जब 10 नवंबर 2014 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरेश प्रभु जैसे व्यक्ति को मंत्रिमंडल में जगह ही नहीं दी बल्कि उन्हें रेलवे जैसा एक सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा तो देश में हर कोई यह सोच कर हैरान हुआ कि भारतीय जनता पार्टी में एक से बढ़कर एक अनुभवी और क़ाबिल नेता हैं, फिर प्रधानमंत्री ने ऐसा निर्णय क्यों लिया।
सबसे सफल रेल मंत्री साबित हो रहे सुरेश प्रभु ने कालांतर में साबित कर दिया कि प्रधनमंत्री नरेंद्र मोदी पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी जैसे ही दूरदर्शी और अनुभव की परख रखने वाले विश्वनेता हैं और उन्होंने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की अहम सहयोगी शिवसेना की नाराज़गी मोल लेकर सुरेश प्रभु को मंत्रिमंडल में शामिल करके बहुत सही क़दम उठया था।
गौरतलब है कि शिवसेना के एक से एक बढ़कर एक धाकड़ नेताओं को नज़रअंदाज करके तात्कालिक प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने भी अपने करीब छह साल के कार्यकाल के दौरान सुरेश प्रभु को अपने मंत्रिमंडल में जगह ही नहीं दी बल्कि उन्हें उद्योग मंत्रालय, भारी उद्योग मंत्रालय, वन एवं पर्यावरण मंत्रालय, ऊर्वरक एवं रसायन मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय जैसे विभाग सौंपें।
यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि सुरेश प्रभु अटल बिहारी वाजपेयी के आंखों के तारे थे। इसीलिए अटलजी ने सुरेश प्रभु को देश की सभी नदियों को जोड़ने की अपनी महत्वकांक्षी योजना टॉस्कफोर्स ऑफ़ इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर्स का चेयरमैन नियुक्त किया था। सुरेश प्रभु को विश्वबैंक ने विश्व बैंक संसदीय नेटवर्क का सदस्य चुना था और उन्हें दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय समूह का चेयरमैन बनाया था। एशिया वीक ने सुरेश प्रभु को भारत के तीन ‘फ्यूचर लीडर ऑफ़ इंडिया’ में चुना था।
बहुत कम लोगों को पता होगा कि शिवसेना प्रमुख दिवंगत बालासाहेब ठाकरे सुरेश प्रभु की प्रतिभा के कायल थे। कोंकण के एक से एक धाकड़ नेताओं की दावेदारी को नकारते हुए बालासाहेब ने सुरेश प्रभु को 1996 लोकसभा चुनाव में शिवसेना का उम्मीदवार बनाया और सुरेश प्रभु लोकसभा में पहुंचे।
11 जुलाई 1953 को मुंबई में जन्मे सुरेश प्रभु की आरंभिक पढ़ाई देश को सचिन तेंदुलकर जैसे कई नामचीन क्रिकेटर देने वाले दादर के शारदाश्रम हाईस्कूल में हुई। सुरेश प्रभु की गणना असाधारण प्रतिभा वाले छात्रों में होती थी। शारदाश्रम से शिक्षा लेने वाले सुरेश प्रभु बाद में विले पार्ले के एमएल डहाणुकर कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक किया और मुंबई के न्यू लॉ कॉलेज (रूपारेल कॉलेज कैंपस) से क़ानून की डिग्री हासिल की। इतना ही नहीं चार्टर्ड अकाउंटेंट की परीक्षा में उन्होंने 11 वीं रैंक हासिल की थी। बाद में वह देश में सबसे सफल चार्टर्ड अकाउंटेंट बने। वह दि इंस्टिट्यूट ऑफ़ चार्टर्ड अकाउंट ऑफ इंडिया के सदस्य हैं।
आज सुरेश प्रभु की तुलना नरेंद्र मोदी मंत्रिमंडल के सबसे सफल मंत्रियों में हो रही है। अपनी बात के वह इतने पक्के हैं कि अगर कह दिया कि आपके कार्यक्रम में आएंगे तो समझ लिजिए वह ज़रूर आएंगे। वह चाहे जितने भी व्यस्त क्यों न हों।
आइए आपको बताते हैं उनके बीते एक हप्ते की दिनचर्या
यह तो सबको पता ही होगा कि 23 जून यह जनसंघ के संस्थापक डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस है। इसी 23 जून को सुरेश प्रभु मंत्रालय का कामकाज निपटाकर सुबह 11.30 बजे दिल्ली के इंदिरागांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पहुंचते हैं। वहां से वह गोवा (पणजी) के लिए रवाना होते हैं। पणजी में उनकी फ्लाइट 1.30 बजे लैंड होती है। वहां से वह सड़क के रास्ते सिंधुदुर्ग के कुडाल के लिए रवाना होते हैं और डेढ़ घंटे की यात्रा करके कुडाल पहुंच जाते हैं और वहां 3.30 बजे मुंबई गोवा हाइवे के चार लेन करने की परियोजना के भूमिपूजन समारोह में केंद्रीय भूतल मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ शामिल होते हैं।कुडाल यह सुरेश प्रभु का पैतृक निवास है। वहां कार्यक्रम ख़त्म होते ही वह कुडाल अपने गृहनगर पहुंचते हैं और 4.40 बजे कुडाल में अपने एनजीओं, जिसे उनकी पत्नी उमा प्रभु चलाती हैं, जन शिक्षण संस्थान की नई इमारत का शिलान्यास (फाउंडेशन स्टोन) समारोह में शामिल होते हैं।समारोह की भव्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस समारोह में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस , नीतिन गडकरी,रामदास आठवले, अनंत गीते समेत अनेक केंद्रीय मंत्रियों और प्रदेश के मंत्रियों के अलावा शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे व उनकी पत्नी रश्मि ठाकरे समेत कुल 18 विशिष्टजन मंच पर उपस्थित थे। यहाँ प्रभु की सामाजिक संस्था ‘मानव संसाधन विकास संस्था’ रोजगारपरक शिक्षा का केंद्र बना रही है। कोकण के नवयुवकों को स्किल डेवलॅपमेंट से जोड़ने , उन्हें स्वरोजगार की शिक्षा देने और उन्हें बाजार उपलब्ध कराने के लिए सुरेश प्रभु की सहधर्मिणी उमा प्रभु का समर्पण देखते ही बनता है।
कुडाल से वह फिर पणजी के लिए रवाना होते हैं और पणजी में विमान से शाम को कालीना एयरपोर्ट उतरते हैं। वहां से वह वरली के एनएससीआई में रात 8.30 बजे एक सामाजिक कार्यक्रम में शिरकत करते हैं। वरली से फिर अपने खार स्थित घर पहुंचते हैं और रात्रि विश्राम करके 24 जून को सुबह 9 बजे मुंबई एयरपोर्ट पहुंचते हैं और वहां से चेन्नई के लिए रवाना होते हैं। चेन्नई में 12 बजे पालखीवाला फॉउंडेशन स्मारक -रेलवे – विकास का इंजिन विषय पर व्यख्यान देते हैं और 2 बजे चेन्नई में ही एक कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि हिस्सा लेते हैं। वहां से वह एक प्रोग्राम के लिए चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पहुंचते हैं और रेल विभाग के कार्यक्रम में शिरकत करते हैं ।शाम को 5.30 बजे चेन्नई चेंबर ऑफ कॉमर्स के प्रोग्राम में शामिल होते हैं।इन दो दिनों में केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक , वैश्विक विषयों पर बड़ी सहजता से अपनी बात रखते हैं और अपने मंत्रालय के कामकाज को भी निपटाते हैं,साथ ही विभागीय कामों को सामाजिक सरोकारों से जोड़कर सामान्य जनता के प्रति अपने जुड़ाव का भी प्रकटीकरण करते हैं।देर रात वह मुंबई के लिए रवाना होते हैं।
25 जून को वह मुंबई में कई लोकल प्रोग्राम और रेलवे के कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं। रात अपने घर में ही ठहरते हैं। सुरेश प्रभु की एक विशेषता और भी दिखी कि वे तामझाम से दूर रहते हैं। पूर्ववर्ती सरकारों के मंत्रियों को अक्सर अपने परिवार के लोगों का विशेष ध्यान रखने का हुक्म देते देखा गया है,लेकिन हमने सुरेश प्रभु को अपने अधिकारियों को फोन करते देखा है और यह भी कहते सुना है कि आज मेरी पत्नी उमा कुडाल जा रही है तो ध्यान रखना कि उसे केंद्रीय मंत्री की पत्नी को मिलनेवाली सुविधा की बजाय सांसद की पत्नी को मिलनेवाली सुविधा उपलब्ध करायी जाये।उन्हें पता है कि मंत्री के नाते पत्नी को विशेष सुविधा यदि मिली तो यह पारदर्शी सरकार की नीतियों के विरुद्ध होगा। इसलिए हम कह सकते हैं कि देश बदल रहा है ।
इतिहास में 26 जून को काले दिन के रूप में जानते हैं। 26 जून की सुबह लोग इसलिए भी याद रखते हैं क्योंकि इसी की पिछली रात को 1975 में तात्कालिन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू किया था। आपातकाल की विभीषिका को याद करने के लिए मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार ने एक बहुत बड़े समारोह का आयोजन किया था।
मुंबई बीजेपी द्वारा 26 जून को सुबह 10 बजे दादर में आयोजित इस समारोह में सुरेश प्रभु बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित होते हैं। आपातकाल के दर्द का जब वे वहां उल्लेख करते हुए परत दर पर खोलते हैं तो नई पीढ़ी जिसने यह दर्द सहा नही है उसके सामने जुल्म सितम की काली दास्ताँ आखों के सामने तिर जाती है। जेपी आंदोलन से लेकर संघ की भूमिका तक , पटना से लेकर पुणे तक और देश भर में आपातकाल के विरोध में हुए उग्र आंदोलन और उसके बाद विरोधियों को मिली जेल यातना का पूरा वर्णन सुरेश प्रभु करते हैं। आपातकाल के दौरान विद्यार्थी रहे नन्हें सुरेश प्रभु ने किस तरह इस जुल्म के विरोध में खार भर में पत्रक बांटे थे,उसका भी हल्का सा जिक्र करते हैं।रस्ते में इलेक्ट्रॉनिक मिडिया के कुछ साथी इस मंत्री के सामने आपातकाल पर आई मधुर भंडारकर की फ़िल्म के सम्बन्ध में प्रश्न दागते हैं कि विपक्षी कह रहे हैं कि यह फ़िल्म भाजपावालों ने बनवायी है। पर सधे हुए नेता की तरह प्रभु उत्तर देते हैं कि भाजपा का काम स्क्रिप्ट लिखना नहीं है और न ही फ़िल्म बनाना उसका पेशा है। भाजपा देश में सुचिता की राजनीति करने आई है।और वह पूरी ईमानदारी से कर रही है।
समारोह से निकलते वक्त केंद्रीय मंत्री भाजपा कार्यकर्ता बन जाते हैं और छोटे छोटे कार्यकर्ताओं के साथ फोटो सेल्फ़ी लेने के उनके निवेदन को अहमियत देना नही भूलते। रेल सुधार के लिए दिए गए ज्ञापन को भी लेकर अपने सचिव को कार्यवाही के लिए देते हैं।शाम को 5.30 बजे कमला मिल कंपाउंड में प्रोग्राम में गेस्ट ऑफ ऑनर होते हैं। यहां वे देश के अर्थ शास्त्रियों से मिलते हैं और वित्तीय मामलों की अच्छी समझ रखनेवाले रेलमंत्री सरकार का पक्ष रखते हैं।वहां उसी रात में मुंबई से दिल्ली के लिए रवाना हो जाते हैं।
दूसरे दिन घर पर ही अलसुबह रेल अधिकारीयों का जमावड़ा होता है और मंत्री रेल सम्बन्धी फाइलों को निबटाते हैं। 27 जून को सुबह दिल्ली से लेह पहुंचते हैं। लेह में 4 बजे एक शिलान्यास प्रोग्राम में हिस्सा लेते हैं और पर्वतों के बीच रक्षा मंत्रालय के सहयोग से एक लाख करोड़ की लागत से शुरू इस नई परियोजना की शुरुवात करते हैं। विलासपुर तक रेल लाईन है और उसके बाद मनाली के रास्ते लेह तक बाहर ही बाहर रेल लाईन बने इस महत्वाकांक्षी योजना का शिलान्यास होता है। डिफेंस को इस मार्ग का बड़ा उपयोग होना है।
श्री प्रभु लेह में ही रात्रि विश्राम करते हैं क्योंकि लेह से रात को श्रीनगर की फ्लाइट नहीं होती। अलसुबह वह श्रीनगर आते हैं। श्रीनगर में 28 जून को राज्यपाल से मुलाकात करते हैं और मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ्ती के डिनर प्रोग्राम में शिरकत करते हैं।जहां मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती उनके काम से सन्तुष्टि जताती हैं और उन्हें बार बार जम्मू व कश्मीर आने की दावत देती हैं।यह याद दिलाना नही भूलती कि सुरेश प्रभु के आने से उनके राज्य को कई रेल परियोजनाएं मिली हैं। 29 जून को वह श्रीनगर से सुबह सुबह अमरनाथ जाते हैं और अमरनाथ यात्रा करके पवित्र गुफा में भोलेनाथ के समक्ष मत्था टेकते हैं।
अमरनाथ से हेलिक़प्टर से काजीगुंड पहंचते हैं। वहां 10 बजे काजीगुंड-बारामुला रेल परियोजना के प्रोग्राम में हिस्सा लेते हैं। यहां यह बता दें कि काजीगुंड से बारामुला के बीच जिन पांच नए स्टेशनों की वे आधारशिला रखते हैं वे पूर्व मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद का स्वप्न था और जिसकी मांग एक दिन पहले ही मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती ने रेलमंत्री से किया था। और रेलमंत्री तत्काल इस पर अमल करते हैं।उसके बाद वह दिल्ली लौटते हैं। दिल्ली में ठहरते नहीं, बल्कि मुंबई के लिए रवाना होते हैं और मुंबई के यशवंतराव चव्हाण सेंटर में 4.30 बजे एक प्रोग्राम में शिरकत करते हैं। उसी दिन शाम को 5.30 बजे इडिंयन मर्चेंट चेंबर में एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होते हैं। अत्यंत शीतल कश्मीर की वादियों से निकल कर तपते दिल्ली में आना और वहां से निकल कर उमस भरी मुंबई के कार्यक्रमों में शिरकत करनेवाले प्रभु की सेहत पर कोई असर नही दिखा। क्योंकि वे सिर्फ योगा डे पर योग नही करते बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह रोज सुबह योग का अभ्यास करते हैं जो उन्हें दक्ष भी बनाता है और स्वस्थ भी बनाता है।30 जून की सुबह वह दिल्ली रवाना होते हैं।
कमोवेश देश के अधिकतर मंत्री इसी तरह व्यस्त होंगे पर सुरेश प्रभु की यह व्यस्तता और हर विषय पर बेबाकी से तर्कपूर्ण बात रखने के साथ रिजल्ट ओरिएंटेड काम करना उन्हें अलग व्यक्तित्व का मंत्री बनाता है।एक सप्ताह का लेखा जोखा देने का उद्देश्य मात्र इतना है कि सुरेश प्रभु की दिनचर्या रोज ही इसी तरह की है।अपनी इसी दक्षता के चलते सुरेश प्रभु रेल विभाग को चुस्त दुरुस्त करने में रत हैं।
(लेखक मुंबई बीजेपी के प्रदेश महामंत्री हैं।)