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साहित्य और संगीत में ज्योतिहीन अशोक सोनी ने बनाई पहचान

करम गति टालत नाही टले और कोई काम नहीं है मुश्किल जब कर लिया इरादा पक्का जैसी उक्तियां, दोनों नेत्रों से ज्योतिहीन अशोक सोनी के संघर्षपूर्ण जीवन को ज्योतिर्मय बनाती नज़र आती हैं। बचपन में पांच वर्ष की आयु में दोनों नेत्रों की ज्योति चली जाने पर भी अपने अंतर्मन की शक्ति और मजबूत इरादे से इन्होंने अपनी इस शारीरिक दुर्बलता को भी अपनी हिम्मत और ताकत बना लिया। औरों की आंखों से संसार को देखते हुए एक साहित्यकार और संगीतकार के रूप में अपनी पहचान कायम की।

अशोक कुमार सोनी बांसुरी , हारमोनियम , बैंजो , ढोलक , आर्गन , खंजरी, मजीरे साज वादन में प्रवीण है। इनसे वाद्य वादन और संगीत की निशुल्क कला सीख कर अनेक युवा अच्छे संगीतकार बन गए है जिस पर ये गर्व महसूस करते हैं। यह कहते हुए इनके चेहरे की चमक देखते ही बनती है कि इनका बेटा सौरभ भी नेत्र दोष होते हुए अनेकों साज बजाने में सिद्ध हस्त है और रिकार्ड कायम कर रहा है।

संगीतकार, गीतकार, कवि के रूप में आपने ख्याति अर्जित की। पढ़ नहीं पाए फिर राधेश्याम के तर्ज में रामायण पूरी कंठस्थ याद है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक अखिल भारतीय विराट कवि सम्मेलन में जाकर काव्य पाठ किया। आकाशवाणी झालावाड़ , जयपुर , कोटा , उदयपुर , इंदौर केंद्र से गीत,लोकगीत कविताओं का प्रसारण रिकार्डिंग और प्रसारण किया गया। जीवन निर्वाह के लिए आपने आर्केस्ट्रा,भजन संध्या,कवि सम्मेलन के साथ – साथ कुर्सी बुनाई का काम भी सीखा । सरकारी कार्यालयों में कुर्सी बुनाई का काम लिया।

आपको कई संस्थाओं द्वारा समय – समय पर पुरस्कृत और सम्मानित किए जाने से आपका होंसला और भी बढ़ता रहा। एक समय ऐसा आया जब 1994 में राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए आपको दिल्ली बुलाया गया, परंतु एन वक्त पर परिवार में परिजन की मृत्यु होने से ये पुरस्कार लेने नहीं जा सके।

झालावाड़ की गंगधार तहसील के ग्राम डग में 2 नवंबर 1965 को पिता मोती लाल और माता गीता बाई के आंगन में जन्में अशोक कुमार 5 वर्ष की आयु तक पूर्णतः शारीरिक रूप से स्वस्थ थे। बचपन हंसी – खुशी से खेलकूद में बीत रहा था। किस्मत ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि सारी खुशियां उनसे छीन गई। 5 वर्ष की आयु में उजाले की जगह जीवन अंधकार से घिर गया। जब पहली कक्षा में थे अध्यापक में इनके सिर के दोनों ओर मारने से आंखों के आगे अंधेरा छा गया और नेत्र ज्योति चली गई। काफी इलाज करवाने के बाद भी रोशनी नहीं आ सकी । आगे ये न स्कूल गए और ना ही कोई पढ़ाई – लिखाई की।

गाने का शौक था धीरे-धीरे कर गाना बजाने में रूचि ली और कई साज बजाने लगे। इनकी बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान की। आपकी पत्नी कविता सोनी भी नेत्रहीन होते हुए घर का सारा काम किसी सामान्य महिला से ज्यादा ही कर लेती है। माता – पिता की और स्वयं की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं रही और ऊपर से शारीरिक दोष होने से जीवन में हमेशा संघर्ष बना रहता है। हार कभी नहीं मानी , हिम्मत और हौंसले को हथियार बनाए रखा और आगे बढ़ते रहे। साहित्य व संगीत के क्षेत्र में सेवा कर रहे हैं। इन्होंने वाहन चलाना भी सीखा।

साइकिल मोटरसाइकिल, कार एवं स्कूटी इन सब का उपयोग वे अपने शौक के लिए खुले मैदान में चला कर पूरा करते हैं। तैरने में कुशल हैं । नदी, तालाब, गहरे कुएं में ऊपर से छलांग लगाकर पुनः बाहर निकलते हैं तो लोग आश्चर्यचकित चकित रह जाते हैं। ये सोचते है कि मालिक ने आंखे छीन ली तो क्या हुआ शरीर और दिमाग पूर्ण रूप से स्वस्थ है। यदि किसी व्यक्ति की आंखें ना हो तो इनका मानना है कि दो आंखे चली जाती है तो पूरे संसार की आंखें उस व्यक्ति की बन जाती है।

(लेखक राजस्थान के मान्यता प्राप्त पत्रकार हैं विविध विषयों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)