कोटा। साहित्यकार अपने साहित्य से काल का निर्धारण करता है। मीर, गालिब, तुलसी,कबीर, मीरां सबने अपने साहित्य से अपने समय को बताया है।समय के साथ साहित्य को जाना जाता है मैथलीशरण गुप्त, निराला , जयशंकर प्रसाद सभी समय के वाहक रहे हैं।मानस आज़ जिन संदर्भों में अज्ञानतावश याद की जा रही है,वह दुखद पहलु है । कुछ पन्ने जला देने से कृति अपना अस्तित्व नहीं खोती। समकालीन काव्य और ग़ज़ल को वर्तमान दोहा ही रिप्लेस कर सकता है।यह वक्तव्य आज़ साहित्यकार जितेन्द्र निर्मोही ने जनकवि प्रेम शास्त्री की दोहा कृति “सतसई प्रेम की” के लोकार्पण के अवसर दिया। उन्होंने कहा प्रेम शास्त्री के दोहे सोये हुए समाज को जागृत कर चेतावनी देते हैं। उसमें विषय वैविध्य के साथ साथ मनुष्यता विद्यमान है।
आयोजन में मुख्य अतिथि भरतपुर से आये वेदप्रकाश “वेद” ने कहा “सतसई प्रेम की” भावों का अजस्र प्रवाह है,जो हृदय को बांधता और चेतना को साधता है ।कवि की भाव अभिव्यंजना ,शब्द शिल्प और अभिव्यक्ति कौशल स्तुत्य है।इस अवसर पर नैंनवा से आये विशिष्ट अतिथि जयसिंह आशावत ने कहा यह दोहा कृति भारतीय जीवन मूल्यों से भरपूर है इसमें श्रम की साधना और गरीब की झोंपड़ी का दर्द है।सौ शीर्षकों में सात सौ दोहे कवि की प्रतिभा को प्रदर्शित करते हैं। विशिष्ट अतिथि विष्णु शर्मा हरिहर ने कहा यह रचनाएं समयानुकूल समसामयिक ही नहीं वरन् शाश्वत मूल्यों को भी स्थापित करती है। समारोह की अध्यक्षता रामेश्वर शर्मा रामूभैया ने की और संचालन विजय जोशी द्वारा किया गया ।
लोकार्पण समारोह का प्रारंभ रघुनंदन हठीला की सरस्वती वंदना से हुई। कृतिकार का परिचय जे पी मधुकर ने दिया।इस अवसर पर भगवती प्रसाद गौतम, रामनारायण मीणा हृदय, बद्रीलाल दिव्य, जगदीश निराला,गोरस प्रचंड, दिनेश सिंह एडवोकेट, बाबू बंजारा, नहुष व्यास, के बी भारतीय, दिनेश मालव,ओम मेराठा, डॉ अपर्णा पान्डेय,शशि जैन, श्यामा शर्मा आदि ने भाग लिया।
इस अवसर पर कोटा संभाग से आये साहित्यकार बंधुओं और अनेक संस्थाओं ने सम्मान किया। अपने संबोधन में कृतिकार प्रेम जी प्रेम ने कहा यह मेरे लिए अनूठा अवसर है। मैंने जो समाज में जो देखा उसे अपने अनुभव के रुप में प्रस्तुत किया है।