किं + नर, यानी जिनकी योनि और आकृति पूर्णतः मनुष्य की न मानी जाती हो. इनकी उत्पत्ति के सम्बंध में भिन्न भिन्न अध्यात्मिक एवं ऐतिहासिक मत है. यदि हम ऐतिहासिक तह में जाएँ तो किंनर हिमालय के आधुनिक कन्नौज प्रदेश की पहाड़ी पर निवास करने वाले लोगो का समूह था, जिनकी भाषा कन्नौरी थी. मुख्यतः ये हिमालय में रहने वाले ऐसे लोग थे, जिनमें भागौलिक और रक्तगत विशेषताओं के कारण स्त्री-पुरूष भेद आसानी से नही किया जा सकता था. अध्यात्म इनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की छाया या उनके पैर के अगूँठे से उत्पन्न हुआ मानता है और अरिष्टा एवं कश्यप को इनके आदिजनक के रूप में स्वीकार करता है. आज यदि हम ऐतिहासिक एवं पौराणिक आख्यानों का इनके मूल में जाकर एक साथ अवलोकन करें तो आसानी से समझ सकते है कि हिमालय में निवास करने वाले भगवान शिव के अवतार अर्द्धनारीश्वर के उपासक, गायन-नर्तन-वादन में पारंगत एवं प्रभु प्रदत्त अद्वितीय कला एवं गुणों वाले लोगो का समूह किन्नर था.
वर्तमान स्थिति :
आज किंनर समाज की स्थिति अत्यन्त उपेक्षित एवं दयनीय है. मुख्य धारा से बिल्कुल अलग-थलग गुजर बसर करने पर यह समाज मजबूर है. सवाल शायद आपको पसन्द न आए, पर फिर भी इसका जिम्मेदार कौन है ….???. कोई और नही, बल्कि हम लोग स्वयं ही है. यहाँ तक कि जन्म दिया हुआ माँ-बाप भी करूणा, मोह और इंसानियत को ताक पर रखकर उनको अस्वीकार कर देता है. यद्यपि हम गौर करें तो पाएगें कि इस अखिल ब्रह्माण्ड़ का प्रत्येक जीव एक पारिवारिक माहौल में पलता, बढ़ता और रहता है. मगर परमात्मा की अद्भुत कृति किंनरों के साथ बिल्कुल इसका विपरीत ही देखने को मिलता है. ऐसा क्यूँ….???
मूल का अवलोकन:
गौरतलब है कि इस अखिल ब्रह्माण्ड़ का कारण तो परमपिता परमेश्वर ही है. हम सब यहाँ निमित्त मात्र हैं. हाँ यह जरूर है कि चेतन जीव होने की वजह से हम किसी के जन्म का माध्यम तो बन सकते है, परन्तु जन्म देने वाला नहीं. जरा गौर कीजिए कि किसी का जन्म अत्यंत गरीब घर में तो किसी का अत्यंत धनवान के घर में , किसी का जन्म भारत में तो किसी का दुरूह देशों में, कोई स्त्री तो कोई पुरूष या फिर कोई किंनर आदि आदि भिन्नता में जन्म लेते हैं, तो इसमें जन्म लेने वाले की क्या गलती है ? जब हम जन्म देने वाले नहीं हैं तो किंनर होने का ख़ामियाजा देने वाले कौन है हम …??? वास्तव में हम इसके अधिकारी हैं ही नहीं.
किंनर के अद्वितीय गुणों की एक झलक:
पौराणिक मतानुसार किंनरों को आशिर्वाद देने का अद्वितीय वरदान प्राप्त है. यही वजह है कि मांगलिक कार्यों में इनके आशिर्वाद को विशेष महत्वता दी गई है. इतना ही नहीं, इनके गायन-नर्तन-वादन की अद्वितीय कला ही समय समय पर लंकापति रावण से लेकर दरबारी राजाओं तक को आकर्षित करती रही है. ऐसा कहा जाता है कि प्रतापी एवं प्रकाण्ड़ विद्वान रावण के दरबार में जब किंनरों की सुर साधना गूँजती थी तो रावण अपने इष्टदेव को भी भूल जाता था.
कुछ विशेष रोचक तथ्य :
1- अध्यात्मिक विद्वानों का कहना है कि शायद ही ऐसा कोई पुराण हो जिसमें किंनरों की चर्चा न की गई हो. इतना ही नही, श्रीमद्भागवत महापुराण में 22 बार और श्री रामचरित मानस में 7 बार किंनर शब्द की आवृत्ति हुई है.
2- श्री विष्णु सहस्त्रनाम में एक बार किंनर शब्द आता है, यानी विष्णु जी का एक नाम किंनर भी था.
3- पुरूषोत्तम श्री राम चन्द्र जी के विवाह में मंगल कामना हेतु किंनरो ने भी अपना आशिर्वाद समर्पित किया था. जिसका वर्णन मानस में तुलसी दास जी ने किया है-
“सुर किंनर नर नाग मुनीसा, जय जय जय कहि देहिं असीसा”
4- महाभारत काल में भीष्म का काल बना शिखण्ड़ी और अपने अज्ञातवास के दौरान अर्जुन ने भी किंनर रूप धारण किया था. अज्ञातवास के दौरान अर्जुन की मुलाकात एक विधवा राजकुमारी से हुई. प्रेम सम्बंध की वजह से विवाह भी करना पड़ा. जिससे अरावन नाम की एक संतान हुई. जिसे आज भी किंनर समाज अपना पति मानता है.
5- दक्षिण भारत में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने वाला अट्ठारह दिवसीय विवाह पर्व, जिसे ‘थाली’ कहा जाता है. जिसमें किंनर अरावन को अपना पति मानकर व्याह रचाते है और एक दिन बाद ही अपना सुहाग तोड़कर स्वयं को विधवा मान लेते है.
6- ज्योतिष की माने तो वीर्य की अधिकता से पुरूष तथा रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री और जब वीर्य एवं रज समान हों तो किंनर की उत्पत्ति होती है.
7- ज्योतिष का यह भी दावा है कि कुण्ड़ली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योग से व्यक्ति नपुंसक या किंनर भी हो सकता है.
8- किंनर समाज मंगलमुखी कहा जाता है क्योंकि ये सिर्फ मांगलिक कार्यों में ही हिस्सा लेते है.
9- इनके अंतिम संस्कार की प्रक्रिया गोपनीय है.
किंनरों की आधार है सच्चाई:
कहा जाता है कि जब किसी का सच्चाई आधार हो तो वास्तव में वो दुनियाँ की भीड़ से हटकर होता है. हाल ही में मुम्बई में आयोजित किंनरों को समर्पित श्रीराम कथा में किंनर अखाड़े के महामण्ड़लेश्वर श्री लझ्मी नारायण त्रिपाठी जी ने बताया कि किंनर समाज में चोरी को सबसे घोर अपराध माना जाता है और उन्होने इतिहास का जिक्र करते हुए यह भी बताया कि पंजाब स्थित गोल्ड़न टेम्पल की अस्मिता को बचाने में सैकाड़ो किंनर स्वयं सेवक बनकर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, जिसका आज भी वहाँ प्रमाण मिलता है.
बदलाव की एक नज़र:
सत्य, प्रेम, करूणा रूपी रस से जन जन को सिंचित करने वाले पूज्य श्री मोरारी बापू जी ने भगवान शिव के अवतार अर्द्धनारीश्वर स्वरूप के उपासक किंनर समाज को उनकी प्राच्य प्रतिष्ठा दिलाने के लिए निम्न बातों की पहल की.
मुख्य धारा समाज-
1- पारिवारिक परित्याग न हो.
2- सामाजिक स्वीकार हो.
3- राजकीय स्वीकार हो.
4- धार्मिक स्वीकार हो.
किंनर समाज-
1- अधिकाधिक शिक्षा ग्रहण करें.
2- आशिर्वाद रूपी प्रभुप्रदत्त वरदान को धन से न बेंचे और अनावश्यक जिद कम करें.
3- गायन-नर्तन-वादन कलाओं का भरसक विकास करें.
4- समता और एकता बनाए रखें.
किसी किंनर ने यह बिल्कुल ठीक कहा था कि साहब ! किंनर का कोई मज़हब नहीं होता, हम सब उस परमात्मा की अद्वितीय संतान हैं. निष्कर्षतः हम कह सकते है कि यदि हम सब किंनर समाज को अपनाना शुरू कर दे तो यह समाज भी हमें पूर्ण सहयोग करेगा.
नज़रिया बदलना होगा:
आज हमारे समाज की सबसे बड़ी बिड़म्बना यह है कि बदलाव हर कोई चाहता है, परन्तु इस बदलाव की शुरूआत स्वयं को न करनी पड़ें. मैं आप सब से यह पूछना चाहती हूँ कि जिस कार्य को सदियों सदियों से किसी ने न किया हो, ऐसा कार्य करने में बुराई ही क्या है …? यदि आप सचमुच बदलाव चाहते हैं तो पहले स्वयं को तो बदल कर देखिए, ज़माना न बदलने लग जाए तो कहना, हाँ यह जरूर है कि राह में अड़चनें तमाम आएँगी, अपमान का घूँट पीना पड़ेगा परन्तु हार न मानिएगा, एक दिन यही लोग आपको अपना आदर्श भी बनाएगें.
आज सिर्फ हमारी वजह से हमारा किंनर समाज उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर है. यह कितने शर्म और दुःख की बात है. खैर आज तक जो हुआ सो हुआ, अब हमें अपने बीते कल को छोड़कर सम्मान की नज़रों से किंनर समाज को अपने साथ जोड़ने का हर सम्भव प्रयास करना होगा. भला इतना इमानदार और प्रभुप्रदत्त अद्वितीय गुणों वाला समाज आज तक उपेक्षित है, ऐसा क्यूँ….?? जरा सोचिए, उन्होंने किंनर योनि में जन्म लेकर ऐसी क्या गलती की, जिसका खाँमियाज़ा आज तक उन्हे भुगतना पड़ रहा है ? विनम्र निवेदन बस इतना है कि हम सब अपनी मानसिकता बदलकर किंनर समाज को अपनाएँ, तभी इस राष्ट्र का समग्र विकास सम्भव होगा.
लेखिका परिचय –
“अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं । पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है । लेखिका द्वारा समाज के अन्तिम जन के बेहतरीकरण एवं जन जागरूकता के लिए हर सम्भव प्रयास सतत् जारी है ।”
सम्पर्क – shalinitiwari1129@gmail.com