लंबे समय से कोटा में निवास करने पर भी कभी ध्यान में नहीं आया कि हमारे ही शहर में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मुद्राशास्त्री शैलेश जैन ऐसी प्रतिभा है जो पिछले कई वर्षों से प्राचीन सिक्कों की लिपि पढ़ने में निपुण है। इनके बारे में विगत शुक्रवार को मेरे मित्र अख्तर खान अकेला ने कलेक्ट्री परिसर में मिलने पर कहा आज कल आप साहित्यकारों , इतिहासकारों और कलाकारों पर पिछले कई दिनों से नियमित लिख रहे हैं, हमारे एक वकील साहब शैलेश जी हैं जो पुराने सिक्कों की लिपि पढ़ने में देश भर में मशहूर हैं उन पर भी लिखिए कुछ। इतिहास का अध्ययेता होने से मेरी रुचि का विषय था सो मैंने कहा एक बार उनसे मिलवाओ। तत्काल उन्होंने मोबाइल पर कॉल कर मेरी बात करवाई। उन्होंने भी मुझ से मिलने में पूरी रुचि दिखाई और रविवार 13 अगस्त को सुबह 11 बजे मोदी कॉलेज रोड पर स्थिति उनके निवास पर मिलने का समय निश्चित हो गया।
रविवार को तय समय पर जब पहुंचा तो उन्हें घर के बाहर ही इंतज़ार करते पाया। मेरे आने का मंतव्य उन्हें पता ही था अतः बिना कोई भूमिका बनाए वे सीधे मूल विषय पर आते हुए बताने लगे प्राचीन काल में जब मुद्राएं नहीं थी वस्तु के बदले वस्तु ही विनिमय का माध्यम था। सिक्कों का चलन करीब 2600 साल पहले 600 ई .पू. मौर्य के समय से कोई 200 साल पहले हुआ। भारत में जो सिक्के प्रचलन में रहे वे अधिकतर तांबे, चांदी और सोने के रहे हैं। गुप्त काल जिसे इतिहास में स्वर्ण काल माना जाता है सिक्कों की भाषा ब्राह्मी लिपि थी। सातवीं सदी में कश्मीर में संस्कृत लिपि के सिक्के मिले हैं। कुछ मुस्लिम शासकों ने भी आमजन की भाषा संस्कृत होने से अपनी पहचान के उद्देश्य से सिक्कों पर संस्कृत लिपि का उपयोग किया। सिक्के सर्वधर्म समभाव की भावना को भी दर्शाते हैं।
अकबर ने 1584 में दिन- ए – इलाही धर्म की स्थापना की और अंतिम वर्ष 1604 में सोने चांदी के सिक्के जारी किए जिसमें एक तरफ राम हाथ में धनुष लिए हैं और माता सीता हाथ में पुष्प लिए हैं। नागरी लिपि में राम सिया अंकित है। सिक्के के दूसरी ओर जारी करने का इलाही 50 और महीना अंकित है। सोने की आधी मोहर दिल्ली राष्ट्रीय संग्रहालय में तथा चांदी का आधा सिक्का बनारस के भारत कला भवन में सुरक्षित है। मोहमद गौरी ने भी धन की देवी लक्ष्मी पर एक सोने की मुद्रा जारी की थी। कई शासकों मौर्यों, चौहान एवं विजय नगर साम्राज्य के शासकों ने भी राम के सिक्के जारी किए थे। मध्य काल में नागरी भाषा के सिक्के भी चलन में थे। सिक्कों पर उर्दू, अरबी, फारसी भाषा की लिपियों का अंकन खूब हुआ है।
सिक्कों के इतिहास की प्रारंभिक जानकारी के बाद मैंने बीच में ही उनके प्रवाह को बाधित करते हुए प्रश्न किया आप ये बताएं कि आपको सिक्कों के संग्रह और उनकी लिपि पढ़ने की रुचि कैसे जागृत हुई ? उन्होंने बताया कि वे बारां जिले के मंगरोल के रहने वाले हैं और उनके दादा जी स्व. रखब चंद जैन के पास कई सिक्के थे। बचपन से देखते-देखते इन सिक्कों से लगाव हो गया और जब समझने लगा तो इन पर लिखी इबारत पर ध्यान गया। मन में इसे पढ़ने का विचार आया पर कुछ समझ नहीं पाता था। जब कोटा में वकील बना तो जो वकील उर्दू जानते थे उनसे उर्दू लिपि पढ़वाता था, इधर- उधर भटकता था। इसमें मुझे बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता था ,वे पढ़ने के लिए अपना समय बताते थे , जिस से मेरा काफी समय बर्बाद होता था।
शैलेन भंडारे गुरु :
इस समस्या के समाधान के लिए मैंने काफी परिश्रम कर सिक्कों की समस्त लिपियों को स्वयं पढ़ना सीख लिया और साथ ही इतिहास भी पढ़ा। इन्होंने लंदन के ऑक्सफोर्ड म्यूजियम के प्रमुख क्यूरेटर शैलेन भंडारे को अपना गुरु बनाया और सिक्को को पढ़ने की बारीकियां और सिक्को के इतिहास आदि के बारे में ज्ञान प्राप्त किया। बताते हैं जब कभी कोई समस्या आती हैं तो इनके माध्यम से संपर्क कर निराकरण करते हैं।
आज स्थिति यह है कि पिछले 10 वर्षों से कोटा और राजस्थान के साथ – साथ देश भर में लोग सिक्कों की लिपि पढ़वाने के लिए संपर्क करते हैं। ये आज सिक्कों की भाषा पढ़ने वाले देश के विख्यात मुद्राशास्त्री बन गए हैं। आज ये सिक्के की किसी भी लिपि को पांच मिनट से भी कम समय में पढ़ कर उसकी पूरी जानकारी प्रदान करने में पूर्ण अधिकृत हस्ताक्षर बन गए हैं।
दुर्लभ संग्रह :
आपके पास दुर्लभ सिक्कों की कोई कमी नहीं है और आपके संग्रह में कोई भी ऐसा शासक नहीं है जिस के काल के सिक्के इनके पास नहीं हो। यही नहीं सिक्के पढ़ने की विद्या से ये अनेक लोगों को शिक्षित भी कर चुके हैं। इन्होंने 2015 में ” हाड़ोती कॉइंस सोसायटी” का गठन किया। इन्होंने महसूस किया कि लोगों में लिपि सीखने की जिज्ञासा कम है, केवल उसके बारे में जानना चाहते है कि सिक्के पर लिखा क्या है ? तीन साल बाद इन्होंने इसे बंद कर दिया। परंतु लोगों के पुनः आग्रह पर दो साल पूर्व पुनः” कोटा कॉइंस सोसायटी” के नाम से शुरू की। जो कोई भी लिपि सीखना चाहता है ये उसे अवश्य सिखाते हैं।
इन्होंने बताया कि आज विश्व स्तर पर सोशल मीडिया के माध्यम से इस विषय पर हजारों ग्रुप बने हुए हैं। आप न केवल सिक्कों की लिपि पढ़ते हैं वरन उनके ऐतिहासिक संदर्भों को ले कर आलेख भी लिखते हैं जो किसी शोध से कम नहीं होते हैं। आपके 100 से अधिक खोजपूर्ण आलेख देश – विदेश के अनेक जर्नल्स, पत्रिकाओं और विदेशों की सोशल मीडिया साइट्स पर प्रकाशित हुए हैं। उनके पास एकत्रित जहाँगीर के सिक्के ” एंड्रू लिङले ” द्वारा प्रकाशित पुस्तक ” कॉइन्स ऑफ़ जहाँगीर ” में प्रकाशित हुए । पूना से प्रकाशित जर्नल ” एन आए जी ”का एडवोकेट शैलेश को संपादक बनाया गया जिसमें वह अपने लेखों द्वारा सिक्को की जानकारी दे रहे हैं ।
खोज :
इन्होंने जयपुर के सिक्कों पर 13 प्रकार के मोर खोजे हैं। कुंभलगढ़ का एक सिक्का जो अपने आप में पहला है उस पर एक ओर जैन धर्म से संबंधित अंकन है तथा दूसरी और कुंभलमेरू लिखा है पर इनका लेख लंदन के एक जरनल में प्रकाशित हुआ है। कोटा, झालावाड़, के सिक्कों नागौर शरीफ के पंच पीर के मिले एक सिक्के के अध्ययन कर शोध किया है। ये तो कतिपय उद्धाहरण हैं, ऐसी अनगिनत कहानियां हैं। आपने एक वर्ष पूर्व अपने द्वारा खोजे गए प्राचीन सिक्को की विशाल प्रदर्शनी का आयोजन कोटा में किया था, जिसमें 50 से ज्यादा नाग वंश, 50 से ज्यादा रामगुप्त और लगभग 100 से ज्यादा अन्य जिनमें मुगल, स्टेट आदि शामिल थे के सिक्को का प्रदर्शन किया गया था। इस मुद्रा प्रदर्शनी के प्रति कोटा वासियों में अच्छा रुझान देखा गया। आपकी पीड़ा है कि कोटा राजकीय संग्रहालय के भंडार में रखे सिक्के प्रदर्शित किए जाएं।
पुस्तक लेखन :
गुप्त काल में समुद्र गुप्त के लड़के रामगुप्त जो कुछ समय के लिए शासक रहा उसके समय के ब्राह्मी लिपि के 35 से 40 सिक्कों पर और नागवंश के सिक्के जो तांबे के हैं , एक – एक, दो – दो ग्राम के बिंदिया के आकार के छोटे – छोटे सिक्के हैं,जिन पर राजा का नाम लिखा है इनके अध्ययन पर दो अलग-अलग पुस्तकें लिख रहे हैं।
सम्मान
पिछले वर्ष अंतर्राष्ट्रीय ग्रुप न्यूमिस्मेटिक इनफार्मेशन गेलेरी द्वारा शैलेश जैन को “न्यूमिस्मेटिस्ट आफ द इयर” सम्मान से सम्मानित किया गया । आपको समय – समय पर अन्य संस्थाओं द्वारा भी सम्मानित किया गया है।
परिचय
अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुद्राशास्त्रियों के मध्य अपनी पहचान बनाने वाले शैलेश जैन का जन्म 6 अगस्त 1967 को बारां जिले के मंगरोल में पिता स्व. प्रेम चंद जैन और माता विजिया जैन के आंगन में हुआ। आपकी 10 वीं तक की शिक्षा मंगरोल में ही हुई। इसके बाद आप कोटा आ गए और 1987 में विज्ञान विषय में बी. एससी.कर 1991 में एल.एल. बी. किया। जनवरी 1992 में आपने वकलात कदम रखा। आप अपने समस्त पारिवारिक दायित्वों का निर्वाह करते हुए अपने मुद्राओं के शोक को बरकरार रखे हुए हैं।
संपर्क मोबाइल : +91 94141 76904
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(डॉ.प्रभात कुमार सिंघल ऐतिहासिक विषयों , राजस्थानी संस्कृति और राजस्थान की छुपी प्रतिभाओं पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)