Tuesday, December 24, 2024
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मालाड की ये रामलीला मनोरंजन नहीं रस वर्षा करती है

मुंबई के मालाड क्षेत्र में रामलीला प्रचार समिति द्वारा विगत 35 सालों से रामलीला का आयोजन हो रहा है और सुखद आश्चर्य की बात ये है कि इस रामलीला के लिए मुरादाबाद की रामलीला मंडली विगत 34 सालों से लगातार आ रही है। इससे भी बढ़कर मजेदार बात ये है कि आज से 35 साल पहले जो बाल कलाकार के रूप में राम लीला में काम करते थे या कालांतर में विविध किरदार निभाते थे वे आज भी इस रामलीला से जुड़े हैं, अंतर इतना आया है कि उनकी भूमिका बदल गई है। इस रामलीला में अभिनय करने वाला कोई भी कलाकार पेशेवर नाटक या थिएटर कलाकार नहीं है, सबका अपना कारोबार है, नौकरियाँ हैं, लेकिन मालाड में रामलीला करने का मोह ऐसा है कि लाखों-करोड़ों का कारोबार छोड़कर, अच्छी खासी नौकरी से बगैर वेतन की छुट्टियाँ लेकर ये कलाकार यहाँ आते हैं और अपने आपको धन्यभागी समझते हैं।

श्री राजेश रस्तोगी विगत 34 सालों से रामलीला लेकर आ रहे हैं, वे रामलीला में रावण, दशरथ और केवट की भूमिका निभाते हैं। रामलीला में राम-वनवास और राम-केवट संवाद का दृश्य जिसने भी देखा वो इन दृश्यों की रस वर्षा से ऐसा अभिभूत हुआ कि नैत्रों से अश्रुधारा बहने लगी। रामलीला के बीच में बारिश की रिमझिम फुहारें कई बार रसभंग करती प्रतीत होती है लेकिन रामलीला के मंच पर चल रहे दृश्य इतने जीवंत होते हैं कि दर्शक बारिश कि फुहारों के बावजूद अपनी जगह से नहीं हिलते।

राम-वनवास के दृश्य में दशरथ की भूमिका को जिस भावप्रवणता से राजेश रस्तोगी जी ने जीवंत किया वह किसी फिल्मी या टीवी के परदे पर भी संभव नहीं। राम-केवट संवाद के दृश्य में भावुकता, रोचकता और हास्य का पुट तो था ही अध्यात्मिकता की पराकाष्ठा का अद्भुत अनुभव भी था। मंच पर चल रहे दृश्य दर्शकों को ऐसे एकाकार कर रहे थे मानो वे राम लीला का मंचन नहीं बल्कि साक्षात राम-केवट का संवाद देख रहे हैं।

रस्तोगी जी बताते हैं इस रामलीला में 55 कलाकार हैं, जिसमें कोई व्यापारी है तो कोई शिक्षक है तो कोई व्यवसाई है तो कोई उद्योगपति। श्री राजेश रस्तोगी खुद एक बड़े दवाई कारोबारी हैं और उनका करोड़ों का कारोबार और कारखाने हैं।

राजेश रस्तोगी जी बताते हैं हम ये रामलीला मालाड में ही करते हैं, इस रामलीला के बाद हम अपने काम धंधों में व्यस्त हो जाते है। लेकिन यहाँ आने से पहले दो महीने की रिहर्सल मुरादाबाद में होती

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इस रामलीला में रिश्तों की भी अजीब दास्तान है। सीता की भूमिका को बेहद मासूमियत के साथ निभा रही विशु के पिता सुग्रीव की भूमिका में हैं। दिलीप भटनागर हनुमान बनते हैं। राम की भूमिका निभाने वाले सुमित खेतान मुंबई के ही हैं और फिल्म व टीवी की दुनिया के जाने माने कोरिओग्राफर हैं। उन्होंने बिग बॉस से लेकर कपिल शर्मा के कार्यक्रमों के लिए कोरिओग्राफी की है। रावण केवट और दशरथ की भूमिका राजेश रस्तोगी जी खुद ही निभाते हैं। मेघनाथ की भूमिका संदीप व्यास निभाते हैं। उनके पिता बृजगोपाल व्यास रामलीला का संगीत तो देते ही हैं रामायण की चौपाईयाँ और दोहे इतनी भावप्रवणता के साथ गाते हैं कि रामलीला का पूरा दृश्य ही जींवत हो उठता है। उनके गायन में करुणा, श्रृंगार, रौद्र, वात्सल्य, अद्भुत और भक्ति रस की ऐसी वृष्टि होती है कि दर्शक और श्रोता का अंतर्मन तक भीग जाता है।

श्री दिनेश मानक ने रामलीला की पूरी पटकथा लिखकर एक एक दृश्य और एक एक संवाद को नया अर्थ प्रदान किया है। राम-केवट संवाद में केवट अपने आपको दलित बताते हुए प्रभु राम से संवाद करता है तो उन संवादों में देश में दलितों को लेकर हो रही राजनीति का असली चेहरा भी सामने आ जाता है।

श्री मानक मुरादाबाद में एक बड़े दवा कारोबारी हैं, मगर रामलीला के लिए मुंबई खिंचे चले आते हैं। कैकयी की भूमिका निभा रही एकता भटनागर सुग्रीव की भूमिका निभाने वाले दिलीप भटनागर की बेटी हैं और दिल्ली के एक अंग्रेजी स्कूल में शिक्षिका हैं मगर रामलीला के लिए छुट्टी लेकर मुंबई आती हैं।

रामलीला के शुरुआती दिनों में श्री राजकुमार दत्ता हनुमान बनते थे, अब उनके बेटे हर्षित दत्ता लक्ष्मण की भूमिका में दिखाई देते हैं। हर्षित मैसूर की एक पाँच सितारा होटल में बैंक्वेट मैनेजर हैं मगर रामलीला के लिए छुट्टी लेकर मुंबई आते हैं। जनक की भूमिका निभाने वाले संदीप भारद्वाज पहले राम की भूमिका निभाते थे। वे एक शुगर मिल में मैनेजर हैं। वे योग शिक्षक हैं और रविशंकरजी के शिष्य हैं। उनकी बेटी प्राची भारद्वाज गौरी की भूमिका निभाती है।

अंजना शर्मा रामलीला में पार्शव गायिका के रूप में परदे के पीछे रहती है। वे शादी के पहले से रामलीला में आ रही हैं। शादी के दौरान भी उन्होंने अपने पति और ससुराल वालों से यही शर्त रखी थी कि वो मुंबई में मालाड की रामलीला में पार्श्व गायन का काम नहीं छोड़ेंगी। उनके पति ने शर्त मानी और कई बार वे खुद भी राम लीला देखने दिल्ली से मुंबई आए। अंजना शर्मा के श्वसुर ने दिल्ली के परेड ग्राउंड में रामलीला की शुरुआत की और वे खुद उस रामलीला में जनक की भूमिका निभाते हैं। अंजना के पति का डायरी और कैलेंडर का बड़ा कारोबार है। उनकी बेटी मेघा शर्मा शूर्पणखा की और पूजा शर्मा अलग अलग भूमिकाएँ निभाती है।

रामलीला का मेकअप श्री प्रभात भारद्वाज करते हैं। इस बार उनका ग्लाड बैडर का ऑप्रेशन हुआ लेकिन गंभीर स्थिति के बावजूद वे रामलीला में आए।

इस रामलीला का सबसे बड़ा आकर्षण है पात्रों के वस्त्र और दृश्य के अनुरूप सेट सज्जा। चलती नाव और हनुमान के बाल रूप से बड़े रूप में बदलना मंच संकल्पना का अद्भुत उदाहरण है।

श्री राजेश रस्तोगी ने ही नहीं बल्कि उनके पूरे परिवार ने और सभी कलाकारों ने अपना जीवन रामलीला को समर्पित कर दिया है। श्री रस्तोगी कहते हैं, लोग मुझसे पूछते हैं कि तुम अपना काम-धाम छोड़कर कहाँ रामलीला के चक्कर में पड़े हो, तो मैं कहता हूँ कि मैं बीमार होकर अस्पताल में पड़े रहने की बजाय अपना समय प्रभु श्री राम की सेवा में देता हूँ, इससे बड़ा आनंद और क्या होगा। वे उत्साहित होकर बताते हैं मैं जब से इस रामलीला से जुड़ा हूँ, मेरे जीवन में जो भी परेशानियाँ, मुश्किलें और कारोबार में समस्याएँ आई वे चमत्कारिक रूप से दूर हो गई। और ये सुखद एहसास मेरा ही नहीं बल्कि मेरे सभी साथी कलाकारों और परिवार वालों का भी है। मेरी पत्नी शादी के बाद से लगातार रामलीला में मेरे साथ आ रही है। इस बार मेरे घर पोती के रूप में देवी का आगमन हुआ इसलिए वो मेरी बहू की देखभाल के लिए रुक गई।

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श्री रस्तोगी बताते हैं मालाड की इस रामलीला में मेरी भूमिकाओँ को देखते हुए मुझे कई जाने माने फिल्म निर्माता-निर्देशकों ने धार्मिक धारावाहिकों में कई भूमिकाओँ के प्रस्ताव दिए, लेकिन मैने विनम्रता पूर्वक इंकार कर दिया, क्योंकि अभिनय मेरा पेशा नहीं है। मेरा दवाई का बडा कारोबार है उसके लिए भी मुझे पूरा समय देना पड़ता है।

श्री रस्तोगी के सथ बैठना और उनसे रामलीला पर चर्चा करने पर ऐसा लगता है जैसे तुलसीदास खुद रामचरित मानस के चरित्रों की बात कर रहे हैं।

मुंबई में रामलीला शुरु करने को लेकर उन्होंने दिलचस्प जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वे अपने गुरू ज्ञानप्रकाश श्रोत्रिय दिल्ली में रामलीला से जुड़े हुए थे। 35 साल पहले श्री देवकीनंदनजी जिंदल (विश्व हिन्दू परिषद् की महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष) के भाई साहब ने दिल्ली में मेरी रामलीला देखी तो उन्होंने मेरे गुरूजी से निवेदन किया कि ऐसी रामलीला तो मुंबई में भी होना चाहिए। मेरे गुरूजी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं मुंबई में रामलीला करने को तैयार हूँ, मैं भला अपने गुरू के आदेश को कैसे टाल सकता था, मैने तत्क्षण हाँ कर दी। बस तबसे (1982 से) मैं मालाड की रामायण प्रचार समिति के तत्त्वावधान में ये रामलीला लगातार हो रही है। रामलीला के लिए रस्तोगीजी पूरा तीन ट्रक सामान मुरादाबाद से ट्रेन से लेकर मुंबई आते हैं और अपने सभी साथी कलाकारों के साथ एसी क्लास में नहीं साधारण स्लीपर में यात्रा करके आते हैं।

यानी कि मालाड की ये रामलीला मात्र रामलीला नहीं बल्कि इससे जुड़े सभी कलाकारों के संकल्प, भक्ति, श्रध्दा और समर्पण की जीवंत दास्तान है।

नाट्यशास्त्र में भरत मुनि ने रस की व्याख्या करते हुए कहा है – विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्ररस निष्पत्ति:

अर्थात विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव के संयोग से ही रस की निष्पत्ति संभव है और मालाड के इसमंच पर मुरादाबाद के इन कलाकारों ने भरत मुनि के नाट्य शास्त्र के इस सिध्दांत को साकार कर दिखाया है।

रामलीला प्रचार समिति मालाड की वेब साईट

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