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‘यह मेरे जीवन के आदर्शों-सिद्धांतों का सम्मान’; भारत रत्न की घोषणा के बाद भावुक हुए लालकृष्ण आडवाणी

भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा है कि देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न मिलना केवल उनका ही सम्मान नहीं बल्कि उनके जीवन के आदर्शों-सिद्धांतों का भी सम्मान है। केंद्र सरकार ने शनिवार को सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा के शिल्पी आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न देने का एलान किया। जिसके बाद से तमाम भाजपा नेताओं ने खुशी की लहर है। पीएम मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर तस्वीर साझा करते हुए इस फैसले की जानकारी दी।

‘भारत रत्न’ की घोषणा के बाद सीएम योगी, नीतीश कुमार, मनोहर लाल खट्टर समेत कई केंद्रीय मंत्रियों ने इसे खुशी का क्षण बताया। लालकृष्ण आडवाणी ने सम्मान पर कहा कि यह मेरे लिए गौरवान्वित करने वाला पल है। वहीं भारत रत्न के एलान के बाद 96 वर्षीय लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, “मैं अत्यंत विनम्रता और कृतज्ञता के साथ इस सम्मान को स्वीकार करता हूं। यह न केवल एक व्यक्ति के रूप में मेरे लिए सम्मान है, बल्कि उन आदर्शों और सिद्धांतों का सम्मान है जिनकी मैंने अपनी पूरी क्षमता से जीवनभर सेवा की है।”

आडवाणी ने कहा, “आदर्श वाक्य ‘यह जीवन मेरा नहीं है, यह मेरे राष्ट्र के लिए है’ ने मुझे प्रेरित किया है। आज मैं पंडित दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे शिखर पुरुषों को कृतज्ञतापूर्वक याद करता हूं, जिनके साथ मैंने काम किया है। साथ ही उन्होंने इस सम्मान के लिए राष्ट्रपति द्रौपद्री मुर्मू, पीएम मोदी का आभार व्यक्त किया है। उन्होंने अपने परिवार के सभी सदस्यों, अपनी दिवंगत पत्नी कमला के प्रति अपनी गहरी भावनाएं व्यक्त करता हूं।”

सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिए नाम की घोषणा के बाद लालकृष्ण आडवाणी ने घर से हाथ हिलाकर लोगों और मीडियाकर्मियों का अभिवादन किया। इस दौरान इनकी बेटी प्रतिभा आडवाणी भी उनके साथ नजर आ रही है। लालकृष्ण आडवाणी के बेटी प्रतिभा ने उन्हें मिठाई खिलाकर मुंह मीठा किया, साथ ही गले लगाकर उन्हें बधाई दी।

लालकृष्ण आडवाणी का जन्म पाकिस्तान के कराची में 8 नवंबर 1927 को एक हिंदू सिंधी परिवार में हुआ था। आडवाणी की शुरुआती शिक्षा कराची के सेंट पैट्रिक हाई स्कूल से हुई थी। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद आडवाणी का परिवार पाकिस्तान छोड़कर भारत के मुंबई में आकर बस गया। आडवाणी विभाजन से पहले से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े थे और भारत आने के बाद वे आरएसएस के प्रचारक बन गए। आरएसएस के साथ उन्होंने राजस्थान में काम किया। साल 1957 में आडवाणी जनसंघ के लिए काम करने के लिए दिल्ली आ गए। दिल्ली में आडवाणी अटल बिहारी वाजपेयी के घर में ही रहे थे।