प्रधानमंत्री मोदीजी के कश्मीर में उनके आगमन और भव्य स्वागत को देख कर लगा कि अनुच्छेद 370 के हटने के बाद घाटी में अभूतपूर्व बदलाव आया है।सभी कश्मीर-वासियों में गज़ब का उत्साह था, ख़ास तौर पर युवा पीढ़ी में।
कश्मीरी के प्रसिद्ध साहित्यकार साहित्य अकादमी-अवार्ड-प्राप्त पद्मश्री अमीन कामिल (जन्म 1924,देहांत 2014)की बात याद आ रही है। छठे-सातवें दशक में मैं उनसे कश्मीर में कई बार मिला हूं। मुझे याद है कि वे हिन्दी भाषा के हिमायती थे और मुझसे अक्सर कहते थे कि जब हम कश्मीरियों ने भारत के साथ नाता जोड़ लिया है तो फिर हिन्दी को सीखने में गुरेज क्यों? कम-से-कम हमारे बच्चों को तो यह भाषा सीखनी चाहिए।
कहने का तात्पर्य यह है कि समान्यतया कश्मीर का बुद्धिजीवी, लेखक और कुछ अपवादों को छोड़कर आमजन भी समझता था कि देश की मुख्यधारा से जुड़ने में ही उनकी भलाई निहित है। यह बात अलग है कि नेतागण उनको निजी स्वार्थवश गुमराह करते रहे।