रेरित करेगा।

RELATED ARTICLES
- Advertisment -spot_img

लोकप्रिय

उपभोक्ता मंच

- Advertisment -

वार त्यौहार