नौकरी की बाध्यता की वजह से सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं पर सफलता की कहानियां , लेख, गांवों के विकास की कहानियां, साक्षात्कार बड़े परिमाण में लिखे। व्यक्तिगत रुचि के रहते इतिहास,पुरातत्व,कला, संस्कृति और पर्यटन पर भी खूब लिखा। अमूमन देश की सभी प्रमुख पत्र – पत्रिकाओं ने निरंतर प्रकाशित कर लिखने का मेरा हौंसला बढ़ाया। तीन साल पहले एक दिन अचानक एक फोन आया। उधर से परिचय देते हुए कहा गया मैं जितेंद्र निर्मोही बोल रहा हूं साहित्यकार हूं।
मैंने उनको प्रणाम कर पूछा कहिए आदरणीय। वे बोले ज्ञान भारती का एक पुरस्कार कार्यक्रम है आपको अध्यक्षता करनी है। मैने कहा सर मैं तो साहित्यकार नहीं हूं,आप मुझे क्यों बुला रहे हैं, किसी और को बुलाए । कहने लगे आप क्या हैं मैं जानता हूं, आपको आना ही है हमारी समिति का निर्णय है। सेवा काल में भी मैं कई साहित्यिक कार्यक्रमों में कवरेज करने गया था। उनका आग्रह था, मेरा भी अध्यक्षता करने का पहला मौका था, सोचा चलो देख लेते हैं क्या होता है सो मैने स्वीकृति प्रदान कर दी। उन्होंने जगह बताई और कहा आप यहां आ जाना मैं लेने आ जाऊंगा। वीआईपी तो मैं था नहीं अतः मैंने उनको कहा सर आप तकलीफ न करें मैं स्वयं ही पहुंच जाऊंगा। उनकी सहजता और सरलता ने मेरे दिल में जगह बनाली।
नियत तिथि को नियत समय पर मैं कार्यक्रम में पहुंच गया। करीब 40 – 45 साहित्यकारों की उपस्थिति में पुरस्कार वितरण समारोह स्वागत सम्मान और भाषणों के साथ संपन्न हुआ। वक्ताओं का मुख्य फोकस राजस्थानी भाषा पर रहा। मेरा पहला अवसर था राजस्थानी भाषा पर वक्तव्यों को सुनने का। सोच रहा था राजस्थान में तो कई क्षेत्रीय भाषाएं बोली जाती हैं, फिर किस भाषा को राजस्थानी माने। पता चला ये मारवाड़ क्षेत्र की मायड़ भाषा को राजस्थानी भाषा कह रहे हैं और उसे मान्यता दिलाने की बात कर रहे हैं। मन ही मन मैंने न जाने क्या सोच कर लेखक होने के नाते एक निर्णय किया।
जब मुझे मंच पर बुलाया गया तो अपने निर्णय की जानकारी देते हुए कहा मेरा मन है हाड़ोती के साहित्यकारों के व्यक्तित्व और कृतित्व पर कुछ लिखूं। सब ने इसका पुरजोर स्वागत किया। उत्साह देख मैंने इस विषय पर एक पुस्तक लिखने की घोषणा कर दी और सभी से अपना – अपना परिचय भेजने और मित्र साहित्यकारों को इस निर्णय से अवगत कराने का आग्रह किया। समारोह के उपरांत सभी ने इस निर्णय के लिए शुभकामनाएं दी।
मेरी घोषणा केवल मजाक बन कर न रह जाए अतः पूरी रूप रेखा बनाई और यह सोच कर की कहीं पर्याप्त सहयोग नहीं मिला तो इसमें इतिहास, कला, संस्कृति, समाज सेवा आदि अन्य प्रतिभाओं को भी शामिल कर सूचना जारी कर दी। बस यही वो पल था जिसने मुझे साहित्य और साहित्यकारों से जोड़ दिया। मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब परिचय आने लगे। परिचय तैयार कर सोशल मीडिया पर डाले, समाचार पत्रों और हिंदी समाचार पोर्टल में प्रकाशित हुए तो माहोल ऐसा बना की साहित्यकारों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
मैंने भी अपनी तरफ से परिश्रम कर विविध क्षेत्रों की प्रतिभाओं के परिचय मंगवाए, जो कारण वश हाड़ोती के बाहर जा कर अपनी प्रतिभा से हाड़ोती का नाम रोशन कर रहे थे। करीब डेढ़ वर्ष की मेहनत का सुफल सामने आया और हाड़ोती की 63 साहित्यिक एवं विविध क्षेत्रों की 36 कुल 99 प्रतिभाओं के व्यक्तित्व एवं कृतित्व तैयार हो चुके थे। सभी के सहयोग से ” जियो तो ऐसे जियो” पुस्तक का प्रकाशन हुआ जिसकी चर्चा हर एक की जुबान पर थी।
पुस्तक के लोकार्पण समारोह में निर्मोही जी ने मुझे पकड़ लिया और आग्रह किया कि अब आप हाड़ोती में महिला रचनाकारों के साहित्यिक अवदान पर पुस्तक लिखें। मेरा भी होंसला बढ़ गया था सो मैंने भी बिना सोचे समझे उनके आग्रह को स्वीकार कर कार्यक्रम में ही इस विषय पर पुस्तक लिखने की घोषणा कर दी। पुस्तक को यद्यपि एक साल अवधि में लिखना था पर महिला रचनाकारों के अपार उत्साह से यह पुस्तक चार माह में ही लिखी जा कर प्रकाशन के लिए भेजी जा चुकी है। मुझे खुशी है ” नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान” पुस्तक में हाड़ोती की 81 महिला रचनाकार प्रतिभागी बनी हैं और इन्हीं के सहयोग से इसका प्रकाशन हो रहा है।
पुस्तक में निर्मोही जी के साथ – साथ साहित्यकार विजय जोशी, रेखा पंचोली, स्नेह लता शर्मा, डॉ. कृष्णा कुमारी और शमा फिरोज़ जी का उल्लेखनीय योगदान रहा। सभी प्रतिभागी महिला रचनाकारों के अपार उत्साह ने मुझे दुगनित उत्साह से लबरेज कर दिया।
बात यहीं रुकी नहीं, आगे चली। एक दिन निर्मोही जी का व्हाटअप पर संदेश आया अब राजस्थान के साहित्यकारों पर लिखेंगे। मैंने जवाब दिया सर बहुत हो गया अब हिम्मत नहीं है। उनका जवाब आया ” दोनों हिम्मत वाला पिक्चर देखने चलेंगे “। एक बार तो हंसी आ गई उनके लाजवाब पर। बात हास्य व्यंग्य में आई गई हो गई। कुछ दिन बाद अचानक विचार आया क्यों न जियो तो ऐसे जियो का भाग दो निकला जाए। निर्मोही जी की बात भी रह जायेगी। विचार के साथ ही शुरू हो गई इसकी तैयारी। उनके साथ – साथ सलूंबर से विख्यात बाल साहित्य डॉ. विमला भंडारी, उदयपुर से मंजु चतुर्वेदी, रागनी, मीनाक्षी अजमेर से वर्षा नालमे, मधु खंडेलवाल, जयपुर से गोपाल शर्मा प्रभाकर, व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी एवं जयपुर से हिमांशु वर्मा,कोटा से विजय जोशी, डॉ.शशि जैन तथा भीलवाड़ा से बृज सुंदर और अवस्थी जी इस पुस्तक लेखन की यात्रा में उत्साह के साथ आगे आए हैं और पूर्ण सहयोग का वायदा किया है। राजस्थान क रचनाकारों के विवरण प्राप्त होना शुरू हो गए हैं।
आभारी और कृतज्ञ हूं साहित्यकार जितेंद्र कुमार शर्मा ‘ निर्मोही ‘ जी का जिन्होंने मुझे तीन साल पहले एक कार्यक्रम में अध्यक्ष बना कर मेरे लेखन को नई धारा में मोड दिया। उनके बारे में प्रसिद्ध है कि कई रचनाकारों को उन्होंने अपने मार्ग दर्शन से साहित्य की राह पकड़ाई और वे आज इनके शुक्रगुजार हैं और खूब लिख रहे हैं।
डॉ.प्रभात कुमार सिंघल
लेखक एवं पत्रकार, कोटा