हमारे समय में मकरंद देशपांडे जैसे रंगकर्मी और अभिनेता का होना किसी वरदान से कम नहीं है। कल रात 9.30 बजे उनसे उनके घर मिलना तय हुआ था। जब मैं वर्सोवा के सागर समीर अपार्टमेंट की चौथी मंजिल पर 12 नंबर प्लेट में पहुंचा तो मेरा स्वागत हम सबके प्रिय अभिनेता मनोज बाजपेई ने किया। लोग आने लगे तो अचानक मुझे लगा कि आज (6 मार्च 2023) तो मकरंद का जन्मदिन है। मेरा हाथ खाली था। उन्होंने गले लगाते हुए कहा कि आप आ गए, मेरे लिए यहीं सबसे बड़ा उपहार है। उनकी मंडली के दर्जनों कलाकारों के मन में 18 जनवरी को पृथ्वी थियेटर में दिए गए मेरे भाषण की याद ताजा थी। मुंबई में इतनी आत्मीय शाम में शायद पहली बार मै शामिल हो रहा था। शशि कपूर के बेटे और पृथ्वी थियेटर के संचालक कुणाल कपूर के संस्मरण लाजवाब थे।
आमिर खान की फिल्म तारे जमीन पर के लेखक अमोल गुप्ते से मिलकर पुराने दोस्तों की यादें ताजा हुई खासकर अपने मित्र कुंदन शाह और फिरोज अब्बास खान की। लेखक रूमी जाफरी को अभी भी भोपाल रह रहकर याद आता है। घर की बालकनी समुद्र की ओर खुलती हैं जहां हम खड़े होकर बातें कर रहे थे। जाहिर है कुंदन शाह की जाने भी दो यारों के साथ सुधीर मिश्रा, रंजीत कपूर और सतीश कौशिक का जिक्र होना ही था। मनोज बाजपेई के चले जाने के बाद मकरंद देशपांडे की मंडली ‘ अंश ‘ के युवा कलाकारों की बारी थी। दिव्या सिंह, अदिति नरकर, नेहा गर्ग, श्रुति और संजय दधिचि के साथ मुंबई रंगमंच के सदाबहार अभिनेता नागेश भोसले की बातचीत उस ढलती रात में और रस घोल रही थी। जयपुर से हेमा गेरा अपने बेटे साहिब और बेटी मन गेरा के साथ आई तो मित्र दीपक गेरा को याद तो करना ही था। संजय दधिचि चाहते हैं कि मकरंद देशपांडे के लिखे हुए नाटकों का एक संकलन मैं संपादित करूं। अब भला मैं कैसे मना कर सकता था। रात के तीन बजे जब सब बारी बारी से चले गए तो मैं, संजय, नागेश भोसले और मकरंद बच गए। तब तक नागेश इतना तत्व चिंतन कर चुके थे कि वे धरती पर नहीं थे।
उन्होंने मकरंद से एक सवाल बार बार पूछना शुरू किया कि ” मकरंद तुम हम सबसे इतने बड़े कैसे बन गए कि हमें तुम्हे देखने के लिए सिर उपर उठाना पड़ता है। ” इससे मुझे याद आया कि चाहे सिनेमा हो या थियेटर, मकरंद के काम का डाक्यूमेंटेशन होना चाहिए। बात यह भी चली कि उन्हें अपने अद्वितीय नाटक ‘ करोड़ों में एक ‘ को फिर से करना चाहिए। फिर कहा गया कि उसके मुख्य अभिनेता यशपाल शर्मा अति व्यस्त हो गए हैं और जब वे समय निकालेंगे तो ही यह नाटक संभव है। मैंने कहा कि दूसरा अभिनेता ले लीजिए। मकरंद ने कहा कि यशपाल शर्मा का कोई विकल्प नहीं है। सचमुच हमारे समय में मकरंद देशपांडे का भी कोई विकल्प नहीं है। भारतीय रंगमंच में वे ऐसे अकेले सफल रंगकर्मी है जो बिना किसी सरकारी अनुदान के लगातार वैसा नाटक कर रहे हैं जिसमें पूर्ण मनोरंजन के साथ वैचारिक दर्शन होता है। आज हर कलाकार उनके साथ काम करना चाहता है क्योंकि वे किसी के साथ भेदभाव नहीं करते। हमें उनके नए नाटक की प्रतीक्षा है।
(लेखक फिल्म समीक्षक हैं और अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों पर शोधपूर्ण लेख लिखते हैं)